चढ़ाई बहुत लंबी हो। रास्ता गुमनाम हो। दूर-दूर तक कोई आता-जाता दिखाई न दे। बड़ी मुश्किल से कुछ दिखाई भी दे तो वही बिसलेरी की बोतलें,फटे जूते,चिप्स के वही पैकेट… बियर के वही खाली केन।
तो इसका आशय यही होता है कि आप जिस पहाड़ को इम्तियाज अली का सिनेमा समझकर चढ़ रहे हैं,उसे तुरंत अनुराग कश्यप का सनीमा हो जानें में अब तनिक भी देर नहीं है। इसलिए यहाँ सावधान हो जाना ज़रूरी है।

सच कहूं तो नैनीताल से दूर चाँपी नामक उस गुमनाम सी जगह के खूबसूरत पहाड़ों और झरनों के बीच कहीं खोए दिल तक इस सावधानी की सूचना पहुँची ही थी, तब तक एक गैर सरकारी सूचना पर नज़र चली गई।
उस सूचना में किसी शारीरिक विज्ञान के लेखक नें बड़े मनोयोग से लिखा था,… “नदी में अश्लील हरकतें ना करें।’
मैं जब तक अपने द्वारा की गई हरकतों को ऊपर नीचे कई बार देखता और मुतमईन होता कि मैं कत्तई अश्लील हरकत नहीं कर रहा हूँ,तब तक हमारे सहयात्री आलोक भइया बोल पड़े,”ये सब साले पहाड़ों को ओयो बना दिए हैं।”

इतना सुनने के बाद जब अश्लीलता के सार्वभौमिक अर्थ की तरफ़ मेरा दिमाग गया तो मैं वहीं बैठ गया और सोचने लगा कि ये कौन लोग हैं,कहाँ से आते हैं…?
जिनको इतने सुंदर पहाड़,ये न जाने कितनी दूर से आते झरने..ये ठंडी हवाएं,ये पक्षियों की चहचहाहट सुनाई नहीं देती।
ये पहाड़ों के शांत से प्यारे लोग दिखाई नहीं देते। बल्कि दिखाई भी देता है तो सिर्फ और सिर्फ दारू,गांजा, सिगरेट,बियर और सेक्स।
लेकिन क्या करेंगे…किसी प्रसिद्ध जगह और किसी स्थान के साथ अगर पर्यटन स्थल और पिकनिक स्पॉट जुड़ जाए तो उसका खामियाजा उस जगह को भुगतना ही पड़ता है।
आज पहाड़ इसका खामियाजा भुगत रहे हैं।
आज जून से लेकर क्रिसमस और नए साल की छुट्टियों पर मनाली और शिमला के रस्तों पर कई किलोमीटर गाड़ियों के लंबे जाम हों या गर्मियों में केदारनाथ यात्रा के ट्रैक पर भीड़ में दबकर कई लोगों की मौत हो…!
ये सब बताने के लिए काफी हैं कि हमारे पर्यटन स्थल उस भीषण अनियंत्रित और गैर जिम्मेदार भीड़ का शिकार हो चुकें हैं। जिसे इसका तनिक भी अंदाजा नहीं है कि कहाँ कब क्या करना चाहिये, कहाँ कब क्या नहीं करना चाहिए।
ऊपर से सरकार की जिद है कि भविष्य में इस आने वाली भीड़ को किसी प्रकार की दिक्कत न हो। एकदम नेशनल हाइवे की तरह लाइट से जगमग चिक्कन सड़क मिले। जगह-जगह आमोद-प्रमोद के लग्ज़री साधन हों..ताकि यात्रा मनोरंजक बन जाए।
सुविधा इतनी हो कि एक यात्री एक रोड पर चलना शुरू करे तो उसे रोड छोड़ने की ज़रूरत न पड़े, एक ही साथ चारो धाम की यात्रा कर ले।
ये जिद प्रथमदृष्टया अच्छी ही थी। एक यात्री कहीं से आता है तो आठ लोगों को रोजगार देता है। कौन सरकार नहीं चाहेगी और कौन नागरिक नहीं चाहेगा कि उनके यहाँ लोग न आएं और स्थानीय लोगों को रोजगार न मिले ?
लेकिन प्रकृति की प्रकृति के साथ खिलवाड़ की शर्त पर इस जिद को पालने के नुकसान का अंदाजा भी तो होना चाहिए न?
वो भी तब, जब आप दो हजार बारह जैसी भयानक विपदा देख चुके हैं।
आज से छह महीने पहले बद्रीनाथ जाते समय देखा था कि इस अनियोजित जिद नें पहाड़ो के हृदय चीरकर रख दिया है।
जोशीमठ से पहले रात-रात भर पहाड़ों को चीरते पोकलेन इतना डराते हैं कि लगता है कि कहीं गाड़ी के ऊपर कोई चट्टान न गिर जाए..कहीं हम दब न जाएं… लेकिन रास्ता चल रहा,हम इस उम्मीद में खुश हो रहे कि अगली बार तो नेशनल हाइवे की तरह सड़क बन जाएगी। कितना मजा आएगा।
लेकिन तब क्या पता था कि आने वाले छह महीने बाद इसी जोशीमठ के वो पच्चीस हज़ार लोगों के घरों के ऊपर बिजली गिर जाएगी और उन्हें इस भयंकर ठंड में अपना-अपना घर खाली करनें की सूचना पकड़ा दी जाएगी…!

