बनारस बस एक शहर नहीं है,बनारस हमारी सनातन संस्कृति की वो सुगंधित धूप है,जिसके आध्यात्मिक महक ने समूची दुनिया को बार-बार अपने मोह पाश में बाँधा है।
गिनती नहीं कि बनारस पर कितनी कविताएं लिखीं गईं कितनी कहानियां और कितने उपन्यास लिखे गए.कितनी फिल्में शूट हुईं और कितने स्टार हूट हुए,कितने किसी सामान की तरह इसी शहर में छूट गए।
ये भी ठीक-ठीक अंदाजा लगाना मुश्किल है कि इस ऊर्जावान मिट्टी ने कितने संत,महापुरुष,संगीतकार ,साहित्यकार और कलाकार पैदा किये हैं,जिनकी मेधा ने समूची मनुष्यता को चमत्कृत किया है।
पाँच हजार साल से भी ज्यादा प्राचीन इस शहर के किसी घाट पर जब हम आंखें बंद करके बैठते हैं,तो सोचने पर विवश हो जातें हैं कि आखिर कौन सी जादुई शक्ति है,जो विलासिता के सारे संसाधनों से ध्यान हटाकर दुनिया भर के विदेशीयों को काशी की गलियों में खाक छानने पर मजबूर कर देती है।
वो क्या चीज़ है,जिसके कारण केनबरा के टॉम और बर्लिन की साशा इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर संस्कृत व्याकरण सीखने लगते हैं और कुछ दिन माथे पर त्रिपुंड,चन्दन टीका लगाए,चाय की दुकानों पर “का हाल है गुरु..महादेव” कहते हुए पाए जातें हैं।
वो क्या कारण है कि अमरीका के रॉबर्ट जीवन के चौदह-पन्द्रह साल सिर्फ तबला सीखने में बिता देते हैं और यहाँ से तबला ही नहीं बल्कि बनारसी मिज़ाज लेकर जब अमेरिका जातें हैं तो वहाँ स्कूल खोलते हैं..”महादेव स्कूल ऑफ़ म्यूजिक एंड योगा”
दरअसल इसके पीछे एक ही कारण है,वो है इस शहर की ऊर्जा,जिस ऊर्जा के मूल में भगवान शिव है।जहाँ शिव हैं,वहीं सृजन है,जहां सृजन हैं,वहीं आनन्द है।
एक ऐसा आनन्द,जो आपको एक क्षण में बनारसी बना देता है..वो आनंद कुछ और नहीं वो एक स्टेट ऑफ़ माइंड है। चित्त की एक ऐसी दशा है,एक ऐसा मिज़ाज जिसमें आध्यात्म संगीत,कला,साहित्य की गंगा निरन्तर प्रवाहित है।
और भाई साहब..इसी गंगा से रुबरु होने के लिए पूरी दुनिया बेकरार रहती है। हर आदमी चाहता है कि जीवन में कम से कम एक बार काशी का दर्शन जरूर करे।
आकर देखे कि आखिर बाबा विश्वनाथ की नगरी करोड़ों हिंदूओं के लिए मोक्ष की नगरी क्यों है ? विदेशी टूरिस्टों के लिए म्यूजिक,डांस,और मेडिटेशन,फोटोग्राफी का हॉट और सस्ता डेस्टिनेशन क्यों है ? दूर-दूर के छात्रों के लिए संगीत,साहित्य,कला सहित सर्वविद्या की राजधानी क्यों है।?
इधर इसी सवाल का जबाब तलाशने के लिए मेरे पास रोज दो-चार मैसेज आ जातें हैं कि अतुल भाई बनारस में कहाँ-कहाँ दर्शन किया जाए ?
अतुल भाई बस एक दिन रुकना है.वो कौन-कौन सी जगह है,जहाँ एक दिन में घुमा जा सकता है..?
