वो 1 जनवरी 2017 की सुबह थी.आसमान कोहरे से भरा था और लोगों के दिल नयी उम्मीदों से.रोज घण्टा घड़ियाल और सूर्य नमस्कार के मन्त्रों से गुलज़ार रहने वाला अस्सी घाट नए वर्ष की नयी सुबह में कुछ ऐसा लग रहा था मानों आज रामानंद सागर की जगह महेश भट्ट अपनी फ़िल्म का शूटिंग करने आ रहें हैं.
इधर प्राणायाम का अभ्यास करने के बाद आस्ट्रेलिया की किस्ट्रिना,वियना की साशा के साथ गांजा पीने का अभ्यास कर रहीं थीं.एक बुजुर्ग करीब चार घण्टे से नहा रहे थे.और जस-जस ठंडा लग रहा तस-तस किसी मनोहरा की माँ-बहन का तेज-तेज स्मरण कर रहे थे.क्योंकि मनोहरा उनका गमछा लेकर टिंकूआ की दूकान पर कमला पसन्द खाने चला गया था.
इधर घाट के पत्थरों पर कुछ हार्ट की पेशेंटनुमा एन्जेल प्रियाओं के हाथ में कुछ दिलनुमा प्लास्टिक के गुब्बारे थे.और कुछ कूल ड्यूड टाइप लौंडो के हाथ में गुलाबनुमा सौ रुपया वाले फूल मुरझा रहे थे.
गुब्बारा और फूल को देखते ही मेरा मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर अग्रसरित ही हो रहा था कि चिंतन पर पॉवर ब्रेक लग गया..जब देखा कि गरमा-गरम कचौड़ी के साथ चूड़ा-मटर और गाजर का हलवा हाथ में लेकर खड़ी कुछ ब्वायफ़्रेंडव्रता कन्याओं के चेहरे ये चीख-चीख के बता रहे हैं कि नोटबन्दी का असर किचन और बेडरूम में भले ही पड़ा हो लेकिन लिपिस्टिक पर उसका कोई असर नहीं है.
उधर कूल ड्यूडस का हाल बेहाल था.क्योंकि रोज फोन पर पूछा जाने वाला वो सवाल “मेरे छोना बाबू ने काना काया” ? आज साक्षात् सामने था.ये अलग बात थी कि कई सोना बाबूओं का मन केजरीवाल हो रहा था..वो अपनी दिलनुमा दिल्ली को छोड़ के दूसरे वाली को देखने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे थे..फलस्वरूप कन्याएं परेशान थीं..और बार-बार जुल्फों को एक विशेष प्रकार से टच करते हुए.बोलें जा रहीं थीं. “जानू आप इधर देखो न..मैंने आपके लिए केले का कोफ्ता भी लाया है…बेबी को केला पसन्द है न “?
थोड़ा आगे बढ़ने पर दद्दा की चाय की दूकान का स्वाद भी राजनीतिक हो रहा था…सुबह-सुबह झा जी मेरी तरफ चाय बढ़ाकर मोहल्ले का ताजा समाचार सुना रहे थे. “गुरु जानते हो..हम कहे “का हो ” ?”यार मोहल्ले के विद्यावारीधि और महान ज्योतिषाचार्य उपधिया जी अपनी साली को एक घण्टा हैपी न्यू ईयर विश करने के चक्कर में चरित्र नामक शब्द पर दो घण्टा प्रवचन सुन चुके हैं..”उपधियाइन कह रही हैं कि ई आप विश कर रहे हैं कि किस कर रहे हैं..” हाय ! मल्लब कि मेहरारू जी ने बेलन चमका-चमका के अईसा क्लास लिया है कि उपधिया जी का दिल मुलायम और दिमाग अखिलेश हो गया है.
