युवा नेता बनाम ‘युवा तुर्क’ ( चन्द्रशेखर की पुण्यतिथि पर विशेष )

0
2687

बहुत छोटा था। तब ये भी कहाँ पता था कि लोक सभा क्या होता है और विधानसभा क्या होता है।

लेकिन उस वक़्त नेताओं की गाड़ियां और आसमान में उड़ते हेलिकॉप्टर ये बताने के लिए काफी थे कि इलेक्शन आ चुका है और हर छोटे-बड़े खाली मैदान पर ‘ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद’ के नारे लगाए जा रहें हैं।

बस उन्हीं दिनों एक सुबह बड़े पिताजी नें कहा,”चलs चंद्रशेखर जी के देखे चले के बा।”

तब मैं क्या ही जानता था कि चंद्रशेखर जी कौन हैं।

उस वक़्त एक बालमन के लिए तो सारी उत्सुकता इस बात की थी कि भाषण के बाद बाबूजी समोसा खिलाएंगे और जो-जो कहूँगा वो-वो खरीद देंगे।

मुझे याद है,वो खेती का सीजन था। बाबूजी यानी बड़े पापा नें जल्दी-जल्दी खेतों का काम निपटाकर अपना मटका वाला कुर्ता पहना,धोती पहनी और मुझे कंधे पर लेकर पैदल ही सभा स्थल की तरफ़ चलने लगे।

सभा स्थल थोड़ी दूर था। आस-पास खेतों में मकई बोनें की तैयारियां जोरों पर चल रहीं थीं लेकिन मैं हैरान था कि सब लोग जल्दी-जल्दी उस नेता को देखने और सुनने क्यों जा रहे हैं,जिसको सैकड़ों बार वो पहले भी देख चुके हैं। और हर राजनीतिक बहस में सुबह-शाम उसका चार बार नाम लेतें हैं।

बहरहाल,थोड़ी देर में चंद्रशेखर जी कार से आ गए। सफेद कुर्ता-धोती, सफ़ेद दाढ़ी और माला से लदा एक गरिमामयी व्यक्तित्व।

देखते ही देखते उँघ रही जनता में एक नया जोश आ गया। फ़िज़ाओं में एक नई लहर सी पैदा हो गई।

एक तरफ़ से

“चंद्रशेखर जी…”

दूसरी तरफ से

“ज़िंदाबाद-ज़िंदाबाद” होने लगा।

लेकिन तब चंद्रशेखर जी काफी बूढ़े हो चले थे। भाषण भी वो खड़े होकर नहीं दे सकते थे। उन्होंने बैठकर भाषण दिया।

भाषण में उन्होंने क्या कहा, मुझे कुछ भी याद नहीं क्योंकि तब तो सारा ध्यान समोसे पर अटका था। आख़िरकार भाषण ख़तम हो गया,मेरा समोसा भी।

लेकिन मैनें देखा,भाषण के बाद लौटते समय तमाम लोग उदास थे। उनके चेहरे कुछ कह रहे थे। उनके चेहरे अब बता रहे थे कि उनका अपना नेता अब बूढ़ा हो चला है।

रास्ते में लोग कह रहे हैं।

“अब लागता ढेर दिन जिहन न, काहो रामजी..!”

“का कहला हो, मरद बूढ़ा गइल…।”

“मरद बूढ़ा गइल”

भोजपुरी ये एक वाक्य भर नहीं था। ये भाव था,उस जनता का जो अपने नेता को हीरो बनानें की क्षमता रखता है।

लेकिन अब उसका नेता बूढ़ा हो चला था और उसको देखने के बाद मेरे बाबूजी के जवान कंधे भी थोड़े झुक चले थे।

उन्होंने झट से कहा,”अब पैदल चला,हम कान्ही पर लेके ना चलब..!”

मैं पैदल चलने लगा… और मैंने महसूस किया कि एक वक्त के बाद नेता के साथ उसकी जनता भी बूढ़ी हो जाती है।

(अब यहाँ से स्क्रीन प्ले की भाषा में एक ‘cut to’ लगाता हूँ.. दृश्य बदलता है।) 😊

जुलाई की आठ तारीख़…सन दो हजार सात..!

अभी बलिया रेलवे स्टेशन पर सुबह के चार बज रहें हैं। रात को हल्की बारिश हुई है। मैं यानी,अतुल कुमार राय दसवीं का छात्र। एयरफोर्स और नेवी की तैयारी हेतु बलिया में कोचिंग करने लगा हूँ लेकिन कोचिंग से ज्यादा मन संगीत में रमने लगा है।

तबला,हारमोनियम और बैंजो की इकठ्ठा आवाजें मुझे फिजिक्स,कैमेस्ट्री की मोटी-मोटी क़िताबों से ज्यादा बेचैन करनें लगीं हैं।

आज गुरु पंडित रामकृष्ण तिवारी से पहली बार मिलने रसड़ा जा रहा हूँ कि अचानक एक हॉकर आता है और कहता है..

“आज की ताजा खबर…!”

“बलिया के लाल पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की मृत्यु!”

ट्रेन में चर्चा चलने लगती है..।

“चंद्रशेखर जी चल गइनी..?”

मैं देखता हूँ,उस बोगी के तमाम बुजुर्गों की आंखें,एक झटके में खामोश हो गई हैं।

अचानक, उन सबकी आँखें नहीं,दिल भी कहीं भीतर ही भीतर रोनें लगा है।

लेकिन मैं उस वक्त भी समझने में असमर्थ हूँ कि चंद्रशेखर होना और चंद्रशेखर का न होना क्या होता है।

उसके बाद मैं बड़ा हो जाता हूँ। बलिया से बनारस। और हाल फिलहाल कुछ सालों तक मैनें तीन वहीं चीजें सुनी हैं जो बलिया का हर युवा सुन चुका है और उसनें मान लिया है कि चंद्रशेखर उसके लिए इन तीनों लाइनों में सिमट जातें हैं..

