साँझ हो रही है। गिरजाघर चौराहे पर भीड़ बढ़ती जा रही है। बड़ी देर के बाद एक खाली ऑटो मिला है। भीड़ के कारण पचपन वर्षीय ऑटो वाले अंकल जी मुंह में पान दबाए मेरे जैसे दो-तीन सवारियों को बैठाते जाते हैं..जल्दी-जल्दी पूछते जातें हैं, “लँका ? बीएचयू, दुर्गाकुण्ड ?”
मेरे बगल में एक जोड़ा आकर बैठता है। किसी ब्रांडेड परफ़्यूम की खुशबू ऑटो में फैल जाती है। लड़के के हाथ में फ़िल्म का आधा टिकट है,जिसे वो दांत से चबा रहा है। लड़की के हाथ में मोबाइल है। जिसमें बत्तीस मेगा पिक्सल वाला फ्रंट कैमरा खुला है और लड़की ट्वेन्टी फोर एफपीएस के हिसाब सेल्फियाँ ले रही है।
मैं आश्वस्त हो गया हूँ कि जोड़ा फ़िल्म देखकर ही लौटा है। लड़का कह रहा..”सेल्फी सारी भेज देना।”
लड़की धमकी दे रही..”नहीं,नहीं सबको टैग करूंगी
मम्मी-पापा सबको” फिर उसकी हंसी देखते बनती है। दोनों हँसतें हैं..प्रेम के व्याकरण की वही अनजानी हँसी।
ऑटो स्टार्ट हो गया है। ड्राइवर साहब नें स्वच्छ भारत का नारा बुलंद करते हुए पान थूककर गाना बजा दिया है..
“फूल तुम्हें भेजा है ख़त में,फूल नहीं मेरा दिल है।
मेरा कलाकार मन कभी गीत की लाइनों को सुनता है तो कभी वाद्य यंत्रों के बेजोड़ संयोजन को। लेकिन सारा ध्यान ड्राइवर साहब खींच ले जातें हैं..
देख रहा ड्राइवर साहब की उम्र पचपन वर्ष से कम न होगी लेकिन मिजाज़ में बनारसी रँगीनियत अभी भी बरक़रार है। वो गेयर बदलते जातें हैं,गाने गुनगुनाते जातें हैं। गाने के प्रवाह और स्लेटर में तादात्म्य स्थापित होने लगता है।
नायक कह रहा…
“प्यार छिपा है ख़त में इतना
जितने सागर में मोती
चूम ही लेता हाथ तुम्हारा
पास जो मेरे तुम होती”
मेरे बगल में बैठे जोड़े नें डिस्कसन का विषय ‘सेल्फ़ी कैसे लें ?’ से बदलकर ‘अपना मोबाइल दिखाओ’ पर केंद्रित कर लिया है।लड़की साइड मिरर में अपने कर्ली बालों को सहेजते हुए कह रही “कितना आउटडेटेड गाना है न बाबू ?”
लड़का सर हिला रहा है..”हूँ”
मैं भी सोच रहा..सच में, कितना आउटडेटेड है। फ़ेसबुक, व्हाट्सएप इंस्टाग्राम,टिकटॉक के ज़मानें में तो इस गाने को अंग्रेजों के किसी संग्रहालय में धूल फाँकना था। एक साथ ढाई सौ लोगों को फारवर्ड करने वाले स्मार्ट युग में तो इस गाने को सुनने पर भी म्यूजियम वाला टिकट लगना था।
लेकिन गानें में नायिका गाई जा रही है..
“मिलना हो तो कैसे मिले हम
मिलने की सूरत लिख दो
नैन बिछाये बैठे हैं हम
कब आओगे ख़त लिख दो
फूल तुम्हें भेजा है ख़त में..”
मैं गाने में खोया सोचनें लगा हूँ कि उस पुराने ज़मानें की नायिका में कितना अपार धैर्य था न ? आज नैन बिछाकर भला कौन बैठता..? कोई झट से वीडियो कॉल न कर ले ? पूछ न ले कि बाबू तुम तो अभी बिड़ला हॉस्टल थे न ? फिर महिला महाविद्यालय चौराहा पर कौन सी पढ़ाई कर रहे हो ?
लेकिन नहीं,नायिका कह रही है कि कब आवोगे ख़त लिख दो। यानी कितना अपार संतोष था कि नायिका को नायक के आने से नहीं,उसके आने की ख़बर से ही तसल्ली मिल जाती थी।
आज नायक को लोकेशन शेयर करना पड़ता कि “बाबू स्वतंत्रता सेनानी युसुफपुर-मुहम्मदाबाद से क्रॉस कर रही है।
इधर मेरी तन्द्रा टूट रही है। शायद दुर्गाकुण्ड करीब आ गया है। लेकिन ये क्या साथ में लौट रहे जोड़े में लड़ाई हो गई है..”नहीं तुम मुझे बताओ ये मैसेज तुमने कहाँ से फॉरवर्ड किया। नहीं पहले अपना मोबाइल दिखाओ..हमें कुछ नहीं सुनना बस्स! हमको पता है तुम हमको चीट कर रहे हो। कल लास्ट सीन तुम्हारा तीन बजे तक था..हम एक बजे ही सो गए। दो घण्टे कहाँ चैट किये हो ?”
