इवेंट मैनेजमेंट बनाम देहाती मैनेजमेंट

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village story,

समाचार ई बा कि बबलुआ के हाड़े हरदी लागे के तैयारी हो रहल बा..हित-नात लोग आवे के तैयारी में बा.।बुढ़िया फुआ काल्ह ओहपार से आ गइल बाड़ी।घर-दुआर रँगा,पोता रहल बा.दुआर पर मड़ई के जगह करकट लाग गइल.गाय के जहाँ चरन माटी के रहे उ पक्का के बन गइल.छपटी काटे वाली मशीन जवन खमिहा में रहे तवन करकट में आ गइल.

दुआर पर बइठे खातिर दस गो प्लास्टिक के कुर्सी किना गइल बाड़ी स..काहें की गाँव में खटिया बीने वाला अभी एक्के आदमी खेदना बा,जवना के मेहरारु रोज ओकर खटिया खड़ा कइले रहे ले.हेने बबलुआ निरहुआ लेखा मुँह बना के जब टिनहीया छाप स्टाइल में एक्के सांस में कहता कि … “ए डार्लिंग,सोना,मोना,जान,आर यू देयर ? फीलिंग  एकदम्मे टायर्ड..मनवे रह-रह के दुकइसन दूनी हो जा रहा है जी.मन कर रहा देवाल तूर के आजे बैंड बाजवा दें.”आही दादा..मेहरारु समझावत बिया..की “सेम हेयर स्वीटू.. तनी सा पेंशन्स रखो”.

स्वीटू ससुर के सरकंडा लेखा मुंह देख के बुझाता की “अच्छे दिन” के इंतजार कइल कातना भारी पड़ेला.अच्छा.. एगो बात अउर कहीं..आज काल्ह सुन-सान रहे वाला गांव के बहरा एगो पुल रहे..हमेशा दू-चार दस-गो लईका बइठल रहs स..दू चार साल से पुल पर बुझाता की केहू अइबे न करे ला.काहें की गाँव में सेयान लइके नइखन स.कवनो बारह पास करते आर्मी में हो गइल.कवनो हाईस्कूल पास करते बनारस आ कोटा कोचिंग करे चल गइल.

लेकिन भला होंखे लगन के दिन,बियाह-शादी के बहाने कुछ नवेडा दिल्ली के रहनिहार लोग आइल बा। फरीदाबाद बाद से फेंकू पांड़े के लईका झब्बूआ,आ नवेडा से नीलकंठ तिवारी के लइका रजेस.अभी दूनु जाना बइठ के बतियावत बा लो.”
“कि अरे यार..गांव में अब पहिले वाली बात नइखे रह गइल..सरवा तनिको नीके नइखे लागsत..का हो गइल गाँव के रे सनुआ?

तब तक पता चलल ह कि एक जाना नवेडा वाला रहनिहार जिनकर नाव पंकज ह, ऊ पापा के जगहा मामा बन गइल बाड़े.ल ई कब ख़ेला भइल भाई ? त  पता चलल बा कि अपना भतीजा के बियाह में बचपन के पियार पिरयँका आइल बाड़ी,तबसे पंकज बाबू के पेयार फफा के पुली पर बही रहल बा.जस-जस पुरुवा हवा बहsता,तस-तस एकही गाना बाजsता..आ करेजवा के लालटेन भकभकाए लागत बा.

“जेह घरी धनिया कुंवार रहलू …..पियवा से पहिले हमार रहलू”

हेने दुआर के बहरा बबलुआ के बाबूजी भदइलवा हाड़ा लेखा पिनकल बाड़े.खरहर फेंक के बिसराम बाबा के समझावत बाड़े.”एह ससुर के खेत,बारी बेच के  बैंगलोर में आठ साल पढ़ावल-लिखावल सब डाँड़ चल गइल हो बिसराम बाबा.”
बाबा के बुझाते नइखे कि इनका बेटा के तिलक में तीन दिन बचल बा,आ ई काहें अपना लइका पर पिनकल बाड़े। चश्मा खोल के पूछते बाड़े-“अरे! का भइल जी..लइका हs जाएं दीं.”?

