2007-8 के दौरान जब आइपॉड और ब्रॉडकास्ट से मिलकर पॉडकास्ट जैसा नया-नवेला शब्द दुनिया में पैदा हो रहा था, तब किसी को अंदाजा नहीं था कि पॉडकास्ट की लोकप्रियता उस समय एकाएक बढ़ जाएगी, जब पूरी दुनिया अटेंशन स्पैन की कमी से जूझ रही होगी।
ये भी अजीबोगरीब विरोधाभास है कि जहाँ एक तरफ़ डिजिटल दुनिया पन्द्रह सेकेंड में अपना डोपामाइन बढ़ाने के लिए दिन-रात स्क्रीन को घसीट रही है। ठीक उसी समय दो-दो घण्टे के पॉडकास्ट भी खूब चाव से देखे जा रहे हैं।
हालात ऐसी है कि जिसे देखिये वही दो माइक और थोड़ी सी सिनैमैटिक लाइटिंग के साथ पॉडकास्ट करना शुरू कर चुका है।
ऐसा करने वालों में आज हर फिल्ड के बड़े सेलिब्रेटी भी शामिल हैं तो नेता और अभिनेता भी हैं। गांव-कस्बों की झोपड़ पट्टी में रहने वाले लोग हैं, तो प्रीमियम घरों में रहने वाली प्रिविलेज्ड जमात भी शामिल है।
इस भरपूर साम्यवादी माहौल में आज फिल्मों का प्रमोशन हो या गानों का प्रचार। चुनाव लड़ना हो या ब्रांड का प्रमोशन करना हो। पॉडकास्ट में जाना मंदिर और दरगाह जाने से कहीं ज्यादा ज़रूरी हो चुका है।
मुझे याद आता है 2018 का वो समय।
जब स्टायलिश कैसे दिखें, आसानी से लड़की कैसे पटाएं। रैंडम लड़की से कैसे चैट करें और बॉडी बनाकर भौजाइयों को इम्प्रेस करें टाइप अद्भुत विषयों पर ज्ञान झाड़ने वाले यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया ने अचानक ये ज्ञान देना बंद करके फूलटाइम पॉडकास्ट करना शुरू कर दिया था।
तब यूट्यूबरों की दुनिया में ये हड़कम्प मच गया था कि यूट्यूब एड रेवेन्यू, ब्रांड प्रमोशन, एफलिएट मार्केटिंग से लाखों छापने वाले रणवीर ने अचानक अपना गेयर क्यों शिफ़्ट कर दिया ? आखिर कौन देखेगा इतना लंबा इंटरव्यू ?
लेकिन असली क्रिएटर वही है, जो आने वाले समय की नब्ज़ पकड़ ले। तब डिजिटल कंटेट क्रिएशन की दुनिया करवट ले रही थी। रणवीर,समदीश और राज शमानी जैसे कई क्रियेटर्स ने उस समय वक्त की चाल को ठीक से पहचान लिया था।
परिणाम ये हुआ है कि आज पांच-सात साल में पूरी दुनिया पॉडकास्टमय हो चुकी है। रिक्शा चलाने वाले से लेकर हवाई जहाज चलाने वालों तक के पॉडकास्ट हैं। पोर्न बनाने वालों और मिठाई बनाने वालों तक के मिलियन व्यूज वाले पॉडकास्ट हैं।
पॉडकास्ट में जहां आपको खुले में सुसु करना पसंद है ? जैसे प्रश्न के साहित्यिक उत्तर दिए जा रहे हैं तो रणबीर इलाहाबादिया ने भी आपको मरने से डर लगता है जैसे प्रश्नों से ऊपर उठकर अक्षय कुमार से पूछ दिया है कि आपने किसी को पेला है ?
