कहानी नम्बर एक
सत्तर के दशक का अमेरिका.सतरह साल का एक दुबला सा लड़का,एक दिन छोटी-छोटी आँखों में बड़े-बड़े सपनें लेकर अमेरिका के सबसे महंगे कालेजों में से एक,रीट कालेज में पढ़ाई करने का फैसला करता है.पढ़ाई चलती है..वैसे ही जैसे कालेज जाने के बाद सभी लड़कों की चलती है.
अंतर बस इतना है कि उस लड़के के साथ एक दिन ऐसा होता है जो प्रायः सभी लड़कों के साथ नहीं होता.
छह महीना पढ़ने के बाद अचानक एक दिन उसे एहसास होता है कि वो जिस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए इस कालेज में आया था,उसको पानें में वो अभी भी नाकामयाब है..यहाँ तक कि इस कालेज की फीस जमा करने में उसके माँ-बाप के जीवन भर की पूरी कमाई खतम होती जा रही है.पढाई में कहीं कोई उम्मीद की किरण नज़र नहीं आ रही.
ये एहसास दिन पर दिन उसको बेचैन करता है.
देखते ही देखते उसकी छोटी-छोटी आँखों में निराशा की बड़ी-बड़ी धुंध गहराती जाती है.इस पारम्परिक पढ़ाई से उसका मन उबने लगता है.इस उबन और बेचैनी के कारण लड़का एक दिन कालेज छोड़ने का कठिन फैसला कर लेता है.यहीं शुरू होती है जिंदगी से लड़ाई.एक महान योद्धा की भाँति जंग.जलती है संघर्ष की वो भट्ठी जिसमें तपना हर सोने की किस्मत में लिखा होता है.
लड़का निराश नहीं होता है..पैसे और गरीबी के अभाव में अपने दोस्तों के कमरे की फर्श पर रात गुजारता है.कोक की बोतलें बेचकर ब्रेड खरीदता है.भर पेट खाने के लिए रविवार को सात मील पैदल चलकर इस्कॉन मन्दिर जाता है.इस संघर्ष की यात्रा में अनेक ऐसे पड़ाव आतें हैं..जिनका जिक्र करना जिंदगी की कड़वी सच्चाई से रुबरु होना है.
लड़के को विश्वास है कि एक दिन ऐसा जरूर आएगा.जब वो सबसे अलग करेगा.सबसे जुदा.सबसे सुंदर.क्योंकि कुछ को मंजिल प्रिय होती है तो कुछ रास्ते. ये लड़का तो सफलता के उस पहाड़ को छूना चाहता है.जहाँ से एक दिन पूरी कायनात छोटी नज़र आऐ.
कुछ दिन बीतता है.अचानक उसे ये एहसास होता की जीवन में कुछ ऐसा है जिसको जाने बिना कुछ भी जानना बेकार है..कुछ ऐसा है जिसको पाए बिना कुछ भी पाना बेकार है.एक जगह है जहाँ गए बिना कहीं भी जाना व्यर्थ होगा.कुछ तो है जिसे खोजा जाना चाहिए.
यहीं से शुरू होती है खुद को जानने की एक गहरी प्यास..अन्तस की अद्भुत यात्रा.कहतें हैं इस यात्रा का ठहराव भारत में आकर पूरा होता है….कहीं से पता चलता है कि भारत में एक दिव्य और बड़े ही ओजस्वी सन्त हैं..वहां जावोगे तो खुद को जान जावोगे.तुम्हें तुम्हारी आत्मा से साक्षात्कार हो जाएगा.लड़का उस संत को खोजते हुए, भूलते-भटकते सन 1972 में नैनीताल स्थित कैंची धाम आ जाता है.
लेकिन ये क्या.यहाँ आता है तो पता चलता है कि जिस सन्त की तलाश में वो अमेरिका से दूर यहाँ पहाड़ों पर आया है,वो तो आज से दो साल पहले ही समाधि ले चूके हैं..ओह ! उसे अफ़सोस होता है.लेकिन निराश नहीं होता..क्योंकि कहतें हैं कि सच्चे संत कभी मरते नहीं..वो तो ऊर्जा के रूप में हमेशा इस अस्तित्व में मौजूद होतें हैं..बस जरा स्वयं को जगाने की जरूरत होती है.लड़का उन्हीं संत द्वारा स्थापित बजरंगबली के सामने बैठकर ध्यान करना शुरू कर देता है.