लड़के की हालत बनारस के ट्रैफ़िक की तरह दयनीय हो रही है। मेरी भी सांस धीमी हो रही है। सोच रहा सिंगल होना भी कम आह्लादकारी नही है।
लेकिन ख़त लिखने वाली नायिका है कि गाई जाती है…
“ख़त से जी भरता ही नहीं है..
नैन मिले तो चैन मिले…..”
सोच रहा अच्छा था,भले उस ज़मानें की नायिका के हाथ में बत्तीस मेगापिक्सल फ्रंट कैमरा वाला फ़ोन नहीं था। लेकिन उसके दिल में स्नैपड्रैगन सेवन थर्टी जी प्रोसेसर लगा था,तभी तो आज तक उसके मोहब्ब्त के गीतों की स्मूदनेस बरकरार है।
इधर नव युगलों का झगड़ा अब शांति की तरफ़ है। लग रहा लेनिन नें जार के शासन का अंत करके रसियन क्रांति का आगाज़ कर दिया है। फलस्वरूप लड़की नें मुंह लटका लिया है, लड़के नें मुंह बना लिया है।
ड्राइवर साहब नें दूसरा गुटखा फाड़ लिया है। मैनें झगड़े से ध्यान हटाकर मोबाइल पर ही केंद्रित कर लिया है।
अब सामने ट्वीटर खुला है। दो प्रिसिद्ध हैंडलों नें माफीनामा लिखा है कि कल जो ट्वीट उन्होनें किया था वो वीडियो फेक था। हमको पता है कि काफ़ी लोगों की भावनाएं आहत हुईं,इसका उन्हें भारी दुःख है। उन्हें माफ किया जाए!”
अब कमेंट में लोग माफी मांगने वाले को लानतें भेज रहें हैं.. “अरे! भेजने से पहले देख तो लेते।” कोई कह रहा “सोशल मीडिया जहर फैलाने का माध्यम बनता जा रहा है। हर आदमी बस फारवर्ड कर रहा कोई नहीं जानना चाहता है कि वो जो शेयर या रीट्वीट कर रहा वो जानकारी सही है या नहीं है।”
मैं ट्वीटर बन्द करके आंख बंद कर लेता हूँ।
संकटमोचन महराज करीब हैं।
इधर ऑटो में कई पुराने गाने बजकर ख़त्म हो गए हैं। दो-तीन लोग ऑटो में चढ़कर उतर भी गए हैं। लेकिन मेरे विचार खत्म नहीं हो रहें हैं,मन बार-बार वही गुनगुनाता जाता है..
“प्यार छिपा है ख़त में इतना
जितने सागर में मोती”
बार-बार उस जोड़े की बात याद आती है..”ये गाना कितना आउटडेटेड है न बाबू ? तुम मुझे चीट कर रहे ?
सोच रहा आज कौन किसको समझाए की क्या आउटडेटेड हो गया है। दस-बीस साल बाद हमारी कल्पना से परे कोई और बड़ी संचार क्रांति होगी तब क्या ये जान से प्यारा मोबाइल भी आउटडेटेड नहीं हो जाएगा ?
सबको आउटडेटेड होना है। ये खत-मोबाइल सब आउटडेटेड हो सकता है। लेकिन मेरे भाई,प्रेम कभी आउडेटेड नहीं होता।
खत तो साधन था,प्रेम साध्य है और रहेगा। साधन बदल जाने से साध्य नहीं बदलता है।
लेकिन यहीं गड़बड़ हो गई है। हमनें साधन को ही साध्य मान लिया है। इस मोबाइल रूपी डीजिटल खतों को ही प्रेम समझ लिया है।
काश हर आदमी शेयर, फॉरवर्ड,रीट्वीट रूपी डिजिटल खतों को भेजने से पहले सोच लेता कि वो प्रेम भेज रहा कि नफ़रतें भेज रहा कि इमोशन के नाम पर धोखा भेज रहा कि विश्वास भेज रहा। तो शायद उसी दिन ये लड़ाई,गाली-गलौज़,नफ़रत और वैचारिक उन्माद कम हो जाता।
और क्या कहें ? बस एक शेर याद आ रहा है।
“वो तड़प जाए इशारा कोई ऐसा देना
उस को ख़त लिखना तो मेरा भी हवाला देना”
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