लब्बोलुआब ये है कि पॉडकास्ट एक घण्टे में उग जाने वाला वो वट वृक्ष बन चुका है, जिसकी हर डाल से क्रियेटर्स के ऊपर पैसा बरस रहा है।
आज एक पॉडकास्ट पर यूट्यूब न सिर्फ साधारण वीडियोज से ज्यादा आरपीएम देता है। बल्कि एक पॉडकास्ट से इंस्टाग्राम के सैकड़ों रिल्स बन जाते हैं, दर्जन भर वायरल वीडियो निकल आते हैं।
वही पॉडकास्ट न सिर्फ यूटयूब प देखा सुना जाता है बल्कि स्पॉटीफाई, एप्पल म्यूजिक, अमेजन म्यूजिक, सावन, गाना, जैसे तमाम ऑडियो स्ट्रीमिंग एप्स पर भी सुनाई देता है और वहां से भी पैसे कमाता है।
आज इमेज बिल्डिंग के लिए कुछ पीआर कम्पनियां सेलिब्रिटीज और ब्रांड्स से पैसे देकर पॉडकास्ट करवा रहीं हैं।
तो वहीं बीते दिनों तमाम यूट्यूबरों ने ये आरोप लगाया कि आदिवासी तेल बनाने वालों ने रणवीर इलाहाबादिया को एक पॉडकास्ट के साठ से सत्तर लाख रुपये दिए हैं। बाल उगाने की दवा बनाने वाले ट्राया से रणवीर ने करोड़ों लिया है और लोगों को ठगा है।
परसो ये कहा गया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही केजरीवाल जी ने राज शमानी को पचपन लाख देकर पॉडकास्ट किया है, जिसका थंबनेल है…आई एम नॉट करप्ट
लेकिन इन सब बौद्धिक बकलोलियों को हटा दिया जाए तो कल का दिन पॉडकास्ट की दुनिया का क्रांतिकारी दिन था।
कल कोई कंटेंट क्रिएटर नहीं बल्कि देश के युवा अरबपति निखिल कामत पीएम मोदी का पॉडकास्ट करने वाले थे।
अब शेयर बाज़ार में रुचि रखने वाला शायद ही कोई आदमी होगा जो जिरोधा और उसके फाउंडर निखिल कामत को नही जानता होगा।
जैसे-जैसे भारत का शेयर बाज़ार मारवाड़ी और गुजराती समुदाय से छिटकर भारत के गाँव-गिराव तक चला गया है…वैसे-वैसे निखिल कामत एक सफल उद्यमी बनते गए हैं।
फ़ोर्ब्स ने उनको सबसे युवा अरबपतियों की लिस्ट में शामिल किया है। एंटरप्रेन्योरशिप के बाद निखिल अपना एक पॉडकास्ट चैनल भी चलाते हैं..जिस पर अब तक बिल गेट्स, कुमार बिरला, नंदन नीलकेणी और रणवीर कपूर जैसे दिग्गज आ चुके हैं।
उसी कड़ी में कल पीएम मोदी उस पर आने वाले थे। जनता को इंतज़ार था कि पॉडकास्ट की सबसे बड़ी usp यानी गेस्ट और होस्ट का आज भेद मिट जाएगा। यहां कुछ मौलिक बातें होंगी, जो इससे पहले न कभी बताई गई हैं, न ही कहीं सुनाई गई हैं।
लेकिन परिणाम, वही दो घण्टे में चले ढ़ाई कोस और ढाक के तीन पात से ज्यादा कुछ न रहा।
“मैं भगवान नहीं हूं…मुझे आज कोई तू कहने वाला नहीं रहा। दोस्तों को मैं दोस्त नही प्रधानमंत्री नज़र आता हूँ। और इटली की पीएम मेलोनी वाली मीम तो सब देखता हूँ जी। जैसी तीन-चार मौलिक बातों को छोड़कर कुछ नया नही था।”
अक्षय कुमार द्वारा पूछित आप आम चूसकर खाते हैं, जैसे मौलिक प्रश्न भी नहीं थे। निखिल बार-बार चाय पीते हुए अपनी लिमिट्स को याद करते रहे।
और एंटरप्रेन्योर-एंटरप्रेन्योरशिप का जाप करते हुए उस गोल को अचीव करने में कामयाब रहे, जिसके लिए उन्होंने अरबपति बनने के बाद पॉडकास्ट करना शुरू किया है।
आखिरकार दो घण्टे बाद ये समझ आया कि पीएम मोदी को अपने तीसरे कार्यकाल में निखिल कामत की ज़रूरत नहीं बल्कि अब एक ऐसे पॉडकास्ट की ज़रूरत हैं,जहां वो अपनी सफलता की गाथा के साथ ये बताएं कि स्मार्ट सिटी और स्मार्ट विलेज जैसी उनकी दर्जनों योजनाएं कैसे फ्लॉप हुई ? बुलेट ट्रेन में इतनी देर क्यों हुई ?
दस साल बाद भी रेलवे में आमूलचूल परिवर्तन क्यों नहीं आया ? शिक्षा संस्थान बदहाल क्यों रह गए ? भारत की हर प्रतियोगी परीक्षा में बवाल क्यों हो रहा है ? मिडिल क्लॉस पर टैक्स की बारिश क्यों हो रही है ?
देखते ही देखते भारत का हर शहर गैस चेम्बर में कैसे तब्दील हो गया है ?
और आखिरी सवाल कि अपने मेहनत औऱ समर्पण के बल पर एक साधारण कार्यकर्ता से पीएम तक का सफर करने वाले पीएम मोदी को दिलीप सी मंडल जैसे अवसरवादी बुद्धिजीवियों की ज़रुरत क्यों आन पड़ी है ?
अतुल