और करीब तीन महीना उस आश्रम में बिताने के बाद जब अमेरिका जाता है ,तब नींव डालता है,एक ऐसे ब्रांड की जिसे दुनिया अपने हाथ में लेकर खुद को सेलिब्रेटी समझती है. iPhone,Macbook,i pad,खरीदने के लिए घण्टों लाइनें लगाती है.जिस लड़के के विचार को लोग अपने कमरे की दीवालों में चस्पा कर सुबह-शाम पढ़ते हैं..जिसके दिए भाषण को माता-पिता अपने बच्चों को सुनवातें हैं..जिसे दुनिया आज दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के सबसे बड़े ब्रांड Apple के संस्थापक और Business Tycoon Stev Jobs के नाम से जानती है.
कहानी नम्बर दो
आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका में हैं..आधी बांह वाले कुर्ते के इतर आज सूट-बूट में दिख रहा उनका तेजोमयी व्यक्तित्व पूरब और पश्चिम के मिलन की सही-सही व्याख्या कर रहा है.आज Facebook Town Hall में उनसे सवाल जबाब का कार्यक्रम है.
सामने बैठे हैं दुनिया के सबसे बड़े परिवार के मुखिया यानी फेसबुक के Ceo और Founder मार्क जुकरबर्ग.मार्क सवाल-जबाब करने से पहले मोदी से मुखातिब होतें हैं.और बातों ही बातों में भावुक होते हुये बताते हैं कि ‘उनके जीवन में एक वक्त ऐसा आया जब फेसबुक बिकने के कगार पर खड़ा हो गया था.
उनके प्रतिद्वन्दी पूरा फेसबुक खरीदने के लिए तैयार बैठे थे.क्या होगा कुछ समझ में नहीं आ रहा था.आँखों के सामने वर्षों की मेहनत बेकार हो रही थी.”यहाँ तक कि मार्क को भी ये एहसास हो गया था कि अब Facebook बेच देना चाहिए.
एक दिन वो निराश और उदास होकर अपने मेंटर और एप्पल के तत्कालीन सीईओ स्टीव जॉब्स के पास गए.कहतें हैं स्टीव ने उन्हें समझाया कि.”धैर्य रखो..निराश न होओ.अगर तुम विश्व से जुड़ना चाहते हो तो भारत के उस मन्दिर में जाओ.जाओ उस सन्त के पास जहाँ निराश होकर कभी मैं भी गया था.वहाँ आँख बन्द कर बैठना कुछ देर.”
मार्क आगे कहतें हैं कि “मैं अपने गुरु स्टीव की बातें मानकर उस मन्दिर में गया और सच में वहां जाकर प्रेरणा ही प्रेरणा मिली.. एहसास हुआ कि लोग एक दूसरे से कैसे जुड़े हुए हैं और लोगों को कैसे जोड़ा जा सकता है.”
रुकिए जरा.मार्क के मुंह से ये सुनते ही एक बार मोदी भी गर्व से भर जातें हैं.सामने बैठे फेसबुक के भारतीय इंजीनियरों के चेहरे आश्चर्य मिश्रित गर्व से चमकने लगतें हैं.इधर हिन्दुस्तान में दिन भर आशाराम,रामपाल और राधे माँ को दिखाकर आस्था,पूजा,मन्दिर का मजाक बनाने वाले टीवी चैनलों के साथ नास्तिकता की रोटी सेक रहे बड़े-बड़े प्रकांड बुद्धिजीवी,तर्कवादीओं का दिमाग चकराने लगता है.
भारतीय मीडिया में भूचाल आ जाता है,न्यूज चैनलों के वैन और संवाददाताओं की गाड़ियां धड़-धड़ा कर खोजने निकल जातीं हैं कि आखिर वो कौन सन्त हैं ? वो हिन्दुस्तान का कौन सा मन्दिर है. ?
कहानी….(जो शायद सबसे पहले कही जानी थी )
“हिन्दुस्तान में अंग्रेजों का राज है.भारत स्वतंत्र होने के लिए छटपटा रहा है.रेलवे अभी अपनी उस शैश्ववाअवस्था में है जिसका विस्तारीकरण जारी है..लोग रेलवे को अभी अजूबे की भांति देख रहें हैं…एक दिन एक सन्यासी की भाँती दिखने वाला व्यक्ति आँखों में दिव्यता,चेहरे पर किसी मासूम बच्चे जैसी कोमलता ,वाणी में ओज, बदन पर कम्बल,हाथ में कमण्डल और चिमटा लिए शायद पहली बार रेल में चढ़ता है.
कुछ ही देर बाद उसे पता चलता है कि रेल में चढ़ने के लिए पहले टिकट लेना पड़ता है.तब जाकर यात्रा होती है.फिर क्या होता है ? वही जो होना चाहिए.
