हनुमान जी आदिपुरुष देखकर अभी सिनेमा हाल से निकले ही थे कि एक पत्रकार नें उन्हें पहचान लिया, “प्रभु, एक इंटरव्यू दे देते तो मेरा चैनल मोनेटाइज हो जाता..!”
हनुमान जी नें पत्रकार को गौर से देखा। आंखे बंद कर गहरी सांस ली..मन में जय श्रीराम का जाप किया और पूछा ,
“इसके पहले क्या करते थे ?”
“भगवन, एक राष्ट्रीय चैनल में पत्रकार था, दो महीने पहले निकाल दिया गया…अब यू ट्यूबर हूँ।”
“क्या नाम है, रवीश कुमार ?”
“नहीं..”
“अजीत अंजुम ?”
“नहीं-नहीं..!”
“पुण्य प्रसून बाजपेयी, अभिसार शर्मा ?”
नहीं,पवन सुत, मैं इनमें से कोई नहीं हूँ..”
” तब तुम कौन हो ? शकल से तो विनोद कापड़ी भी नहीं लगते.. ?”
“मैं मनोज हूँ प्रभु..एक सत्ता विरोधी पत्रकार.. ! “
सत्ता विरोधी सुनते ही हनुमान जी के माथे पर बल पड़ गया..जोर से पूछा,”कौन सी सत्ता के विरोधी हो..? “
ऐसा सवाल सुनकर पत्रकार खामोश हो गया। हनुमान जी नें कहा,
“बोलते क्यों नहीं ? कौन सी सत्ता के विरोधी हो ?”
“बस, सत्ता का विरोधी हूँ प्रभु..।”
“वही तो पूछ रहा, मोदी की सत्ता या केजरीवाल-ममता बनर्जी की सत्ता ? नीतीश, एम के स्टालिन की सत्ता ? या सिद्धारमैया,चंद्रशेखर राव और पिनराई विजयन की सत्ता..?”
किस सत्ता के विरोधी हो..?”
हनुमान जी के इस कठिन सवाल पर पत्रकार बगले झांकनें लगा..उसने गिड़गिड़ाते हुए पैर पकड़ लिया,
“प्रभु ऐसा सवाल करके मुझे धर्मसंकट में मत डालिये। हफ़्ते में एक दिन ट्विटर पर सबको गाली देकर निरपेक्ष रहने की पूरी कोशिश करता हूँ। फिर भी अर्निंग नहीं हो रही। ये चैनल न चला तो मर जाऊंगा, प्लीज एक इंटरव्यू दे दीजिए…!”
“तुम्हारा भी नाम मनोज है ?” हनुमान जी नें पूछा।
” जी प्रभु… मनोज मुंतसिर की कसम..मैं कल से ही कालीन बिछाकर सिनेमा हॉल के सामने आपका इंतज़ार कर रहा हूँ..बस एक इंटरव्यू..!”
हनुमान जी मनोज को इंटरव्यू देते इसके पहले ही उनके व्हाट्सएप पर अंगद का मैसेज आ गया।
“हे आंजनेय..सादर चरण स्पर्श..”
“कैसे हो अंगद..क्या समाचार ? “
अंगद नें इयरफोन निकालकर कहा,” प्रभु, एकदम चौचक चल रिया है। अभी बुआ के बगीचे में बैठकर आम खा रहा था तो आपकी याद आ गई।”
हनुमान जी चौंके, “ये कैसी भाषा बोल रहे हो अंगद, क्या तुमनें भी आदिपुरूष देख लिया ?”
” देख लिया…? हे पवनसुत, मुझे तो ट्विटर पर पॉजिटिव ट्विट लिखने के नौ हजार रुपये भी मिल रहे थे लेकिन लंका से रावण अंकल नें वीडियो कॉल करके सारा स्कीम खराब कर दिया…”
“क्या हुआ, रावण नें भी आदिपुरूष देख लिया ?”
“हं,फर्स्ट डे, फर्स्ट शो..”
“कैसी लगी उसको ? “
“प्रभु फ़िल्म देखने के बाद रावण कत्तई लोहार हो चुका है। दिन-रात लोहा पीट रहा है। कह रहा,अपने पापा बाली को भेजो, साझे में लोहे का बिजनेस करते हैं ।”
“अच्छा, ऐसा हो गया ?”
“हं,प्रभु…उधर विभीषण बो चाची नें तो मुम्बई से फैशन डिजायनर रितु कुमार को बुला लिया है।”
“अरे, उन्हें क्या हुआ ? “
“कह रही हैं, माई लहंगा शुड बी चेंज्ड नॉऊ..”
” उफ्फ…! घोर अनर्थ…”
“यही नहीं,अभी और सुनिये..
“अब क्या हुआ ?”
” हुआ ये है कि कुंभकर्ण और अक्षय कुमार नें मुम्बई से वीएफक्स वालों को बुलाकर अशोक वाटिका के सारे राक्षसों का मेकअप करवा दिया है। ऊपर से आज सुबह रावण नें पुष्पक विमान भेजकर अलाउदीन खिलजी को महल में आमंत्रित कर दिया..।”
“अलाउद्दिन खिलजी को… किसलिए ?”