कई बार सोचता हूं कि कैसे बताऊँ.? जिस काशी का कोना-कोना अपनें में इतिहास समेटे हैं,जिस काशी का कण -कण शंकर है ,उसे एक दिन में कैसे समझा जा सकता है .हम तो आज दस साल से बाबा की इस अलबेली नगरिया को जितना जानते हैं,लगता है बहुत कम जानतें हैं..जो जान भी गए हैं,उन्हें जानकर लगा है कि अभी बहुत कुछ है,जिसे जानना शेष है। दरअसल बनारस एक उलझी हुई वो खूबसूरत डोर है जिसके उलझन,अल्हड़पन,बेतरतीबी का भी अपना एक सौंदर्य शास्त्र है.जिसकी कमी उसका असली सौंदर्य है।
सो आज बहुत ताम-झाम और बिना किसी लंबी-चौड़ी साहित्यिक भूमिका बनाए सीधी-सपाट भाषा में शूरु करतें हैं कि दो दिन में काशी में क्या देखें,कहाँ रुकें,क्या खाएं और क्या खरीदें। काशी में क्या छोड़कर जाएं,काशी से क्या लेकर जाएं।
Varanasi Travel Guide
तो साहेबान..आप दिल्ली से आने वाले हों या देहरादून से,या आने वालें हों कलकत्ता और कोची से,या फिर भटिंडा या भागलपुर से।
एक बात तो साफ बात है कि आप अगर प्लेन से आएंगे तो बनारस के लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट पर उतरेंगे।
अगर ट्रेन से आ रहें हैं तो वाराणसी कैंट स्टेशन,मंडुआडीह रेलवे स्टेशन या फिर मुगलसराय स्टेशन पर उतरेंगे।

नहीं तो मान लेते हैं कि आपने बनारस आने के लिए रोडवेज बस का चुनाव किया है,तो आपका उतरना चौधरी चरण सिंह बस स्टॉपेज पर होगा।
लेकिब साहेब.. उतर जाने के बाद आपके सामने सबसे बड़ी समस्या आती है कि बनारस में रुका कहाँ जाए.. ? आप नेट पर तमाम होटल सर्च करते हैं,आपको टैक्सी,ऑटो वाले पचहत्तर सलाह देतें हैं.
आपके दूर के रिश्तेदार,और दोस्त बताते हैं कि “भाई हम जनवरी में गए थे तो फलां होटल में रुके थे।आप भी वहीं रुक जाओ”…
आखिरकार आप कन्फ्यूज हो जातें हैं कि रुकें कहाँ..? लेकिन नहीं,कन्फ्यूज होने के चक्कर में जल्दबाजी न करें। क्योंकि हम आपको बताते हैं कि आप..
बनारस में कहां रुकें ?
बहुत लोग बनारस आने के बाद जानकारी के अभाव में सबसे बड़ी गलती करतें हैं कि रेलवे स्टेशन पर उतरकर ठीक सामने दिख रहे होटलों में कमरा ले लेतें हैं और तब घूमने का प्लान बनातें हैं।
ये भी ठीक है..लेकिन तब ठीक है,जब आपके पास चार,पाँच दिन का समय है..या स्टेशन के आस-पास आप किसी आफ़िशयल काम से आए हैं,या फिर ऐसी कोई विकट परिस्थिति आन पड़ी है कि बनारस के सारे होटल भरे हुए हैं।
अगर आपके पास मात्र एक से दो दिन का समय हो,और आपका लक्ष्य,दर्शन और पूजन का हो,तो मैं कहूंगा कि आप कैंट रेलवे स्टेशन के आस-पास न रुकें।
क्योंकि आपकी ढेर सारी ऊर्जा और उससे ज्यादा आपका समय,पैसा,और सुकून कैंट रेलवे स्टेशन से विश्वनाथ मन्दिर,गंगा आरती,घाटों की तरफ आने-जाने में बर्बाद हो जाएगा।
आप कहेंगे भाई..ऐसा कैसे ?
तो उसका साधारण सा जबाब है..बनारस की प्राचीनतम ट्रैफिक व्यवस्था।

जिस व्यवस्था को आधा ट्रैफिक पुलिस संभालती है..कुछ हिस्सा छुट्टा घूमने वाले साँड़,बैल,गाय। बचा हुआ हिस्सा बेरोजगारी के मारे ऑटो,ठेले,खोमचे वाले सम्भाल लेतें हैं। बाकी की जिमेदारी बाबा महादेव की है।
लब्बोलुआब ये है कि एक बार मंगल ग्रह पर पुदीने की खेती करना आसान है,लेकिन बनारस में जाम की समस्या से निजात दिलाना मुश्किल है।
इसलिए सावधान- रांड,साँड़, सीढ़ी,सन्यासी के बाद पांचवा नाम ट्रैफिक का है..जिससे बचकर ही काशी घूमा जा सकता है।
नहीं तो पता चला आप कैंट स्टेशन के पास ही कहीं रुके हैं..और आपको शाम वाली गंगा आरती देखनी है..आप कैंट से जैसे ही गाड़ी में बैठकर दशाश्वमेध घाट की तरफ बढ़े..तब तक बीच में ही जाम लग गया..और दो घण्टा आप जाम में इस तरह फंसे की गंगा आरती का समय निकल गया।
फिर किसका दोष देंगे आप ?
