जवानी में प्रवेश और कालेज लाइफ में सिर्फ आवेश ही आवेश होता है.जहाँ केमिकल लोचा कब कहाँ फंस जाय.कोई ठीक नहीं जहाँ हाथ का प्रयोग सिर्फ खाने नहाने और पैखाने में नहीं कभी कभी नीद लाने के काम में भी होता है। जहाँ मेरे जैसे लड़के को रोज सच्चा प्यार होता है.और रोज ब्रेक अप होता है.
youth की ये पीढ़ी बड़ी बेफिक्र है.दिल टूट जाने पर मुकेश को याद कर आंशू नहीं बहाती.बल्की हनी सिंह को याद कर “ब्रेक अप की पार्टी कर ली “बजाती है इस पीढ़ी के प्रेम का उत्थान किसी माल के सीढ़ी से शुरू होकर,शीघ्र ही किसी बिस्तर पर पतन का शिकार हो जाता है सोचकर अजीब लगता है.गुप्त रोग के शर्तिया इलाज करने वाले डाक्टरों को सोचना होगा.की शीघ्र पतन आखिर कहें तो किसे कहें.ये भी एक प्रकार का शीघ्रपतन है.प्रेम का पतन।महान चित्रकार वान गाग ने कभी कहा था.”प्रेम जीवन का नमक है”…ओशो कहतें हैं “प्रेम आत्मा का भोजन है”.
लेकिन आज के हालात देखकर लगता है ।इस भोजन में नमक का कोई हिसाब ही नहीं है.मुझसे कई मित्र पूछते हैं.”अतुल भाई आपकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है”?.उनको बतात़ा हूँ..कि “गर्लफ्रेंड के लिए आवश्यक योग्यता ही अपने पास नहीं है,तो कहाँ से होगी.इसके लिए कम से कम क्यूट और सेक्सी होना जरूरी है.थोड़ा हाट भी और कुछ नहीं तो कम से कम कूल होना जरूरी है.अपना तो पैदाइसी मुकदमा हैं इन शब्दों से.”
लेकिन हमारे वो दोस्त नहीं समझते जो लाइन किसी और पर मार रहें हैं. स्कूटी में पेट्रोल किसी और का भरवा रहें हैं.रिचार्ज किसी और का करवा रहें हैं.आर्गेज्म को फील किसी और के साथ कर रहें हैं…और आई लव यू किसी और को बोल रहें हैं.अब देखें जरा एक नज़र..तब पता चले की माजरा क्या है. किस्सा परसों शाम का है.
यूँ ही हम अपने चार पांच दोस्तों के साथ बैठे हुए हैं.पांडे घाट पर.हम यहाँ बैठते हैं तो शान्त रहने का प्रयास करते हैं..निरपेक्ष भाव से एक एक चीजों को देखते हैं.अब शाम होने को है..सूरज को देखकर लगता है कि बेचारा थक कर स्कूल से घर जा रहा है…उधर दशास्वमेध पर आरती की तैयारी चल रही है.कहीं जलोटा जी “हरी नाम का प्याला…जपो कृष्ण की माला” गा रहें हैं.
गंगा जी में चल रही नावें पानी का श्रृंगार कर रहीं हैं.नावें एक लय में चलती हैं.तो नाविक सिर्फ नाविक नहीं बल्की कुशल संगीतकार लगतें हैं…सामने एक नाव वाला एक दक्षिण भारतीय को समझा रहा है…”चलो तीन सौ देना हाँ हरीशचन्द्र से आगे नहीं जायेंगे”
मैं सोचता हूँ अजीब पागल है…”हरीशचन्द्र के आगे आज तक कोई गया है क्या..सबकी मंजिल तो वहीं हैं.वहीं जाकर ख़ाक में मिल जाना है.
