मनोरंजन के लिये नही है संगीत

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अपने चाइना वाले मोबाइल पर भले बलिया जिला का सिंकूवा…”रतियाँ कहाँ बितवला ना” जोर से बजाए.या बीएचयू के सरदार वल्लभ भाई पटेल हॉस्टल में रहने वाले हिंदी साहित्य में भक्तिकाल के शोधार्थी.सीरी फलाना जी आधी रात को.”आज फिर तुम पे प्यार आया है” का वीडियो देखकर रीतिकाल का अनुभव करें.कहीं महान आध्यात्मिक रेप गायक सीरी हनी सिंग का “ब्रेक अप की पार्टी कर ली”अस्सी घाट का वो लौंडा डाउनलोड करे जिसकी गर्लफ्रेंड ने उसे अपने दिल से डिलीट कर दिया हो.लेकिन अमेरिका या स्विट्जरलैंड से  वहाँ का कोई साधारण नाइ भी बनारस में आता है,तो यही पूछता है कि..ध्रुपद कन्सर्ट कहाँ है ?…सितार कहाँ सिख सकता हूँ ?..कत्थक की वर्कशाप कहाँ होती है.?.तबला अच्छा कौन सिखाता है।.?

कई बार सोचने पर अजीब सा एहसास होता है.आज भारत कि आध्यात्मिक,सांस्कृतिक विरासत के पीछे दुनिया दीवानी हुई जा रही है.और हम ‘रतिया कहाँ बितवला ना’ और ‘आज फिर तुम पे प्यार आया है’ में ही उलझे हुये हैं.

ये उलझना स्वभाविक है ,इसके कारण बड़े गहरे हैं।हमने आजतक संगीत को मनोरंजन के नाम पर शराब की तरह उपयोग किया है.और शराब भी पीया है तो तीसरे दर्जे का पीया है..जिसने रोग बढ़ा दिया है…संगीत तो दवा है।…हम जानते नहीं कि संगीत वो थिरेपी है जो चित्त में उलझी बिषाद कि रेखावों को मिटा देती है..सहज ही आदमी चित्त शून्य और भाव शून्य कि दशा में होता है.ध्यान को उपलब्ध होता है।आदमी सृजनशील होते ही संवेदनशील होने लगता है…तब उसके मनुष्य होने की सम्भावना प्रबल होने लगती है.

लेकिन आज इस भयंकर तनाव और आपाधापी के माहौल में फुर्सत किसे है कि वो फूलों से बतियाये..नदियो का लय और झरनों का ताल सुने..पेड़ो के लिए गा रही हवा का गीत सुनें.

थोड़ा सोचना होगा.आदमी कुछ भी गाते बजाते लिखतें बनाते या रचते वक्त वो खुद को अपने सबसे करीब पाता है.पश्चिमी देशों ने इस अद्भुत चीज को समझ लिया है.उनको लगता है कि कोई भी एक साज बजाना या एक गीत गाना उन्हें जरूर सीखना चाहिए।..इसलिए आज  पूरी दुनिया में भारतीय शास्त्रीय संगीत और कलाकारों का परचम है.लेकिन अपने भारत में ही सितार के युवा जादूगर निलाद्री कुमार टाइम्स आफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में कहते हैं कि उन्हें “बार बार एयरपोर्ट पर बताना पड़ता है कि वो क्या बजातें हैं “।। ये सबसे बड़ी विडम्बना है हमारे समय की।

हमें चेतना होगा कि हनी सिंह और मीका और लेतरी खेसारी का संगीत ही संगीत नहीं है..ये संगीत तो क्षणिक उत्तेजना पैदा करने वाला संगीत है.संगीत वो है जो अन्तस से  साक्षात्कार करा कर आपको अपने आप से मिला दे.

ओशो से किसी ने कभी पूछा था कि इस जीवन में बचाने जैसा क्या है..?.उन्होंने कहा स्वयं की आत्मा और उसका संगीत..जो ये बचा लेता है वो सब बचा लेता है..जो ये खो देता है सब खो देता है।.आगे कहतें हैं..

“listen to music become the music”

ये बड़ी अद्भुत बात लगती है मुझे । जीवन संगीत बचा रहे तो बड़ी उपलब्धि होगी। और जिस दिन हमें  सुनना आ गया उस दिन हम स्वयं संगीत होंगे..अफ़सोस इस प्रदूषण के दौर में  हम संगीत को देखने में ज्यादा उत्सुक हैं…

आज एक अद्भुत और सुखद संयोग ही है कि अंतराष्ट्रीय योग दिवस और अंतराष्ट्रीय संगीत दिवस दोनों एक साथ है.संगीत माध्यम है जो आत्मा से जुड़कर योग का संयोग बनाता है.संगीत ऐसी चीज है जो जाति पाति मजहब देश और सीमा को एक लय और एक ताल में बाँधने में सक्षम है।.उत्तर भारतीय संगीत का ‘सा’ भले वेस्टर्न में जाकर ‘सी सार्प’ हो जाए लेकिन पूरी दुनिया इन बारह स्वरों में ही बंधी है.

आपको बता दें आज ही के दिन 1976 में महान अमेरिकन संगीतकार जोएल कोहेन ने फ्रांस में पहली बार फूल नाइट फ्री कन्सर्ट का आयोजन किया था..धीरे-धीरे वो हर वर्ष फ्रांस में इस दिन को म्यूजिक डे के रूप में मनाने लगे…उनसे प्रभावित होकर अन्य देशों ने भी अपने यहाँ फ्री म्यूजिक शो आयोजित किया….इसी दिन को वर्ल्ड म्यूजिक डे के रूप में मनाया जाने लगा.

आज  उत्तरी गोलार्ध का सबसे बड़ा दिन है…और हम भारतवासियों के लिए भी.पूरी दुनिया में हमारी आध्यात्मिक विरासत का डंका बज रहा है।बौद्धिक रुदन में रत कुछ मानसिक बीमार बुद्धिजीवियों और सो कॉल्ड सेक्यूलरों के साथ साथ सीरी  पप्पू जी और उनके माताजी के चेलों को छोड़ दें तो योग को पूरी दुनिया ने जिस तरह अपनाया है वो किसी भी भारतीय को आनंदित करने और फख्र महसूस करने के लिए काफी है।
जय हो।

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