इसलिए ध्यान रखें – अगर एक-दो दिन के लिए आ रहें हैं,और कोई मजबूरी नहीं है तो कृपा करके कैंट रेलवे स्टेशन की तरफ न रुकें।
आपके रुकने के लिए ऐसी जगह होनी चाहिये जहाँ से दर्शन करनें,घूमने,खाने,पीने की सारी जगहें आपसे चंद कदमों की दूरी पर हों..
यानी कि कितना अच्छा हो कि आप एक ऐसे होटल में रुकें,जहाँ से कुछ कदम की दूरी पर विश्वनाथ जी हो..अन्नपूर्णा और कालभैरव जी..कुछ ही दूरी पर गंगा जी..आपको वहीं से सारनाथ,बीएचयू, रामनगर आने-जाने का साधन भी मिल जाए ?
और तो और वहीं पर आपको बनारस की लजीज लस्सी,करारी कचौड़ी,और बनारसी पान। बनारस की मशहूर साड़ी,बढ़िया खाना,चौचक बनारसी चाट,और गोलगप्पे सब कुछ आस-पास उपलब्ध हो जाए.. ?

तो साहेब इन सब सुविधाओं के लिए सबसे बढ़िया जगह है,तो वो है बनारस का हृदय स्थल गोदौलिया,जहाँ से चंद कदमों की दूरी पर ये सब कुछ आसानी से उपलब्ध है।
आपको रेलवे स्टेशन से न मन्दिर आने-जाने के अनावश्यक खर्च जहमत उठानी है..न ही यातायात की चिल्लम पों में फंसने और न ही ट्रैफीक का रोना,रोना है। न ही आपको पूछना है कि भइया बनारसी पान और लस्सी कहाँ मिलेगा ?
आपको गोदौलिया में हर कैटेगरी के सस्ते महंगे गेस्ट हाउस,होटल आसानी से मिल जाएंगे।
आप एयरपोर्ट से या कैंट या मंडुआडीह से ऑटो या गाड़ी बुक करके आराम से गोदौलिया आ सकतें हैं।
- एयरपोर्ट से गोदौलिया की दूरी – 25 km
- कैंट रेलवे स्टेशन से – 6.9 km
- मंडुआडीह रेलवे स्टेशन से- 4.3 km
- मुगलसराय रेलवे स्टेशन से- 15 km
रुकने की समस्या समाप्त होते ही पहला सवाल होता है कि पहले
कहाँ घूमा जाए ?
तो एक से दो दिन में आराम से घूमने लायक जगह ये हैं
1- सुबह-ए-बनारस का दीदार, बोटिंग
2- गंगा स्नान,काशी विश्वनाथ,माँ अन्नपूर्णा,बाबा कालभैरव के दर्शन
3- सारनाथ
4- रामनगर किला
5- बीएचयू स्थित नवीन विश्वनाथ मंदिर,भारत कला भवन
6- संकटमोचन मन्दिर
7- मानस मंदिर
8- दुर्गाकुंड मन्दिर
9- अस्सी घाट,तुलसी घाट,लोलार्क कुंड
10- गंगा आरती,दशाश्वमेध घाट
अगर बनारस को ठीक तरीके से महसूस करना है,तो मैं कहूँगा कि आप अपनी काशी दर्शन यात्रा ठीक सुबह 5 बजे से शुरु करें। ये समय,वो समय होता है जब काशी की आध्यात्मिक ऊर्जा अपने सबसे उच्च स्तर पर प्रवाहित होती है।
चारों ओर से घण्टा घड़ियाल और शंख की आवाज,खिड़की-खिड़की से मंत्रोच्चारण,हर घर में बनें शिवालयों से निकलते मंत्र। हर दस कदम पर खुले संस्कृत विद्यालयों से निकलता बटुकों का रुद्री पाठ.