“चंद्रशेखर बलिया ख़ातिर का कइलन ?”

“उनकर भतीजा पप्पू सब जमीन हड़प लिहलें।’

“धनबाद में सूरजदेव-रामाधीर सिंग के गुंडा बनावल इनके ह।”

लेकिन मेरा दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य..मैं बचपन से एक जिज्ञासु आदमी..

इधर कुछ साल पहले तक मेरे लिए इब्राहिम पट्टी के किसान परिवार के लड़के का देश का प्रधानमंत्री बन जाना रोमांचित करने लगा।

फिर मैंने तमाम लोगों को पढ़ा, हरिवंश से लेकर रामबहादुर राय..मेरी जेल डायरी से लेकर उनके तमाम लेख..

मैं हैरान था। संसद में उनके भाषण में दिखता उनका अध्ययन,उनकी गम्भीरता और विद्वता हैरान करने लगी।

और ऐसा लगा कि ऊपर की तीन लाइनों में चंद्रशेखर को ख़तम कर देना तो एक साजिश मात्र है।

खासकर बलिया के युवा नेताओं के लिए जो खूब बढ़िया कपड़ा पहनकर,स्कार्पियो निकालकर और नेताजी को बधाई का होर्डिंग्स लगाकर ख़ुद को ज़बरदस्ती नेता कहलवाने पर आमादा हैं।

जो एक झटके में किसी पार्टी के नेता को कुछ भी कह देतें हैं।

वो नहीं जानते कि किसी को कुछ भी कह देंनें से पहले सौ बार सोचना ज़रूरी है। इनको पता नहीं कि चंद्रशेखर जी को जिस दिन संसद में बोलना होता था,उस दिन रात भर वो सोते नही थे.. बल्कि पढ़ते-लिखते थे।

ठीक वैसे ही जैसे एक विद्यार्थी किसी प्रतियोगिता की तैयारी करता है। तब जाकर लोग उनको इतना ध्यान से न सिर्फ़ सुनते थे बल्कि लोहा मानते थे।

लेकिन इधर तो पढ़ना-लिखना दूर हमनें साधारणीकरण को एक फार्मूला बना दिया है। हमनें विराट व्यक्तित्वों को चंद लाइनों में सिमटा दिया है।

तभी तो नेहरू आज हमारे लिए अय्याश हैं। लोहिया लूजर। अंबेडकर सवर्णों के दुश्मन। दीनदयाल और श्यामाप्रसाद बौद्धिक रूप से अछूत। आचार्य नरेंद्र देव,जेपी और राजनारायण को पढ़ने की जरुरत हम समझते नहीं।

और हमें लगता है कि हम नेता हैं ?

जबकि चंद्रशेखर जी को सुनकर लगता है कि उनके अपने विचार तो हैं..लेकिन अन्य विचारधाराओं का कितना गहन,अध्ययन मनन और चिंतन है।

न सिर्फ चिंतन है बल्कि उनकी निहित अच्छाइयों के प्रति एक उदारवादी सम्मान की दृष्टि है। वो कभी-कभी एक नेता कम एक स्कॉलर ज़्यादा लगते हैं।

तो आज आज जब बाग़ी बलिया की राजनीति “मां-बहन और बेटी” पर केन्द्रित हो गई है। तब अपने युवा नेताओं से कहना चाहूंगा कि चंद्रशेखर जी के पोस्टर लगाकर और फूल माला चढ़ाकर इतिश्री करना बंद करें।

चंद्रशेखर की राजनीतिक सोच और समझ के करीब जाने की कुव्वत पैदा करें। थोड़ा पढ़े-लिखें, थोड़ा चिंतन, मनन करें।

इसके अभाव में आप हल्के हो चुके हैं। आपके पास पद है लेकिन वो राजनीतिक गरिमा नहीं है।

आपको ये लगता है कि राजनीति में पढ़ना-लिखना जरुरी नहीं है। राजनीति सिर्फ चक्का जाम करने और गाली-गलौज के साथ ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद करनें से चली आएगी तो आपको बिल्कुल गलत लगता है।

हो सकता है, आप नेता हो जाएंगे.. मंत्री,विधायक और सांसद भी बन जाएंगे.. लेकिन याद रखिएगा,अब किसी अतुल कुमार राय के बाबूजी खेत का काम छोड़कर उसे कंधे पर बिठाकर आपको सुनने न कभी जाएंगे, न आपके मर जाने पर ट्रेन की एक समूची बोगी खामोश हो जाएगी।

atulkumarrai.com

Comments

comments

Previous articleबॉम्बे से चिट्ठी बनारस के नाम !
Next articleएक विवाहित कवि का दुःख !
संगीत का छात्र,कलाकार ! लेकिन साहित्य,दर्शन में गहरी रूचि और सोशल मीडिया के साथ ने कब लेखक बना दिया पता न चला। लिखना मेरे लिए खुद से मिलने की कोशिश भर है। पहला उपन्यास चाँदपुर की चंदा बेस्टसेलर रहा है, जिसे साहित्य अकादमी ने युवा पुरस्कार दिया है। उपन्यास Amazon और flipkart पर उपलब्ध है. फ़िलहाल मुम्बई में फ़िल्मों के लिए लेखन।