“अपनी दाढ़ी बनाने के लिए ?”
” जय श्रीराम,जय श्रीराम, बस यही दिन देखना बाकी रह गया था अंगद ……”
“हं,प्रभु,लेकिन अगला समाचार सबसे बुरा है।
“अब क्या हुआ ? “
“अपनी वानर सेना के सारे वानर आदिपुरूष में अपना रूप देखकर सदमे में हैं..सबने विरार से लोकल पकड़कर अंधेरी की तरफ कूच कर दिया है। सबके हाथ में गदा है। अब ओम राउत और मनोज मुंतशिर की खैर नहीं, उन्हें आप ही बचा सकतें हैं प्रभु, प्लीज कुछ करिये…।”
इतना सुनते ही हनुमान जी चिंतित हो उठे।
” ठीक है अंगद,तुम चिंता न करो, मैं कुछ करता हूँ।”
इधर मनोज पत्रकार हनुमानजी को चैटिंग करता देख धीरज खो उठा।
“प्रभु, अब हो गई न चैटिंग, मेरे कुछ सवालों का जबाब दे दीजिए,आज सुबह से एक भी इन्टरव्यू नहीं किया…? “
इतना चिरौरी के बाद भी हनुमान जी नें पत्रकार की एक न सुनी। तुरन्त एक ऑटो वाले को हाथ दिया और मलाड से अंधेरी की तरफ चल पड़े… मनोज पत्रकार भी उचककर ऑटो में बैठ गया…
“तुम नहीं मानोगे ?” हनुमान जी ने फिर डांटा..
“प्रभु बस एक इंटरव्यू, बस एक..”
अगले ही पल मुम्बई के जाम नें हनुमान जी का हाल-बेहाल कर दिया। बढ़ते तापमान और गर्मी देखकर हनुमान जी से भी रहा न गया, उन्होंने कहा, “ठीक है, पूछ लो….”
” प्रभु, मनोज मुंतशिर नें कल टीवी पर कहा है कि हनुमान जी भक्त हैं, मैंने उन्हें भगवान बनाया है, आप क्या कहना चाहेंगे ? क्या आप क्रोधित हैं ?
“नहीं,बिल्कुल नहीं..मुझे तो बस उन पर दया आ रही है। मैं उनकी सद्बुद्धि की कामना करूँगा। शायद मनोज भूल गए हैं कि जनता नें ही उन्हें लेखक बनाया है।”
“प्रभु क्या भगवान राम पर इस फ़िल्म का कोई असर पड़ेगा, या आप पर ?”
” कैसी बात करते हो, जिस राम के पास आकर शील अपना श्रृंगार करता है। विनय विभूषित होता है। संस्कार, विवेक और ज्ञान शरण लेते हों। जो मेरे जैसे करोड़ो भक्तों के हृदय में बसते हों, उन पर एक फ़िल्म का असर पड़ेगा ?”
“फिर आप मनोज मुंतशिर से क्या कहना चाहेंगे ?”
” मैं यही कहूंगा कि मनोज जितना जल्दी हो सके अपने असिस्टेंट राइटर की तनख़्वाह बढ़ा दें…!”
“यू मीन ये सब असिस्टेंट राइटर नें लिखा है ?”
“तुम ही बताओ…एक आदमी स्वयं रियलिटी शो, डाक्यूमेंट्री होस्ट करेगा, जज भी बनेगा, फिर दिन भर हिन्दू राष्ट्र और सनातन की रक्षा करेगा तो कैसे लिख पाएगा.. ? प्रभावी लेखन एकांत की साधना है वत्स…..असिस्टेंट तो रखना पड़ेगा न ?
“वैसे,आजकल लेखकों की बाढ़ सी आ गई है..उनके के लिए कोई सलाह….”!
” सलाह तो यही है कि लेखक की जबान उसकी कलम है। जिस दिन कलम से ज्यादा जबान चलने लगेगी, उस दिन उसका यही हश्र होगा।”
“ओम राउत को क्या कहेंगे प्रभु…?”
” मैं यही कहूँगा, पर्दे पर राम को उतारने से पहले,कुछ महीने हृदय में राम को उतारते, तो ये हश्र न होता।”
“और बॉलीवुड के लेखकों-निर्देशको,कलाकारों को कोई मैसेज ?
” उनसे तो यही कहूंगा कि इस दौर में लोकप्रिय होना आसान है। लोकप्रियता बनाए रखना कठिन है। सफल होना आसान है,सफलता को बचाए रखना कठिन है। आज का सारा युद्ध इसी सफलता और इसी लोकप्रियता को बचाए रखने का युद्ध है
“ये लोकप्रियता और सफलता कैसे बचती है प्रभु..? “
“अहंकार रहित विनयशीलता के सतत अभ्यास और अपने कार्य पर एकाग्र होकर ध्यानस्थ होने से..! “
जय हे बजरंगबली..मैं धन्य हो गया।
तब तक मनोज पत्रकार की आंखें खुल गईं..सपने से जागा, तो बिजली जा चुकी थी।
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