इधर सड़क पर आते ही गंगा स्नान और विश्वनाथ जी के दर्शन करने जाते दक्षिण भारत के लोग,ये सब मिलकर आपको एक ऐसे अभामयी ऊर्जा में ले जाते हैं,जिसको बस महसूस किया जा सकता है,बताया नहीं जा सकता.

इसलिए सुबह उठकर आप आ जाइये दशाश्वमेध घाट की तरफ,देखिये गंगा इठला रही है..सूरज अब बस निकलना ही चाहता है..तमाम घाटों पर सुबह के आरती की तैयारी चल रही है..इस पल को कैमरे में कैद करने के लिए होड़ मची है..। आपका भी मन करे तो आप भी फोटोग्राफ्स और वीडियो ले सकतें हैं,
लेकिन लेते ही न रह जाएं..क्योंकि बनारस में कैमरों की भूख कभी शांत नहीं होती है।
और सच कहिये तो काशी का मतलब भी यही है कि यहाँ आने के बाद केवल सेल्फी और फ़ोटो ही न लिया जाए बल्कि इसकी आध्यत्मिक ऊर्जा को गहरे में महसूस किया जाए।
बोटिंग के लिए आपको शेयरिंग,या हाथ वाली नाव भी आसानी से मिल जाएगी..मोल-भाव जरूर करें,और किसी अनुभवी नाव वाले का ही चयन करें।
इससे ये फायदा होगा कि आप बीच-बीच में उससे घाटों के इतिहास-भूगोल की जानकारी भी ले सकते हैं….सिर्फ हिंदी में नहीं,चीनी,रशियन,स्पेनिश में भी।
बोटिंग के बाद गंगा स्नान करना अच्छा है..लेकिन आप अपनी सुविधानुसार ही करें..हां गंगा स्नान के लिए बढ़िया कोई जगह है,तो वो है शीतला घाट के ठीक बगल में बना अहिल्याबाई घाट.
नहीं तो आप चाहते हैं कि आप वहाँ स्नान करें जहां एकदम शांति हो,तो आप उसके लिए गंगा उस पार रेती पर भी जा सकतें हैं। यहाँ का पानी प्रसिद्ध घाटों की अपेक्षा ज्यादा साफ है। बस महिलाओं के लिए कपड़े बदलने की दिक्कत है।
हाँ स्नान के बाद सामने बैठे पण्डित जी से माथे पर चन्दन लगवाना न भूलें,ये चन्दन और तिलक आपको नवीन ऊर्जा से भर देंगे,जो ऊर्जा आपको दिन भर काशी दर्शन के दौरान जीवंत रखेगी ।
अब स्नान के बाद आपका अगला ठिकाना
काशी विश्वनाथ मंदिर
इतिहास-भूगोल की परिभाषाओं को चुनौती देता काशी विश्वनाथ मन्दिर हमारी सनातन संस्कृति के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
काशी की सुबह-शाम हो या दोपहर-रात,जीवन,मरण हो या हो फिर उत्सव-महोत्सव,”हर-हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ गंगे” के बिना कोई कार्य पूरा नहीं होता है।

बालक हो या वृद्ध,महिला हो पुरुष,देशी हो या विदेशी,चाय की दुकान हो या पान की,ऑटो हो या रिक्शा,हर तीसरे सेकेंड में,हर दूसरे व्यक्ति के मुंह से उठते हुए महादेव,बैठते हुए महादेव,सोते-जागते,खाते-पीते,नहाते,बस महादेव ही महादेव निकलता है।
मैं कहूंगा आप मन्दिर तक बिना चप्पल और जूता पहने जाएं,सम्भव हो तो होटल में ही मोबाइल,पर्स,कैमरा बेल्ट,चमड़े का सामान आदि रखकर जाएं,क्योंकि भीड़ के दौरान आपको दर्शन करने से पहले सामान जमा कराने और बाद में लेने के लिए दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है।
कई बार ऐसा होता है कि आप दर्शन करनें दूसरे गेट से जाते हैं,और निकाले किसी दूसरे गेट से जातें हैं,इसलिए सम्भव है कि एक जैसी दिख रही संकरी गलियों में आप भ्रम में पड़कर अपने साथियों से बिछड़ जाएं।फिर आपको अपना सामान लेने के लिए एक अलग से दिक्कत का सामना करना पड़े.