आतना सुनते बबलुआ के बाबूजी के खिस अउरी चार लाठा ऊपर हो जाता- “ए महराज रउरे बताईं ?का बियाह में आज ले हमनी के गांव में कवनो इवेंट मैनेजमेंट आइल बा.? आ की हई कुकुर भोज भइल बा कबो ? कादो सब केहू खड़ा होंखे खाना खाई ? ई ससुरा बियाह में ना जाने कवना के सगरी बेवस्था के ठीका दे देले बा.का त हमनी के कुछ नइखे करे के..सब बेवस्था उहे करीहन स.अइसन होला का जी. ?

सुननी ह की सत्तर हजार के त खाली वीडियो केमरा भइल बा.का दो कवन हवा में उड़े वाला कैमरा से  बीडियो रिकॉडिंग होई.बताईं हाई अति देख जाता ?..ना उहनी के अंग्रेजी हमरा बुझाता ना ईवेंट मैनेजमेंट..ना जाने कवन दिन भर दिस,दैट आ तेरह बाइस बतियावत बाड़े स। एह..सार से हम कहनी.. की अरे ई गांव ह,ई सब इहाँ शोभा न देला..ई कुल तामझाम शहर में नीक लागेला..इहां हई शहरी मॉडल ना चली..इहाँ गाँव मे अइसन-अइसन विभूति बॉडी जवन तीन पात खाली त उ एक हाली डकार लेली स.

ओकरा आधा बाल्टी बुनिया सत्ताईस गो बड़की पूड़ी से पेट भरेला..हई झमकउवा डरेस पेहेन के लईकी चिप्स लेखा कचौड़ी चलइहन स त मय गाँव गारी दी रे बौचट पाड़ा बकलोल..ई सतुआ खाए वाला लोग ह इहाँ सोहारी से पेट ना भरी.
एगो जमाना रहे कि गांव में केहू के घरे बियाह पड़े त लोग एक महीना पहिले से खटिया बीने लागे,टूटल चौकी के पटरा ठोकवाए लागे,घर में मेहरारू लेवा आ रजाई सीए लागsस.आजी चाउर फटके लागsस

चाची के गेंहू धोवत-धोवत हाथ दरद करे लागो.हेने घर में लोग दू दिन दूध पियल छोड़ देव,बड़का बाबा के सख्त हिदायत रहे कि “सगरी दूध के दही जामी,केहू पिही ना.मंगरा के बेटी के बियाह बा.आगे बबन के लइका के तिलका बा..गांव के इज्जत के बात बा।..”सभ एह तरे सहयोग करो, मानों गांव में एक आदमी के ना,सभके घरे बियाह पड़ल बा..बियाह के दिने सब आपन काम धाम छोड़ देव..केहू माड़ो के बांस काटत बा.केहू दुआर पर टेंट सामियाना लगावsता.केहू खोवा ले आवे गइल बा..केहू हजाम आ पंडी जी के बोलावे गइल बा..दुआर पर दस जाना बुढ़वा बाबा लो बइठ के पुरनकी बतकही छेड़ले बा लो.

सांझी खा खाये वाली पात बइठे त पता चले कि एक्के लाइन में मुनेसर आ सीमंगल बइठल बा लो..चार काठा गड़हवा खेत खातिर दूनू जाना में चार पुश्त से झगड़ा चल रहल बा.लेकिन आज एक्के पात में बइठल के खात ब लो..
आ जवन तिरछोल पूड़ी चलावत बा ओकरा से दुनु जाना के चकरोड खतिर मोकदिमा बा..लेकिन पात पर पूड़ी चलावत समय एको हाली ना बुझाई कि फलाना,फलाना में कवनो दुश्मनी बा,अउर आज जवन पूड़ी चलावत बा उ कई हाली इनका पर लऊर भी चलवले बा।

इवेंट मैनेजमेंट वाला लो के का बुझाई की गाँव मे एही के बहाने बड़-छोट,धनी-गरीब, परम्परा आ प्रेम के बहाने एक सूत्र में बन्हाइल रहे.शहर से आइल भाड़ा पर काम करे वाला लोग के कबो समझ में आई कि गाँव के दुःखी कोंहार आ नन्हकू हजाम परसु चमार जदी निःस्वार्थ भाव से तरकारी ना काटित लो अउर परसुआ के टोला के सब मेहरारु आपन काम-धाम छोड़ के आटा ना सनती स,त गाँव में कवना बाभन,क्षत्रिय,भूमिहार के काज-परोज ठीक से हो जाइत ? 

