1955 के आस-पास मुंबई के एक घर में पति-पत्नी में सलाह चल रही होती है कि उनका बेटा बड़ा होके क्या बनेगा? माँ कहती है.. नही ये पढ़ेगा …..पिता कहतें हैं..नही ये वही करेगा जो मै कर रहा हूँ ।ये सलाह धीरे-धीरे तकरार में बदलती है तभी बगल के कमरे से तबले की आवाज आती है। माँ-बाप एक दुसरे को देख के मुस्कराते हैं.जाके देखतें है कि उनका लड़का तबला बजा रहा है.उनके आश्चर्य का ठिकाना नही होता है। दोनों की आँखे चमक उठती हैं,वो फुले नही समाते, पिता की छाती गर्व से चौड़ी हो जाती है,माँ अपने लाल को चूमती है ,बलैयां उतारती है.
और बेटे का रुझान देखकर अपनी हार स्वीकार कर लेती है ।अब पिता तबला सिखाना शुरू करतें और लड़का तबले से खेलना।जिस उम्र में आजकल माँ-बाप बच्चों को बैट-बाल थमा देतें हैं.उस उम्र में वो पंजाब घराना के पितामह उस्ताद कादिर बक्श की गतें याद करता है।वही कादिर बक्श जिन्होंने पागल हाथी को गजपरन सूना के अपने वस में कर लिया था.पिता सिखाते जातें हैं और आश्चर्य से भरतें चले जातें हैं.ठीक महाभारत के अर्जुन की तरह अपने अभिमन्यु को देखकर।
आपको बता दें, लडके के पिता उस्ताद अल्लाह रख्खा खान हैं वो तबला के 6 घरानों में से एक पंजाब घराना के प्रतिनिधि तबला वादक हैं. जिनकी दुनिया दीवानी है और माँ बाबी बेगम एक कुशल गृहणी हैं.इन्ही के घर 9 मार्च 1951 को जाकिर का जन्म होता है और यहीं से शुरू होती है एक अद्भुत कलकार की यात्रा, जिसने आज एक परम्परा को जन्म दिया है, जिसने तबले को स्वतंत्र वाद्य की श्रेणी में खड़ा कर दिया है।
ZAKIR HUSSAIN की प्रारम्भिक अध्ययन sent michal high schol मुंबई में होता है । 12 वर्ष की उम्र में वो पहली बार पिता के साथ विश्व भ्रमण पर निकलतें हैं । दुनिया भर में बजातें है खूब शोहरत होती है दुनिया के नामचीन कलाकारों के साथ संगति करतें है .खूब सम्मान मिलता है । कई सोलो एल्बम आतें है हीट होतें हैं .भारत सरकार उनकी लोकप्रियता से प्रभावित होकर 1988 में पदम् श्री से नवाजती है.
पर दुनिया भर के संगीत प्रेमीयों के बिच जाकिर का नाम तब होता है जब 1992 में उनके एल्बम ‘प्लेनेट ड्रम’ के लिए ग्रैमी अवार्ड मिलता है,फिर अपने पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए खुबसूरत व्यक्तित्व के धनी ZAKIR HUSSAIN जी का झुकाव फिल्मों की तरफ होता है.मलयालम फिल्म वानप्रस्थ में पहली बार म्यूजिक कम्पोज करतें हैं। जिसे क़ान फिल्म फेस्टिवल में ग्रैंड जूरी अवार्ड मिलता है.उसी फिल्म के लिए 2000 में भारत सरकार उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार देती है,वो कुछ और फिल्मो में काम करतें है जिनमें in custady,the mystic masser,little budhha और साज़ प्रमुख हैं ।
बाकी वाह ताज के विज्ञापन ने तो उनका भारत भर में घर-घर मशहूर कर दिया.
भारत सरकार एक बार फिर 2002 उनकी कला का सम्मान करती है और पद्मभूसण से नवाजती है । 2005 से 2006 तक वो प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी में बतौर गेस्ट प्रोफेसर भारतीय संगीत की बारीकियों को दुनिया को बतातें हैं.एक बार फिर 8 फरवरी 2009 को समकालीन म्यूजिक अलबम की श्रेणी में उनके एल्बम “ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट” की फिर ग्रैमी अवार्ड मिलता है और भारत के कलाकारो को सीना चौडा करने का अवसर.
जाकिर के व्यक्तित्व से रूबरू होना है एक शताब्दी से रूबरू होना है सम्भव है वो “धा टित धा टित धा धा टित धाग तिना गिना” बजाये और आप विस्मित होकर रह जाएँ या फिर वो गत शुरू करें “कत धिकिट कत गदीगन”…… और जब द्रुत लय में …..नग नग बजाएं तो आप हवा में उड़ने लगें दरअसल उनका पूरा व्यक्तित्व विलछण सक्रियता का अनूठा उदाहरण हैं.
उनकी उपलब्धियां एक पन्ने में समेटने लायक नहीं हैं और न ही उनके योगदान को एक किताब में लिखा जा सकता है.
1963 में शुरू सांगीतिक यात्रा आजतक अनवरत जारी है । आज ZAKIR HUSSAIN जी साल में 150 से ज्यादा कंसर्ट करतें हैं। साथ में उनकी पत्नी Antoniya minemcola ,जो की एक कथक डांसर हैं रहतीं हैं दो पुत्रियो के पिता हैं.और दुनिया भर के असंख्य तबला वादकों के पितामह,और जिस तरह की सजगता,सक्रियता,कला निपुणता और
बेबाकी उनके व्यक्तित्व से प्रगट होता है वो अद्भुत है.ये महान कलाकार जीवन को समग्रता से जीने की तहजीब सिखाने के लिए प्रेरित भी करतें हैं। आज उनको जन्मदिन की बधाई और दीर्घायु की कामना ताकि दुनिया उनके थाप से आनंदित होती रहे..