सो बहुत जरूरी न हो तो ये सब सामान होटल में रखकर ही दर्शन करने जाएं,थोड़ी दिक्कत होगी,थोड़े कष्ट होंगे,लेकिन जब दक्षिण भारत के लोगों को देखेंगे कि वो बिना चप्पल,जूते,मोबाइल के चले आ रहें हैं।तब निःसन्देह आपका उत्साह दूना हो जाएगा।
और पैदल चलते आप खुद को सौभाग्यशाली तब महसूस करेंगे,जब आप जानेंगे कि इतिहास के न जानें कितने तूफानों को झेलते,कभी जौनपुर के शर्की बादशाहों के हमले से टूटते,तो कभी औरंगजेब जैसे आततायियों के हाथों बिखरते,
रानी अहिल्याबाई और महाराजा रणजीत सिंह जैसे पुण्यात्माओं के हाथों संवरते आए इस मंदिर के उन रास्तों पर मैं खड़ा हूँ,जिन रास्तों पर कभी आदि गुरु शंकराचार्य,संत एकनाथ,रामकृष्ण परमहंस,स्वामी,विवेकानंद,महर्षि दयानन्द,और गोस्वामी तुलसीदास जैसे हजारों सिद्ध महात्माओं के कदम पड़े हैं। वो सौभाग्य मुझे आज मिल रहा है.
विश्वनाथ जी दर्शन के बाद
मां अन्नपूर्णा
माँ अन्नपूर्णा मन्दिर विश्वनाथ जी के रास्ते में ही पड़ता है,और कहा जाता है कि मां की कृपा ही है कि काशी में कोई भूखे पेट नहीं सोता है। क्योंकि माँ अन्नपूर्णा ने स्वयं भगवान शिव को भोजन कराया है।

ये सोचना भी कितना प्रीतिकर लगता है कि माँ अन्नपूर्णा ने उनको भोजन कराया है जो नाथों के नाथ काशी विश्वनाथ हैं।
आप इस मंदिर में प्रवेश करेंगे तो आपका सामना कलछी पकड़ी हुई देवी स्वरूपा मां अन्नपूर्णा से होगा।
यहाँ अन्नकूट महोत्सव हर साल आयोजित किया जाता है..जिसमें माँ अन्नपूर्णा की स्वर्ण युक्त मूर्ति को एक दिन के लिए खोल दिया जाता है।
अन्नपूर्णा मंदिर में आदि शंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्त्रोत् की रचना कर ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की थी।भला कौन होगा जिसके कानों में कभी ये मंत्र न पड़ें हों..
“अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे,
ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि च पार्वती”
विश्वनाथ जी,मां अन्नपूर्णा के बाद आपका अगला पड़ाव है..
बाबा कालभैरव
बाबा कालभैरव यानी काशी नगरिया के कोतवाल,जी कोतवाल का नाम आते ही हम सबकी कोतवाली में नियुक्त कोतवालों का रोबीला सा चेहरा हमारे सामने आ जाता है,
जिनकी नियुक्ति सरकार ने इसलिए की होती है कि अपराध को रोकें,दोषी को दंड दें। पता न ये कोतवाल अपना काम तरीक़े ठीक तरह से करते हैं या नहीं, लेकिन काशी के कोतवाल बाबा कालभैरव अपनी ड्यूटी के एकदम पक्के हैं।

यही कारण है कि हर बनारसी इनसे थर-थर कांपता है,क्योंकि इनकी नियुक्ति किसी लौकिक सरकार ने नहीं,साक्षात देवों के देव महादेव ने की है। बाबा महादेव ने बाबा कालभैरव को दंड देने का अधिकार दिया है।
लोक में मान्यता है कि काशी में 64 भैरव हैं,जो काशी की सुरक्षा में बाबा विश्वनाथ ने नियुक्त किये हैं,और इन सभी भैरवों के अधिकारी बाबा कालभैरव हैं,जिनकी अनुमति के बिना कोई काशी में वास नहीं कर सकता है।
कालान्तर में इस मंदिर का निर्माण सन 1825 में बाजीराव पेशवा द्वितीय ने कराया था।
जहाँ मान्यतानुसार आप भयभीत रहते हैं तो बाबा कालभैरव के दर्शन के दौरान बाबा का ध्यान करके एक काला धागा अवश्य बाँध लें, ऐसा करने से डर समाप्त होता है। ऐसा दादी और नानी कहती हैं,बाकी महादेव जानें।
हाँ..बाबा कालभैरव विश्वनाथ जी से थोड़ी ही दूर विश्वेश्वरगंज में है। आपको गोदौलिया से कालभैरव के लिए आसानी बैटरी रिक्शा,ऑटो रिक्शा मिल जाएंगे।
कालभैरव के बाद ठिकाना कोई होना चाहिए तो वो होना चाहिए..