इस बनारसी शाम के शोर में एक अजीब किस्म की शान्ति है..मेरे इस अध्यात्मिक चिन्तन को विराम देने के लिए भगवानपुर से हमारे परम सखा दिनेश यादव जी धमक जातें हैं.जिन्हें हम प्यार से जादो जी बुलातें हैं…जादो जी बीए में तीन बार फेल हैं…लेकिन प्यार की पढाई में डाक्टरेट कर रखी हैं उन्होंने.अभी अपने पांचवी गर्लफ्रेंड के सातवें ब्वायफ्रेंड हैं.आलिया भट्ट के उतने ही बड़े प्रशंशक हैं.जितने मोलायम सिंह के विरोधी.
कुछ ही दिन पहले उनको एक बार और सच्चा प्यार हुआ है.आते ही हाथ मिलातें हैं.और बगल में बैठे हमारे मध्य प्रदेश वाले शास्त्री जी से कहतें हैं…..”क्या यार इ भोसड़ी के…मूड चौपट हो गया.शास्त्री जी त्रिकालदर्शी की भांति आँखे बंद कर खोलतें हैं.और कहते हैं.”फ़िल्म देखने गये थे क्या जादो….” ? जादो जी सहमती में बकरे की तरह सर हिलातें हैं.शास्त्री कहतें हैं.”साले जादो पहिले गंगा जी में हाथ धो के आवो तो.तब छूवो हमें.न जाने कहाँ कहाँ..”
तब तो सबको मामला समझते देर नही लगती हैं.जादो जी आज गुल खिलाकर आयें हैं।” अबे सस्तिरिया कुछ छूने तक की तो छोड़ों साले.एक किस भी नहीं करने देती”..पहिले ही कसम खिला दिया था उसनें.”अपनी मम्मी की कसम खाइये की मुझे टच नही करेंगे.”..अबे शास्त्री टिकट से लेकर काफी तक पांच सौ रुपया खतम..हाथ में लगा घंटा..लो जी अब तो जादो जी की इस असफलता पर गगनभेदी ठहाके लग रहें हैं.हंसी थमती है.”मम्मी की कसम हा हा हा…जो रे जादो”
“यहीं पांडे घाट से छलांग लगा दो” विवेक पांडे भोपाल वाले अपना सुझाव देतें हैं।शास्त्री जी हमारे तरफ और बगल में बैठे विद्या पीठ के सखा शशांक मिश्र उर्फ़ मिसिर जी की तरफ देखकर मुस्करातें हैं.मिसिर जी हिंदी साहित्य के छात्र हैं…लेकिन प्रेम साहित्य का प्रगाढ़ अनुभव है उन्हें…वो अपने पुराने अनुभवों से समझा रहें हैं.. “देखो जादो तुम साले पहले उसे प्यार तो करो…हवस के पुजारी कहीं के..फिर हंसी शुरू…मिसिर जी खुद को सम्भालते हैं….
“देखो जादो तुम डाइरेक्ट लाल किला पर झंडा फहराना चाहते हो..अबे यार आजादी के लिए न जाने कितनी लड़ाइयाँ और बलिदान देने पड़तें हैं.थोड़ा धैर्य रखो.उसका चेहरा हाथों में लो और कहो.की “हमार जानेमन तुम्हारी आँखे सिर्फ आँखें नहीं हैं..एकदम कजरौटा की पेनी हैं..तुम्हारे होठों के आगे पहलवान का आठ रुपिया वाला लौंगलाता भी फेल है…तुम्ही हो तो हमारे जीवन में अंजोर हैं..नही तो पूरी दुनिया में दिनवे में अन्हरिया घेर लेता”.तब देखो कैसे तुमसे लिपट जायेगी”
हा हा हा 😀 फिर वहीं ठहाका गूंजत़ा है। “वाह मिसिर रजा का कहला भाय” शास्त्री जी पीठ थपथपाते हैं….जादो जी को लगता है न्यूटन का चौथा नियम मालूम हो गया।
अब सब हमारी तरफ मुखातिब हैं..हम इन चार लौंडों में यूँ तो थोड़े छोटें हैं.पर हैसियत किसी बुजुर्ग की रखतें हैं..सब बहुत सम्मान करतें हैं.जादो जी पूछते हैं…”अतुल भाई सच बताइए कोई नहीं है.?”…मानो यक्ष युधिष्ठिर से पुछ रहा हो.हम कहतें हैं “नहीं भाई..जादो जी संतुष्ट नहीं होतें हैं “यार इतनी ज्ञान की बातें करतें हैं आप इ सब बिना अनुभव के ? हम समझातें हैं अब…देखो सब…पानी में उतरकर तैरने और किताब पढ़कर तैराकी में पीएचडी कर लेने में अंतर है.हमें पीएचडी वाला ही समझ लो.हमारे इस उत्तर से कोई संतुष्ट नहीं होता.अरे यार अब यहाँ भी ज्ञान की बातें न करिये उ फेसबुक तक ही रहने दीजिये.
