पता नहीं जी कौन सा नशा करता है ?

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close up of hand stopping drink from being served

पुराने ज़माने की महबूबा को पता रहता था कि एक दिन मेरी शादी अगर किसी सरकारी नौकरी वाले से हो गई तो मेरा ये भोला आशिक़ बहुत करेगा तो सिगरेट पीना छोड़कर दारू पीना शुरू कर देगा और गुड्डू रंगीला के गाने न सुनकर अल्ताफ़ राजा और अताउल्ला खान को सुनने लगेगा।

बहुत मजबूर होगा तो बाएं हाथ से आँसू पोछते हुए दाहिने हाथ से मेरी शादी में बारात की ख़ातिरदारी करेगा। और दुर्योग से थोड़ा बुद्धिजीवी होगा तो दिल टूटने के बाद “गुनाहों का देवता” पढ़कर कवि या शायर बन जाएगा और आगे चलकर लोगों का वक्त बर्बाद करेगा। रफ़ी नें गाया भी है..”मैं कहीं कवि न बन जाऊँ तेरे प्यार में ए कविता।”

कई बार लगता है कविता की बर्बादी यहीं से शुरू हुई होगी।

खैर! उस ज़मानें की महबूबाएं बहुत इंटेलेक्चुअल हुआ करतीं थीं। वो ये भी जानती थीं कि बेचारे प्रेमी का अगर दिल टूट गया तो उसके पास साधु बनने का भी पर्याप्त स्कोप हैं। आज ऐसे न जानें कितने साधु सड़कों पर टूटा हुआ दिल लेकर घूम रहें हैं। फ़िराक़ का एक शेर है।

“आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में ‘फ़िराक़’
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए “

मुझे लगता है कि फ़िराक़ बाबा इसमें इशारों-इशारों में कह रहें हैं कि प्रेम की शराब पीने के बाद भी संजीदा होने की सारी सम्भावनाएं बचीं हुई होतीं हैं। शराब ऐसी पियो जो संजीदा कर दे। नशा ऐसा करो कि आध्यात्मिक बन जावो..

लेकिन आज कितने दुःख की बात है कि महबूबा कह रही है,

“पता नहीं जी कौन सा नशा करता है,
यार मेरा हर एक से वफ़ा करता है।”

मने कि नशे को लेकर कितना कन्फ्यूजन है। अभी तक लोगों को रिया और सुशांत का नशा समझ नहीं आ रहा था,तब तक देश इस बेचारी के नशे की अज्ञानता से दुःखी हो गया है। पता नहीं नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो वालों की नज़र इसके प्रेमी पर क्यों नहीं जा पा रही है। बेचारी रोते हुए कह रही है…

“छिप-छिप के बेवफ़ाइयों वाले दिन चले गए
आंखों में आंखे डालकर दगा करता है।”

मेरा लेखक मन इस दुःख को सुनकर कभी-कभी इतना दुःखी हो जाता है उसका वश चले तो बेचारी को ऑडियो-वीडियो से निकालकर कहे कि रे बबुनी ये तुम्हारे करेजे से फ़फ़ाता हुआ ये दुःख,वाकई बड़ा दुःख है। फ़ाइजर और एस्ट्राजेनिका की औकात नहीं है कि नौ महीने में इस दुःख की कोई वैक्सीन बना देगा।

लेकिन तू जिस ज़मानें की बात कर रही है रे पगली ? ग़लती तो तेरी भी है। तू प्रेमी से दिन भर में चौतीस बार मेरे बाबू नें काना काया पूछती हैं। दिन भर मुँह बना-बनाकर डीपी कैसी लगी,कवर पिक देखे टाइप ज़रूरी सवाल करतीं हैं। ऊपर से संडे को टाइम मिलता है तो सिनेमा,रेस्टुरेंट भी चलीं जाती हैं,फिर भी तुझे आज तक पता नहीं चल पाया कि तुम्हारा आशिक बीड़ी पी रहा है कि बियर पी रहा है ? अल्कोहल ले रहा है कि अफ़ीम ले रहा है ?

तुझ पर लानत है रे लड़की।

अब तू रोना-धोना छोड़ दे। वो ज़माना चला गया जब प्रेमी कहता था कि जनम-जनम का साथ है हमारा तुम्हारा,अगर न मिलते इस जीवन में लेते जनम दुबारा।

आज का प्रेमी कह रहा है कि कुछ ऐसा कर कमाल तेरा हो जाऊँ,मैं किसी और का हूँ फ़िलहाल।”

इश्क की फ्लैक्सबिलिटी देख पगली..फ्लैक्सबिलिटी देख।

देख इसका लचीलापन देख..ये इश्क नोरा फतेही की कमर से भी ज़्यादा लचीला है जो कहीं से कहीं फिसल रहा है। लेकिन तू निराश मत हो। योगी जी यूपी में लेखपाल की भर्ती निकालने वाले हैं।चुप-चाप जाकर तैयारी कर। कम से कम नलकूप चालक भी बन गई तो सरकारी नौकरी के कारण उसके जैसे बीस लौंडे आएंगे और बीस लौंडे जाएंगे।

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संगीत का छात्र,कलाकार ! लेकिन साहित्य,दर्शन में गहरी रूचि और सोशल मीडिया के साथ ने कब लेखक बना दिया पता न चला। लिखना मेरे लिए खुद से मिलने की कोशिश भर है। पहला उपन्यास चाँदपुर की चंदा बेस्टसेलर रहा है, जिसे साहित्य अकादमी ने युवा पुरस्कार दिया है। उपन्यास Amazon और flipkart पर उपलब्ध है. फ़िलहाल मुम्बई में फ़िल्मों के लिए लेखन।