सारनाथ
सारनाथ यानी वाराणसी कैंट स्टेशन से आठ किलोमीटर दूर बौद्ध धर्म का मक्का मदीना,बौद्ध धर्म का काशी,अयोध्या, मथुरा। वो सारनाथ जहां भगवान बुद्ध ने बोध गया से ज्ञान प्राप्त करने के बाद आषाढ़ पूर्णिमा के दिन अपने पांच शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था।।

जहाँ हर साल चीन,जापान,कोरिया के लाखों लोग न सिर्फ सारनाथ आतें हैं बल्कि सारनाथ को अपना दूसरा घर समझतें हैं।
सारनाथ में एक चौखंडी स्तूप है,एक धम्मेक स्तूप,तीसरा सारनाथ म्यूजियम में रखा राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तम्भ है,और आर्कियोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया की खुदाई में निकली बौद्धकालीन प्रस्तर मूर्तियों और शिल्पों का एक अनोखा संग्रह भी इसी म्यूजियम में कैद है.जिनको निहारना अपने गौरवशाली अतीत को निहारना है।
संग्रहालय से थोड़ी दूर है मूलगन्धकुटी विहार जहां बुद्ध की अस्थियां आज भी रखी गई हैं। चुनार के पत्थरों से 1931 में बनी इसी कुटी में प्रवेश होते ही एक अलौकिक अनुभूति होती है।
सारनाथ घूमने के बाद अगर आपका मन हो तो आप वहीं से रामनगर जा सकतें हैं।
रामनगर
काशी की राजवंश परम्परा का एक ज्वलंत दस्तावेज है रामनगर। सन 1742 में राजा मंशाराम ने कच्ची चाहारदीवारी के रूप में इस दुर्ग की नींव रखी थी.बाद में 1752 में काशीराज महाराजा बलवंत सिंह जी ने इसका निर्माण कराया था।
आप जैसे ही इस दुर्ग में पहुंचेंगे.. आपको एहसास होगा कि किसी ने आपको इक्कीसवीं सदीं से उठाकर सत्रहवीं सदी में फेंक दिया है।

लगभग सात हाल और 1010 कमरों को अपने अंदर समेटे इस विशालकाय दुर्ग के संग्रहालय में आप जब पुराने जमाने के तोप,गोले,बंदूकें,गाड़ियां,रथ,देखेंगे तो आपको एक मिनट में लगेगा कि आप पुराने जमाने की राजशाही व्यवस्था के हिस्सा हो चूके हैं,और महाराज काशी अभी इस राजमहल से निकलकर आपसे कहेंगे..
“काशी में आपका स्वागत है श्रीमान फलाना जी” 😊
दुर्ग के अलावा अन्य चीज़ें जो देखने योग्य हैं वो हैं इस दुर्ग के रक्षक हनुमान जी का अद्भुत मंदिर और समय को मात देकर आज तक कभी बन्द न हुई अद्भुत धर्म घड़ी. कहते हैं 1872 में बनीं यह धर्म घड़ी..एक साथ दिन,समय ग्रह,नक्षत्र,पक्ष,मास,सब बताती है। काशी में इसे ज्योतिष घड़ी भी कहा जाता है।
धर्म घड़ी के अलावा व्यास मन्दिर और रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला का मंचन स्थल जरूर देखें,मान्यता है कि यहाँ साक्षात श्रीराम चन्द्र जी एक मास के लिए अयोध्या से चलकर काशी आतें हैं।
और काशी नरेश अश्विनी पूर्णिमा को उनकी विदाई करतें हैं। जिसे देखने के लिए काशी के हजारों नर-नारी आज भी जुटते हैं।
रामनगर के बाद आपका अगला पड़ाव होना चाहिए
बीएचयू
जी हां… बीएचयू यानी काशी हिंदू विश्वविद्यालय..जो बस एक विश्वविद्यालय नहीं है। एक ज्ञान कुंड है,जहां ज्ञान की अनगिनत अग्निशिखाएँ एक साथ प्रज्ज्वलित हो रहीं हैं।
एक ही कैम्पस में आईआईटी सरीखा संस्थान,एम्स सरीखा अस्पताल,मैनेजमेंट,लॉ और कामर्स के देश स्तरीय संस्थान संगीत,साहित्य,कला के विश्वस्तरीय संस्थान।
और एशिया की सबसे बड़ी इस रिहायशी यूनिवर्सिटी के कैम्पस में बीचों-बीच खड़ा काशी विश्वनाथ मंदिर। जिसे देखकर आपको ज्ञान योग,कर्म योग और भक्ति योग का वो अनोखा संगम दिखता है,जिसका सपना महामना मदन मोहन मालवीय ने कभी देखा था।