कैसें मान लें हम यार शास्त्री का तीन गर्लफ्रेंड….हउ दरभंगिया का तो पूछिये मत पैदाइसी चरित्रवान है…..पांडे और विवेक तिवारी तो हमारी मंडली में डबल डबल गर्लफ्रेंड वालें हैं.अब मिसिर जी कहतें हैं..”सच बताइए अतुल भाई आपकी एक्को नहीं है”..जमाना तो डबल का है..देखिये सब डबल-डबल हैं. हमको अब खीस बरता है…”अबे चेतन भगत की कसम खाकर कहता हूँ जादो..हाफ गर्लफ्रेंड तक नहीं है…तुम साले डबल की बात करते हो।”एक टेबल तोड़ ठहका गुंजायमान होता है..इतनें में हमारे दरभंगा वाले झा जी का प्रवेश.दरभंगा में इनके पित़ा जी की रामलीला मंडली थी.जिसमें ये राम बनते थे.
एक बार यूँ ही इनके किसी कार्यक्रम में बिहार की कोई कन्या इनके रूप लावण्य पर इस कदर मोहित हो गयी की.इन्होने जनक वाटिका वाला प्रसंग.जनेरा के खेत में करना उचित समझा.कुछ गाँव वालों ने देख लिया.बस रामलीला शुरू होने से पहले ही लंका दहन हो गया.इनके पिता जी नाराज.मंडली की बदनामी के डर से इनको संगीत पढने के लिए बनारस भेज दिया है.अब गातें हैं खूब ।कभी कभार अपने मकान मालिक के बडकी बेटी को अकेले में आरोह-अवरोह समझातें हैं.तभी शास्त्री कहता है..”तुम साले दरभंगिया पैदाइसी.चरित्रवान हो…तुम्हें वृन्दावन में पैदा होना चाहिए था.”
बस इतने में चाय का आरडर..घाट से चने का भूजा शास्त्री जी लातें हैं.मिसिर कहता है..”साला सस्तिरिया ही दाम पीट रहा है.अब चुप भी कर मिसिर तूम्हारी तरह हमारे बाबू छापते नहि हैं” इतने में…शास्त्री जे के चाइना मोबाइल बजता है….”नमामि शमीशाम निर्वाण रूपम”फोन रिसीव कर उठ जातें हैं.जादो जी मुझसे कनखिया के कहतें हैं अतुल भाई.
“आजकल सस्तीरिया भोसड़ी के लखनऊ वाली को सेट कर लिया है और हमें प्रवचन देता है की तुम जादो किसी लड़की को माल और सामान से ज्यादा नहीं समझते”….एक हंसी छुटती है…
हम पूछते हैं अबे भोपाल वाली का क्या हुआ..जादो जी मेरी उपर तरस खातें हैं,आपको कुछ पता नहीं न…एक दिन सस्तिरिया कह रहा था..”यार लखनऊ वाली पीछे से बड़ी सेक्सी लगती है….ये एकदम सच्चा प्यार है एकदम दिल से. “झा जी भी कहतें हैं खुश होकर.अतुल भाई कल यार वो किराने की दूकान वाली सेट हो गयी। हम कपार पीट लेतें हैं.और मुंह से अपने आप निकलता है.
साले दिल है कि बिरला हास्टल है