आज जोशीमठ की हालात ये है कि जमीन से लेकर घरों तक दरारे पड़ चुकी हैं। लोग स्खलन के डर से हलकान हैं। हजारों लोगों ने टेंट के बने घरों में शरण लिया है।
चारधाम परियोजना को वहां तत्काल प्रभाव से रोक दिया गया है। केंद्र सरकार नें इसकी जाँच के लिए अलग समिति का गठन किया है। राज्य सरकार अलग…सीएम साहब आज मिलकर लोगों को सांत्वना देने पहुँचे हैं।
लेकिन न हमें उनके दुःख का अंदाजा होगा न ही सरकार के नीति नियंताओ को होगा..
कि ये अचानक जमीन और घरों पर उग आई दरारें सिर्फ़ जमीन पर नही हैं बल्कि पच्चीस हज़ार चेहरों पर हैं,जिन्हें पता है कि अपना पैतृक घर हमेशा के लिए छोड़ना कितना दुखदायी होता है।
वो एक घर,महज ईंट, सीमेंट छड़ और बालू का नहीं बना होता है बल्कि वो खूबसूरत भावनात्मक स्मृतियों का वो स्थायी ठीहा होता है,जिसकी ऊर्जा आदमी को ताउम्र एक भावनात्मक संबल से बांधे रखती है।
न जाने क्यों जोशीमठ के लोगों को टीवी पर देखकर एक अपराधबोध सा घिर आता है।
ऐसा लगता है कि शायद इस अश्लीलता के जिम्मेदार हम सभी हैं। लेकिन पहाड़ के पहाड़ जैसे हृदय वाले लोग हमें माफ करें….
शायद देवभूमि के देव आपकी परीक्षा ले रहे हैं। और मुझे चांपी के पहाड़ पर लिखी वो सूचना फिर याद आ रही है,जिस पर किसी नें लिखा है कि यहां अश्लील हरकत न करें…
मेरा बस चले तो मैं जाकर अभी लिख आऊं कि यहां अश्लील हरकतें न करें,वरना पहाड़ रोते हैं,नदियां कलपती हैं।
आखिर ये धरती जितनी इंसानों की है,उतनी ही पशु, पक्षी, जंगल,नदी और पहाड़ों की भी तो है।
आदमी को हक़ नहीं,पर्यटन ने नाम पर किसी का हक मारने का…
वो तो भला हो जैन समाज के लोगों का,जिन्होंने बड़े ही शांतिपूर्वक सम्मेद शिखर जी को पर्यटन स्थल बनने से लगभग बचा लिया है। एक अश्लीलता से बचा लिया है।
बस,सरकारों से यही निवेदन है कि जब तक इस देश की भीड़ को पर्यटन स्थल और धार्मिक स्थल में अंतर करने की योग्यता नहीं आ जाती, तब तक पर्यटन स्थल के नाम पर इस अनियोजित विकास पर लगाम लगाकर ही रखें।
धार्मिक यात्रा इस भीड़ के लिए जिस दिन लग्जरी हो जाएगी, धर्म उसी दिन जोशीमठ के दरारों की तरह फटने लगेगा।
सादर
अतुल