जहाँ देश का एक बड़ा हिस्सा जल संकट से गुजर रहा हो….जहाँ सुबह-सुबह भीषण धूप में लाखों,करोड़ों महिलाएं लाइन लगाएं खड़ी हों…वहां अपने वातानुकूलित कमरों बैठकर बिसलेरी पीते हुये सेक्स पर चिंतन करना ही आयातित बौद्धिकता की निशानी है।
कुछ दिन से देख रहा तो ये आभास हो रहा कि ऐसा स्त्री विमर्श और चिंतन तो अन्यत्र ।दुर्लभ है..हाय!नज़र न लगे इस विमर्श को.जरा देखिये तो..
आज जहाँ देश की लाखो करोड़ों स्त्रियां शिक्षा,स्वास्थ्य और रोजगार और आत्मनिर्भरता जैसे मूलभूत सुविधाओं से वंचित हों वहां कुछ क्रांतिकारी इस पर विमर्श करें की सेक्स फ्री होना चाहिए की बन्धन में बंधकर करना चाहिये…सहमति से करना चाहिये की दबाब में आकर।
पता न क्यों इन्हीं चन्द कारणों से हिन्दुस्तान के एक खास विचारधारा का ये प्रायोजित स्त्री विमर्श मुझे दो कौड़ी का लगता है। जहाँ नारी स्वछँदता पर लिखीं अकादमी की पुरस्कृत कहानियां,किताबें,उपन्यासों में स्त्री मात्र एक देह बनकर रह जाती है..मात्र एक सेक्स आब्जेक्ट। जहाँ उसकी आत्मा की कोई सुध लेने वाला नहीं होता है..
जहाँ ये कोई बताने वाला नहीं होता की स्त्री आत्मा है शरीर नहीं… वो पूज्य है भोग्य नहीं।
लेकिन उनसे तो आत्मा की बातें करना ही बेमानी है।
जिनकी विचारधारा में ऐसा मैन्युफैक्चरिंग फॉल्ट है कि आत्मा और चेतना जैसे शब्दों से उनका मुकदमा चलता है…..
जिन्होंने क्रांति के चक्कर में मनुष्य की आत्मा को इतना इग्नोर किया है की आखिरकार एक दिन किसी रोहित वेमुला को अपने सुसाइड नोट में लिखकर मरना पड़ता है…
“आजकल आत्मा और शरीर के बीच चौड़ी होती खाई को महसूस कर रहा हूँ”
ओह!
पता न हिन्दुस्तान के ऐसे आयातित वैचारिक विमर्श कब रुकेंगे…ये विचारक आत्मा की सुध लेना कब शुरु करेंगे..?
पता न कब ये बौद्धिक ठीकेदार समझेंगे की स्त्री को पहले सेक्स नहीं.. भोजन,पानी, की जरूरत है..
उसे सही समय से उचित शिक्षा.स्किल डेवलपमेंट की जरूरत है।
ताकि उसकी सबसे बड़ी और जरूरी समस्या आर्थिक निर्भरता की समस्या खतम हो सके..
पता न कब ये देखेंगे की
वो पानी के लिये लाइन में खड़ी औरत आज जल समस्या इतनी ग्रस्त है की उसे सेक्स विमर्श करने की फुर्सत नहीं है..न वो किसी कविता कृष्णन को जानती है ।..
न वो जानना चाहती है की स्त्री विमर्श क्या होता है..न वो कभी जान पायेगी की “द सेकेण्ड सेक्स” लिखने वाली ‘सीमोन द बोउआर’ सात्र की कौन थीं..?
अरे हे बौद्धिक चिंतकों और उनके मानस पुत्रों बन्द करो ये विमर्श..
इस पर चर्चा करो की हमारे नदी,तालाब कैसे बचेंगे ताकि धूप में कोई तेरह साल की मुनिया पांच घण्टे लाइन में खड़ी न रहे।
अब वातानुकूलित सेमीनार हालों से निकलो और बाहर आकर बताओ की
स्त्री आर्थिक रूप से आजाद कैसे होगी।?
उन किताबों को एक आलमारी में रखकर ताला मार दो..जिसमें स्त्री दिन रात मनचाहे सेक्स पार्टनर बदलती है..
अब लिखो कोई नये उपन्यास और..जिसमें किसी औरत ने खड़ा कर दिया हो अपने पति से भी बड़ा बिजनेस..
लिखो कोई कहानी जिसमे गाँव की एक लड़की ने तमाम दुश्वारियों के बीच पास की हो भारत की कोई सबसे कठिन परीक्षा।
अब लिख दो एक कविता जिससे पता चले की स्त्री सिर्फ देह नहीं वो आत्मा है..जिसके बिना परमात्मा से भेंट सम्भव नहीं है..