करौली नामक जगह पर एक अंग्रेज टीटी आता है..टिकट चेक करता है.और बिना टिकट के यात्रा कर रहे उन सन्यासी को बेइज्ज़ती से उतार देता है.कहतें हैं वो सन्यासी आराम से उतर जातें हैं,और पुरे फक्कड़पन के साथ उसी स्टेशन की जमीन पर अपना चिमटा गाड़ कर..जय हनुमान जय-जय हनुमान” का सुमिरन करने लगतें हैं.कहतें हैं.
ट्रेन जब चलने को होती है तो.होता है एक आश्चर्य,ट्रेन चलने का नाम नहीं लेती है.थोड़ी ही देर में रेलवे के ड्राइवर,ग्रांड सहित इंजीनियरों के पसीने छूट जातें हैं.इधर कोई आकर ड्राइवर से बता देता है कि “टीटी ने जिस सन्त को उतारा है उसे क्या तुम जानते हो वो कौन हैं..? वो साधारण इंसान नहीं..सबसे कहो की जाकर उनसे माफ़ी मांगें.”
अंग्रेजों को ये ढोंग लगता है..वो भारतीयों की इन नीरा मूर्खता भरी बातों पर हंसते हैं..ये क्या बेवकूफी है.?
स्वभाविक है.ऐसा कैसे सम्भव है भला कि कोई जमीन पर चिमटा गाड़ के ट्रेन रोक सकता है…वोअनसुना और ढोंग समझकर ट्रेन के टेक्निकल फाल्ट को ठीक करने लगते हैं.दो घण्टा,चार घण्टा,छह घण्टा सही करने के बाद भी सब सही नहीं होता.कहीं कोई चारा नज़र नहीं आता.यात्री परेशान होकर चिल्लाने लगतें हैं.
गार्ड और ड्राइवर को कहीं कुछ नहीं सूझता.फिर क्या.बेचारे थक हार के उस सन्यासी के सामने हाथ जोड़ खड़े हो जातें हैं.कहतें हैं कि फिर तो सन्यासी मुस्कराते हैं.और मुस्कराकर ट्रेन में बैठ जातें हैं.ट्रेन सिटी देकर चल देती है.लोग कहते हैं कि करौली में घटी इस घटना के बाद तो चमत्कार हो जाता है.उस सन्यासी की चहुँओर जय-जयकार होने लगती है. और उसी दिन उन सन्यासी का नाम भारतीय अध्यात्म जगत में ऐसे छा जाता है.
जिसे दुनिया Neem Karoli Baba के नाम से जानती है.बाबा उसी करौली नामक स्थान पर दस साल तक साधना करते हैं..जगह-जगह हनुमान जी के मन्दिर बनवातें हैं.
जिनमें बाबा का प्रमुख केंद्र यानी..नैनीताल स्थित कैंची धाम का आश्रम आज दुनिया भर के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है…जहाँ निराश होकर कभी स्टीव जॉब्स आते हैं,कभी जूलिया रॉबर्ट तो कभी मार्क जुकरबर्ग..
और साक्षात हनुमान जी के अंश बाबा नीम करौली के पास बैठकर हनुमान जी का ध्यान करते हैं..राम नाम का सुमिरन करते है..लेकिन मुझे अफ़सोस और खेद है कि एक महान संत की कहानी बताने से पहले किसी स्टीव जाब्स और मार्क जुकरबर्ग,जूलिया रॉबर्ट का उदाहरण देना पड़ा..शायद इसलिए कि हमारा संकीर्ण भारतीय और संकुचित चित्त किसी चीज की आयातित मान्यता को ज्यादा तरजीह देता है…
शायद इसलिए की हम अपनी जड़ों से इतने कट चूके हैं की हम कभी क्या थे इस बात का हमें ही अंदाजा नहीं है..
सोचिये जरा कि कभी हम आध्यात्मिक तल पर कितने सम्पन्न थे कि दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित ब्रांड के मालिक Steve Jobs की मृत्य के बाद तकिये के नीचे Neem Karoli Baba की तस्वीर मिलती है..
जूलिया रॉबर्ट और Mark Zuckerberg जैसे हजारों-लाखों भक्तों के सुबह की शुरुवात उनका स्मरण करके होती है…
लेकिन क्या बाबा की पहचान इन छोटी-छोटी चीजों की मोहताज है ?
क्या हमारा दुर्भाग्य नहीं है की हम अपने महान संत को इसलिए याद करें की दुनिया के कुछ सफल व्यक्ति उन्हें ईश्वर से कम नहीं मानते हैं ? नहीं-नहीं.. दुनिया के लिए भले ये आकर्षित करने वाली चीजें हों..लेकिन हमें स्टीव जॉब्स और मार्क जुकरबर्ग से ज्यादा बाबा नीम करोरी के बारे में जानने की जरूरत है.
