तुम हिन्दुस्तान के बुद्धिजीवियों के लड़के नही हो, न ही जेएनयू छाप मानवाधिकार के किसी ठीकेदारों के …न तुमने देश के किसी नेता के घर में जन्म लिया है, न ही कारपोरेट की हस्तियों ने तुम्हें पाल पोषकर बड़ा किया है.
तुम तो बारहवीं तक एक साल में एक पैंट-शर्ट सिलवाते थे..और आठवीं बाद ही INDIAN ARMY में जाने का सपना देखते थे….भोर में उठके बरम बाबा से लेकर डीह बाबा तक सिर्फ चना-गुड़ और शरबत की ताकत से नंगे पैर दौड़ते थे…और हुआ एक दिन यों कि तुम जीवन में पहली बार उसी सेना की भर्ती में बनारस गये और एक दिन पता चला की भर्ती हो गये.
कितने खुश थे.तुम्हारे घर वाले..न जाने कितनी मिठाइयां बटीं..”बेटा भर्ती हो गया हो हमारा..”आज तुम्हारे किसान पिता अभी अपने खेतों में धान रोप रहे होंगे..और तुम्हारी गुड़िया बहन अभी तुम्हारे लिए राखियां खरीद रही होगी…तुम्हारा छोटा बेटा अब पापा-पापा कहने लगा है..बेटी भी तो तुम्हारी अब स्कूल जा रही है।राइफल की बोझ कितनी हल्की हो जाती होगी न उसके मुँह से पापा सुनके? कितने खुश होंगे न सब लोग..जब तुमने इसी तीन जुलाई को मनीआर्डर भेजा होगा.
आहा! शब्द नही हैं बताने को..
लेकिन मेरे भाई….अगले तीन अगस्त को क्या हो कि मनीआर्डर की जगह किसी आतंकवादी मुठभेड़ में तुम्हारे मरने की खबर आ जाए..? क्या बीतेगी तुम्हारे किसान पिता,गुड़िया बहन,बीबी और उस पापा-पापा बोलने वाले बेर..? छोड़ो..सीना और कलम में पत्थर लगाना पड़ेगा मुझे बताने के लिए…इतनी हिम्मत नहीं मुझमें।
तुम तो परवाह ही नहीं करते अपने बीबी,बच्चे,किसान पिता का क्योंकि हिन्दुस्तान के करोड़ों पिता,और करोड़ों बहनें करोड़ों बेटों की जिम्मेदारी अब तुम पर है। तुम इन्ही के लिए द्रास के माइनस पचास डिग्री में हड्डियां गला रहो हो ताकि यहाँ सब अपनी-अपनी रजाइयों में चैन से सो सकें.
तुम सीमा से लगे रेगिस्तान में जल रहे हो ताकि यहाँ कुछ लोग आराम से अपनी एसी की कूलिंग बढ़ा सकें..पाकिस्तान हमला कर दे या चीन तुम अपनी आखिरी साँस तक सीना ताने खड़े हो..ताकि हमारी भारत माँ का कहीं मस्तक न झूक जाय..
मुझे नहीं पता तुम पर क्या बीतती होगी जब
इन्हीं करोड़ों में से कुछ लोग काश्मीर की आजादी तक और भारत की बर्बादी तक जंग चलने की कामना करते होंगे…तुम्हारी मौत पर दारु पीकर विजय दिवस मनाते होंगे..तुमको पत्थर से मारते होंगे.
न्यूज चैनलों में बिके हुये कुछ दलाल आतंकवादियों की तुलना भगत सिंह से करते हुए कुछ तुम्हें बलात्कारी कहते होंगे.
तब लगता होगा न कि सीमा पार के आतंकवादीयों से ज्यादा इन आतंकवादीयों से खतरा है? अबूझमाड़ के नक्सलीयों से ज्यादा कुछ विश्वविद्यालय में पढ़-पढ़ा रहे नक्सलियों से खतरा है ? हाँ बिलकुल..सही लगता है तुमको..तुम चिंता न करना…क्योंकि इन बेवकूफों को ये नहीं लगता कि आज तुम्हारे कारण ही ये आराम से भारत की बर्बादी की कामना कर ले रहे हैं…जवानों की हत्या पर बिजय दिवस मना ले रहे हैं..तुम पर पत्थर फ़ेंक ले रहे हैं..आतंकवादी को शहीद बता दे रहे है.
तुम बस इतना जान लो कि ये कुछ अपनी जमीर बेच चुके हैं..इनकी कभी परवाह न करना..ये बिके हुये दलाल हैं..हाँ..आज तुमसे प्रेम करने वाले करोड़ों की शुभकामनाएं हैं..और लाख-लाख बार सलाम है कि ऊपर वाला तुमको हमेशा जल,थल और नभ में सदैव सही-सलामत रखे।
तुम्हारा भाई
अतुल
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