राजा की आएगी बारात ? ( हास्य-व्यंग्य )

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कहतें हैं इसी फ़रवरी की एक रोमांटिक संध्या को राजा जी का प्री वेडिंग शूट होना तय हुआ। शूट के एक दिन पहले रानी जी नें कहा कि ए जी हमारे होने वाले राजा जी,जींस के आगे शूट-सलवार तो हमसे सम्भलता नहीं,ई प्री वेडिंग शूट कैसे सम्भलेगा जी ?

इतना सुनते ही गोदौलिया में मान्यवर का शूट ख़रीद रहे राजा जी नें छाती तानकर कहा कि हे मेरी रानी जी,अरमानों का दीया जलाकर आँखि किरिया कह रहे हैं,दिल तो हमारा भी आटा चक्की की तरह धुकधुका रहा है। लेकिन का करें ?

आपके पूँजीवादी बाप से मेरे साम्यवादी बाप नें इसी प्री वेडिंग शूट के नाम पर दहेज में चालीस हज़ार एक्स्ट्रा लिया है। शूट तो करवाना ही पड़ेगा न ? कल भोर में तैयार रहिएगा। सुबह-ए-बनारस को देखते हुए चेत सिंह घाट पर पोज देना है।

लीजिये इसके बाद तो रानी जी के अधरों पर एक मृदु मुस्कान तैर गई। करेजा धुकधुकाने लगा। दिल में मनीष मल्होत्रा के लहंगे नृत्य करने लगे और सुबह के इंतज़ार में रात भर नींद न आई।

ठीक अगले दिन भोर की आध्यात्मिक सी हवा में शूट के लिए नाँव अस्सी घाट से चेतसिंह घाट की तरफ़ चल पड़ी। देखते ही देखते कैमरे के फ़्लैश चमकनें लगे। राजा-रानी के दिल नाँव की तरह मचलने लगे। जब-जब कैनन के फाइव डी में जूम लेंस और प्राइम लेंस बदले जाते,तब-तब राजा जी और रानी जी के ड्रेस भी बदल जाते थे।

सुबह-ए-बनारस से शाम-ए-बनारस हो गई लेकिन पोज ख़तम न हुआ।

गंगा पार जाकर दोनों नें देखा कि मनाली से लेकर कसौली तक और अंडमान से लेकर बाली तक हनीमून मनाने के सपने दिन दहाड़े घोड़े पर दौड़ रहें हैं।

लेकिन जा रे कोरोना, तोहार माटी लागो..!

राजा-रानी के सपनों का घोड़ा औंधे मुंह गिर गया। एक झटके में इस लॉकडाउन ने सारे अरमानों के बढ़ते मीटर को डाउन कर दिया। और आखिरकार अप्रैल में एक दिन अस्सी घाट के प्रसिद्ध पंडित बिजय बाबा नें भांग छानकर राजा जी के बाप से कहा कि ए जजमान,एक तो लड़का है आपका! अब जून की शादी दिसम्बर में कर लो, अच्छा रहेगा।

दोनों पूंजीवादी और साम्यवादी बापों नें पंडित जी की सलाह पर विचार किया और उसी दिन तय कर लिया कि राजा-रानी की शादी दिसम्बर में होगी। स्टेट्स मेंटेन तभी होगा..आख़िर हमारी इज़्ज़त की बात है।

लेकिन साहेब, शादी तो दिसम्बर में तय हो गई लेकिन राजा-रानी जी से आज तक तय न हो सका है कि आखिर दिसम्बर तक इंतज़ार कैसे किया जाएगा ?अभी तो अक्टूबर चल रहा है,अभी तो दो महीने है।

हाल ये है कि प्री वेडिंग शूट का रिज़ल्ट देख-देख कर राजा जी अपनी रानी जी से कह रहे हैं कि ए करेजा, अब तो नहाने के लिए तौलिया भी उठाते हैं तो लगता है कि सुहागरात में घूँघट उठा रहे हैं। है कोई बरदास की दवाई ?