उस वैराग्य की शुद्धावस्था के बारे में जहाँ साधू नामक शब्द सच्चे मायनों में चरितार्थ होता है.जिनकी ऊर्जा में कुछ देर बैठना स्वयं को फिर से परिभाषित करना है.जहाँ कुछ देर बैठना स्वयं के भीतर स्टीव जाब्स और मार्क जुकरबर्ग पैदा करना है.
लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि की सात समन्दर पार के स्टीव जाब्स,मार्क जुकरबर्ग और जूलिया रॉबर्ट को पता है की Neem Karoli Baba कौन हैं..लेकिन क्या हमारे ही देश में उन सबको इस बात की जानकरी है जो दिन रात आईफोन में फेसबुक चलाकर भारतीयता और उसके आध्यात्मिक मूल्यों का मजाक उड़ाते हैं.?
जी नही !
उनको पता नहीं होगा कि ओशो ने एक जगह कहा है कि “दुनिया में आज तक के जो श्रेष्ठ और महान विचार हुए हैं.. उनका जन्म मन की शून्य दशा में हुआ है.”उनको पता नही की मन की शून्य अवस्था बड़े-बड़े कालेजों की डिग्रीयाँ लेकर नहीं प्राप्त होती.उसे तो किसी नीम करोरी बाबा जैसे सिद्ध संत की ऊर्जा में जाकर ही प्राप्त करना पड़ता है.
उन तपस्वियों के सान्निध्य में जाना पड़ता है जिसने पूरा जीवन पतंजलि के आष्टांग योग को साधने में लगा दिया है.वहीं बैठकर ही कभी Apple पैदा होता है तो कभी Facebook. दुःख की बात है.आज जिस भारतीय अध्यात्म के पीछे पूरा पश्चिम टूट पड़ा है..उस अपनी चीज को अपने ही देश के लोगों ने बुद्धिजीवी,वैज्ञानिक और तर्कवादी बनने के चक्कर में बिसरा दिया है.
रही-सही कसर लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति ने इन युवायों को पैसा कमाने वाली मशीन बनाके कर दिया है.जिनकी आत्मा गायब है.इसका कारण यही है कि हमारी शिक्षा पद्धति से हमारी जड़ें और महान आध्यात्मिक परम्पराएं कट गयीं हैं.पढ़ाई के नाम पर वही रट्टू तोता की तरह कूड़ा कचरा पढ़ाया जा रहा है.
आज देश के अधिसंख्य युवा स्टीव जाब्स और मार्क जुकरबर्ग नहीं बनना चाहते,वो पैसा कमाकर iphone 7 में फेसबुक चलाना चाहते हैं.इस कठिन हालात में आज जब अध्यात्म बिजनेस बना हुआ है..बाबागिरी अय्याशी में तब्दील हो रही..कुछ विनाशी तत्वों ने इन चन्द धार्मिक बिजेनस मैनों के बहाने हमारे सिद्ध साधू-महात्माओं को भी नहीं बख्सा है..उस समय बाबा नीम करौली जैसे सच्चे सन्तों को जान लेना और अपने आने वाली पीढ़ी को जनवा देना जरूरी है…क्योंकि ऐसे सन्तों की हमेशा मौजूदगी रही है..
गंगा-जमुना और नर्मदा आदी नदियो के किनारे बने हुए सिद्ध योगीओं के जर्जर आश्रम आज भी इस बात के गवाह हैं..कि कभी महान ऋषियों की परम्परा कितनी महान थी..जिनके आप्त वचन आज भी पूरी दुनिया को लुभातें हैं.
बस जब मौक़ा मिले जागने की जरूरत है.महसूस करने की..फख्र करने की.. कि हम उस महान आध्यात्मिक परम्परा वाले देश में पैदा हुए हैं..जहाँ ईश्वर ने ये सारी सैगातें दे रखीं हैं.
मैं कहता हूँ खोजिए उन सन्तों को..जानिए उनके बारे में..क्योंकि इस देश में बाजारवाद के सहारे एक गहरी साजिश चल रही आपको आपसे दूर करने की..
देखिये उन सन्तों को क्योंकि उनमें से बहुत लोग कभी टीवी पर नहीं दीखते,न ही प्रवचन करते हैं..वो तो अपनी साधना में लीन हैं…
“सन्तन को कहाँ सिकरी सो काम.जाइये कभी..जरूर जाइये उनकी ऊर्जा में जाकर साधारण आदमी भी स्वयं की चेतना में परिवर्तन महसूस करता है…जहाँ कभी स्टीव जाब्स एप्पल पैदा करतें हैं तो मार्क जुकरबर्ग फेसबुक.
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