पता चला उपधिया जी गिड़गिड़ासन में रोवाँ गिराकर धीरे से समझाएं हैं कि..”अरे ! ए मनुआ के माई..काहें बरिष-बरिष के दिन ममता बनर्जी बन रही हो..कपार पर एकदम शनिचरा चढ़ गए हैं का..? अब का हम साली से तनी मजाक भी ना करें.”समाचार मिलने तक मनुआ की मम्मी का टम्प्रेचर आगबबूला होते-होते बचा है.
आगे बनारसी चाय का दूसरा दौर शुरू हो रहा था.जहाँ आज तक चाय में चीनी की जगह राजनीति और चायपत्ती की जगह बनारसी गालियां मिलाई जातीं थीं.वहाँ-आज चीनी की जगह अखिलेश और चायपत्ती की जगह मुलायम थे,और चूल्हे की जगह हैपी न्यू ईयर का शोर था.
अड़ी पर छित्तुपूर से आए थे…सुगन चौधरी..उम्र 55 साल,मेहनत और कर्मठता के पर्याय.आज बीस सालों से सुबह चार बजे से उठकर रात नौ बजे तक दूध बाँटना उनका रोज का काम है.दूध बेचकर जो उन्होंने इज्जत कमाई है.वो सोना बेचने वालों को भी कभी नसीब नहीं होती.सुगन चौधरी ने वर्षों से समाजवादी हैं.लेकिन आजकल सदमें में चल रहे हैं.उनको देखते ही झा जी ने “जय समाजवाद” का जयकारा लगाकर जोर से “महादेव सरदार” कहा…और थोड़े धार्मिक ढंग से बोल पड़े..चौधरी साइकिल तो एकदम नया लग रहल है.ताला मारिये इसमें..”?
अरे पंडी जी कहीं अहीर के साइकिल में ताला होता है..कभी देखें हैं..ताला मारे होते मोलायम सिंह तो सरवा आज यही”? हाल होता..”?
सब ठठा के हंसते हैं…
झा जी ने हंसते हुए कहा मानों फफकते हुए स्टोप में पिन मार रहे हों.. “तो चौधरी आप केने हैं..अखिलेश वाले साइकिल की मुलायम-सीपाल वाले..? चौधरी ने भृकुटी तानी..और बड़े ही कारोबारी ढंग से कहा..”देखाs गुरु..हम समाजवादी हैं.खांटी लोहियावादी.. लोहिया जिस दिन गए समाजवाद उसी दिन तेल लेने दक्खिन चला गया…” झा जी को ये परम आदर्शवादी उत्तर रास न आया..उन्होंने बात काटते हुए कहा..
“लेकिन Up Election कपार पर है इधर अकलेस साईकिल का टुकड़ा-टुकड़ा करते हुए मारे तेजी में मोटरसाइकिल हो रहे हैं..” ?लग रहा कि साइकिल का अगला पहिया रामगोपाल को दे देंगे आ पिछ्ला डिम्पल को.और नेताजी के हाथ में घण्टीयाँ थमा देंगे की लीजिये जब तक ज़िंदा हैं तब तक बजाते रहिये..सिपाल तो अब पँचर सटाने लायक भी नहीं रहे.. इस सवाल से हंसी का गुब्बारा फिर फूटा..
इस बात के बाद तो माहौल एकदम आध्यात्मिक हो गया..झा जी ने इस वाक्य को अपनी डायरी में लिखना चाहा..मानों वर्षों से बन्द पड़े उनके ज्ञान के कपाट पे चौधरी ने दूध डाल दिया हो.इधर चौधरी सुरती मुँह में डालके साइकिल का पैडल दबा चुके थे.इस नए साल की नयी-नयी सुबह में बार-बार ये वाक्य कानों में गूंज रहा था…”पंडी जी..बाप को जीते जी इतना मोलायम……..”
हम हॉस्टल आ गए थे..वही बुर्जुवा हिप्पोक्रेसी के साथ..”अबे काहें का हैपी न्यू ईयर..समाजवाद की कसम कैलेंडर बदलने से सिर्फ दिन बदलता है..दिन दशा नही..”
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