ताजा समाचार तक रानी जी लजाकर लौंग की डांढ़ की तरह झुक गईं हैं और मन ही मन कहा हैं कि ए राजा जी, हमहू पानी का गिलास उठा रहे हैं तो लग रहा है कि सुहागरात में दूध का गिलासे उठा रहे हैं। कैसे बरदास होगा ई तो मोदी जी ही बताएंगे,न तो राहुल गाँधी से पूछिए,इस सवाल का जबाब हमारे पास नहीं है।

ख़बर मिलने तक राजा जी मौन हैं और दिल में राहत रूह लगाकर भी कहीं उनको राहत नहीं मिल रहा है।

अब आप तनिक ध्यान से देखिये तो ये सिर्फ़ राजा जी की कहानी नहीं है बल्कि आपके आस-पास तमाम राजा-रानी की शादियाँ नवम्बर-दिसम्बर में चली गईं हैं। और सबकी शादियाँ चले जाने के कारण लगन इतना टाइट हो गया कि न किसी राजा को बाजा मिल रहा है,न किसी रानी को टेंट,सामियाना और लाइट।

आज जीप-गाड़ी वाले ऐसे बतिया रहें हैं जैसे इंडिगो एयरलाइंस के सगे फूफा यहीं हों और डीजे टेंट,साउंड वालों की बात तो छोड़िए। स्टेशन के सामने टूटे हुए लाउडस्पीकरों से ममीरे का सूरमा बेचने वाले भी दिसम्बर में खाली नहीं हैं।

कल इसी तहक़ीक़ात में बलिया के प्रसिद्ध मैरिज हाल आदर्श वाटिका के मालिक जयश जी को फोन करके पूछा गया कि ए सर दिसम्बर में आपका मैरिज हाल खाली है ? कोई जुगाड़ करिये न !

जयश जी नें कहा कि ए सर दूसरे का छोड़िए। मैरिज हाल की बुकिंग इतना है कि ख़ुद अपना बियाह हम दूसरे के मैरिज हाल से करनें का विचार कर रहें हैं तो आपका जुगाड़ कैसे करें ?

इतना सुनते ही तहक़ीक़ात करनें वाले का दिल टूटकर बिसुनिपुर का धर्मशाला हो गया और उसने विचार कर लिया कि चलो मैरिज हाल तो देख लिया जाएगा लेकिन साला समस्या ये है कि एक्को बैंड पार्टी वाला खाली नहीं है। दुआरे बारात कैसे लगेगी ?

मने जिमी-जिमी आजा-आजा न बजेगा तो मजा कैसे आएगा जी ?

उसी मजा के चक्कर में आज चाँदपुर का वो फजलुआ जिसका नचनिया लौंडा हर लगन में पीपिहरी बजाने वाले के साथ भाग जाता है,वो भी खाली नहीं है

कल फ़जलुआ नें सुखारी डॉक्टर के दुकान पर बैठकर एक ग्राहक से कह दिया कि रे बबुआ, ढोलक बजाकर बियाह कर लो। अगर कोई दिसम्बर में मर गया तो उसकी तेरही में कोई तुरही बजाने वाला भी नहीं मिलेगा। तुम बैण्डपार्टी खोजनें आए हो ?

वो आदमी चाँदपुर के स्त्री रोग विशेषज्ञ सुखारी डॉक्टर से दरद की दवाई लेकर घर चला आया।

अब आइये जरा गाँव में आते हैं।

उधारी यादो के नन्हका का हाल सुनकर आपके दिलवा में लहर लेस देगा,इसकी गारंटी है।

आपको पता नहीं होगा कि बाबा रामदेव का हर योगासन करने और यू ट्यूबरों के हर टिप्स को फॉलो करनें के बाद भी उसके आगे के बालों नें बवाल करना नहीं छोड़ा,तब जाकर काली माई डीह बाबा की उस पर कृपा हुई। और आख़िर बड़ी भखौती करने के बाद उस बेचारे की शादी तय हुई।