बीएचयू में आप सबसे पहले नवीन काशी विश्वनाथ मंदिर का दर्शन करें।इसे बिड़ला मन्दिर भी कहते हैं जो मंदिर अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है।जहाँ एक अलग ताजगी,एक अलग सुकून है।

बीएचयू में दूसरी जो देखने लायक जगह है.वो है भारत कला भवन..अगर आपकी रुचि इतिहास में है..और आपका अपनी सांस्कृतिक विरासतों के प्रति खासा लगाव है..तो भारत कला भवन बस आपके लिए है। यहाँ तीन-चार घण्टा आप आराम से एक-एक चीजें देख सकतें हैं।
अब बीएचयू के बाद नम्बर आता है..
संकटमोचन मन्दिर
गोस्वामी तुलसी दास जी के हाथों स्थापित ये मंदिर काशी के प्रमुख मंदिरों में से एक है,जिसके सामने जाते ही चित्त की चंचल वृत्तियां अपने-आप थम जातीं हैं, मंगलवार को दूर-दूर से लोग यहाँ शीश नवाने आतें हैं और बेहिसाब जयकारों के बीच बाबा संकटमोचन से अपनी कुशलता की कामना करतें हैं।
समय रहे तो हनुमान चालीसा का यहाँ पाठ अवश्य करें।
इसी मन्दिर में होने वाला संकटमोचन संगीत समारोह दुनिया के प्रसिद्ध संगीत समारोहों में से एक है,जहां दुनिया भर के कलाकार बाबा के दरबार में अपनी हाजरी लगातें हैं..इस मंदिर के वर्तमान महंत पण्डित विश्वम्भरनाथ मिश्र आईआईटी बीएचयू में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के हेड हैं।
मानस मन्दिर-

संकटमोचन मन्दिर से थोड़ी दूर मानस मन्दिर है।1964 में सफेद संगमरमर से बना ये मानस मन्दिर पूर्ण रूप से गोस्वामी तुलसी दास कृत रामचरित मानस को समर्पित है।
मन्दिर को आधुनिक टेक्नोलॉजी का प्रयोग करके मानस के तमाम प्रसंगों को जोड़ा भी गया है..और इन्हें एक झाँकी का रूप दिया गया है। जिसे देखने के बाद एक दिव्य अनुभूति होती है।
दुर्गाकुंड
अति प्राचीन ये दुर्गा मंदिर वाराणसी के प्रमुख देवालयों में से एक है। जिसके बगल में स्थित कुंड को वर्तमान सरकार ने बहुत सुंदर बना दिया है। मान्यता है कि इसी कुंड से माँ की मूर्ति निकली थी।

जहां हर साल सावन में भारी मेला लगता है। और वाराणसी जनपद का ग्रामीण क्षेत्र इस मेला के रेला में अपने पूरे परिवार के साथ उमड़ पड़ता है।
दुर्गाकुंड के बाद आपका अगला पड़ाव होना चाहिए।
अस्सी घाट
अस्सी घाट बस घाट नहीं हैं,वरन काशी की चिंतन परम्परा का एक ऐसा संगम है,जहाँ संगीत,साहित्य कला और ज्योतिष,व्याकरण के साथ गांजा और भांग का भोग लगाया जाता है,जहां की चाय की दुकानों पर दुनिया भर की सरकारें बनाई और बिगाड़ी जाती हैं।
चाय की प्यालियों में नेता पैदा किये और सिगरेट के धुएं में जवान किये जातें हैं..सीढ़ियों में छिपकर प्रेम के गहन क्षणों को अंजाम दिया जाता है..और रात भर जन्मदिन मनाने से लेकर प्यार-मोहब्बत करने का कार्य भी किया जाता है।
मोदी सरकार की जागरूकता से इसकी साफ-सफाई और सौंदर्य में गुणात्मक वृद्धि हुई है। यहाँ से काशी को निहारना अपनी संस्कृति के अप्रतिम सौंदर्य को निहारना है।
मान्यता है कि अस्सी घाट को काशी का हरिद्वार क्षेत्र माना जाता है। जिसके ऊपर स्थित सीढ़ियों पर पंचायतन शैली में बना लक्ष्मीनारायण मन्दिर सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करता है।
अगर आप थक गए हों तो यहाँ जरा सा आराम कर लें..एक नींबू वाली चाय पी लें..थोड़े हाथ,पैर और गर्दन सीधी कर लें..और देख लें कि अस्सी के ठीक आगे एक हवेली नुमा पीली बिल्डिंग खड़ी है। जिसमें इन पंक्तियों के लेखक नें अपने जीवन के पांच साल बिताएं हैं। 😊
इसके ठीक आगे है..