लेकिन जा रे करम..ई गाँव के नवका लौंडा नवेडा,आ दिली से बीटेक, एमबीए करते इंग्लिश मीडियम हो जात बाड़े स.बबुआ नौ साल के रहे तबे ओकर बाबा कहलन..की “ए बाबू लइका त गाँव छोड़ी. बाकी तहार हाथ भी छोड़ दी”
अब हम का कहीं जी.? हमरा आँखी के सोझा नेवता सोझा बा.बियाह में जाए के त पड़बे करी.एहमें न बबलुआ के दोष बा..ना ओकर बाबूजी के ना.कवनो ईवेंट मैनेजमेंट वाला कम्पनी के.

हम कई साल से देख रहल बानीं की हमरा आँखी के सोझा शहर के 2bhk फ्लैट में स्ट्रेस मैनेजमेंट आ गइल.. आ गाँव के खेत-खरिहान आ पलानी में इवेंट मैनेजमेंट।लोग देश-दुनिया के राजनीति में आतना परसान बा की ओकरा बुझात नइखे की लाइफ मैनेजमेंट करत-करत उ  का-का खो रहल बा,कहाँ जा रहल बा ? गांव में त इहै बुझाता की लोग अभाव में रहे त प्रेम से रहे।

आज ध्यान से देखीं त गाँव के चइत से चइता गायब बा, सावन में कजरी बिना गांव के सिवान सुन बा ?”शिव जी के मंदिर पर फगुआ गवाए दू साल पहिले बन्द हो गइल ? आज खेत रोपाई त कवन गीत गवाई.. ई  रूपमतिया भौजी के छोड़ के केहू नइखे बता सकत।

आजी जबसे स्वर्ग सीधरली तबसे जाँता के लगे गोइंठा रखाए लागल.अब जाँत पर मूस कूदत देखके मन उदास हो जाला। बुझाला ना कि अब फजीरे-फजीरे के गाई –
“जांतवाँ पीसत मोरा हथवा खीअइले की

नाहीं अइले ना

परदेसिया बलमुआ की

नाहीं अइले ना”

का करेजा बहरी ना आवेला जब पता चलेला कि बड़की बहिनिया के विदाई होते ही टोला में पिंड़ीया लागल छूट गइल?
तनी ममता आ बबीतवा से पूछीं कि झगरुआ के बियाह में तिलकहरू लो आई लो त का आजो “दीदी तेरा देवर दीवाना” के धुन पर ही गरियावल जाई ? एक झटका में भोजपुरी गीत संगीत भी “लागल करेजवा में तीर” से “लॉलीपॉप लागेलू” में बदल गइल?हमनी के गांव-जवार, भाषा, रहन,सहन,परब,त्योहार के असली सौंदर्य असली राग,जवना से कभी जीवन के  एगो अलगे रंग रहे,ऊ आज संक्रमित होके खत्म हो रहल बा.

गांव के सोहर, खेलौना, संझा-पराती, बारहमासा, रोपनी, जंतसार, पचरा, पिंड़ीया, कजरी, निर्गुन, बिदाई, बारहमासा, डफरा, गोंड़ऊ के गीत कहाँ बा ?

राजनीति त होते रही लेकिन ई सब हमनी के जीवन सँगीत ह..जेकरा सुर ताल से जीवन रूपी राग के सौंदर्य में वृद्धि होला..पूछल जरूरी बा..आ सोचल भी जरूरी बा ।
अउर स्मार्टफोन में जवान भइल पीढ़ी के समझावल जरूरी बा कि जिनगी में जस-जस पइसा आवता जीवन तस-तस नीरस काहें भइल जाता ?

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