इंगेजमेंट हुआ इसी सहतवार के चैन राम बाबा मंदिर में। मेहरारु को अंगूठी पहनाते हुए नन्हका के सूखे गालों पर बिना फेस मसाज के चमक बिखर गई। लेकिन आज बियाह की तैयारी में शहनाज का मसाज करवा रहा नन्हका का चेहरा छुहारे जैसा सूख गया है।

दिन भर वीडियो कॉल और हुआटसेप पर मेहरारु को निरेखने वाला नन्हका रह-रहकर रो देता है।

उसकी भौजी समझा रही है कि जाने दो। जैसे बयालीस साल बरदास कर लिए साल भर और कर लोगे तो का बिगड़ जाएगा ? बाल झड़ता है तो झड़ जाने दो। दू-चार महीना की बात है,खा-पीकर देह बनाओ। शादी बाद बाल की नहीं,बवाल सहन करने की ज़रुरत पड़ती है,समझे बबुआ ?

ख़बर मिलने तक आज सुबह नन्हका फिर रो रहा था।

लेकिन आज उसके आँसुओ का हिसाब किसी के पास नहीं है। आज न किसी डिबेट में नन्हका का ज़िक्र है न ही किसी अखबार में बनारस वाले राजा जी की इन दिक्कतों पर लेख लिखे गए है।

कम से कम बिहार इलेक्शन में तेज प्रताप यादव ही कह देते कि रे नन्हका शंख बजाकर हम तुम्हारा बियाह कराएंगे उदास न होना,तुमको ससुर चंद्रिका जी की कसम है।

कम से कम नन्हका के दिल पर मरहम तो लग जाता।

लेकिन ऐसा न हो सका है। आम आदमी की इस सबसे बड़ी समस्या की परवाह किसी के पास नहीं है।

नेशन वान्ट्स टू नो करके चिल्लाने वाले पत्रकार और महीन छुरी जैसे हँसने वाले पत्रकारों की भी नज़र भी इन पर अब तक न गई है।

हां,डब्लू डेंजर और उपेन्द्र उत्पाती और बबलू बानर जैसे कुछ भोजपुरी गायकों नें ज़रूर इनके दिल के दर्द को कम करनें का प्रयास किया है।

लेकिन उससे का होगा जी ? यू टयूब सजेशन में ए रजउ बाजा बाजी की ना बाजी और रात दिया बुता के पिया क्या-क्या किया जैसे गाने आकर इनके दरद को और बढ़ा देते हैं।

अरे! बीमा कम्पनियों को तो कम से कम इस पर ध्यान देना चाहिए।

सरकार और विपक्ष को भी सोचना चहिए कि इस पूरे कोरोना काल में सबके त्याग और समर्पण की कथाएँ तो खूब कहीं गईं हैं। दीये भी खूब जलाए गए हैं और थाली बजाई गई है। लेकिन उनके अरमानों की ख़बर कौन लेगा जिनका टाइम से बाजा न बज सका है।

लेकिन सरकार तो निकम्मी है विपक्ष भी कौन सा दूध का धूला है जी। इनसे उम्मीद ही बेमानी है।

भला मोदी जी हों या योगी जी या हों राहुल जी। ये लोग शादी न होने का दर्द समझेंगे ? ऐसी उम्मीदें करनें से अच्छा कुँवारे रहना ठीक नहीं है ?

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संगीत का छात्र,कलाकार ! लेकिन साहित्य,दर्शन में गहरी रूचि और सोशल मीडिया के साथ ने कब लेखक बना दिया पता न चला। लिखना मेरे लिए खुद से मिलने की कोशिश भर है। पहला उपन्यास चाँदपुर की चंदा बेस्टसेलर रहा है, जिसे साहित्य अकादमी ने युवा पुरस्कार दिया है। उपन्यास Amazon और flipkart पर उपलब्ध है. फ़िलहाल मुम्बई में फ़िल्मों के लिए लेखन।