तुलसी घाट
यानी गोस्वामी तुलसी दास की साधना स्थली,जहाँ हिंदूओं घर-घर में विराजमान मानस जी की रचना हुई,अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में बाला जी पेशवा ने इस घाट का निर्माण कराया था,इसके पहले ये घाट भी अस्सी घाट का ही हिस्सा हुआ करता था।
इस घाट के ठीक कोने में एक सीढ़ी है,और सीढ़ी के चढ़ते ही हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर,उसके ऊपर गोस्वामी जी का वो कमरा जहां वो रहते थे, उनकी चरण पादुका,मानस की पाण्डुलिपि,और उसके ठीक बगल में तुलसी दास जी द्वारा स्थापित स्वामीनाथ अखाड़ा।
यहीं संकटमोचन मन्दिर के पूर्व महंत प्रोफेसर स्वर्गीय वीरभद्र मिश्र और वर्तमान महंत विश्वम्भरनाथ मिश्र जी का आवास,और संकटमोचन फाउंडेशन का कार्यालय भी है,जहाँ हर साल ध्रुपद मेले का आयोजन किया जाता है।तुलसी घाट के बाद आप लोलार्क कुण्ड का दर्शन करें..
यहां हर साल भादो शुक्ल षष्ठी को एक बड़ा मेला लगता है,और लोक में मान्यता है कि इस कुंड में नहाने से निःसन्तान दम्पत्ति को संतान की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि इस 4g युग में भी हर साल लाखों दम्पत्ति स्नान करनें आतें हैं।
लोलार्क कुंड के बाद आपका अगला पड़ाव होना चाहिए।
गंगा आरती-
दशाश्वमेध घाट की विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती, लाखों लोगों का ध्यान खिंचती है। वाराणसी में आकर जिसने आरती न देखा वो क्या देखा ?
मान्यता है कि इसी घाट पर ब्रह्मा ने अश्वमेघ यज्ञ किया था,बाद में सन 1735 में पक्के घाट का निर्माण बाजीराव पेशवा ने करवाया था।
यहां पहुंचने से पहले आप एक काम करें,शाम को 5 बजे तक घाट पर पहुंच जाएं। और एक ऐसी नाव करें जो शेयरिंग हो..एक आदमी का बीस से तीस रुपया लगता है..आप खड़ा होकर या घाट की सीढ़ियों पर बैठकर भी आरती देख सकते हैं,लेकिन नाव में बैठकर आरती देखने का जो सुख है,वो कहीं नही हैं।
ध्यान दें- गंगा आरती दो घाटों पर एक साथ होती है। पहली आरती जो है वो दशाश्वमेध घाट पर होती है..जिसमें सात लोग एक साथ आरती करतें हैं।दूसरी आरती ठीक बगल वाले शीतला घाट पर होती है..जिसमें पांच लोग आरती करतें हैं।
तो कॄपा करके भ्रम में न पड़ें.. आप आधा-आधा दोनों को देख सकतें हैं। दोनों जगह की आरती एक जैसी ही है। बस संख्या बल का अंतर है । सात लोगों की वजह से दशाश्वमेध घाट वाली आरती ज्यादा आकर्षक लगती है।

(उम्मीद है आपको ये Varanasi Travel Guide पसंद आया होगा,आगे भी ये सीरीज जारी रहेगी।
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