कवि चिंगारी की खिड़की पर कविताओं का मौसम उतर आया था। पिछले एक हफ्ते में उन्होंने बयालीस कविताएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं को भेजी थी। भेजने को तो वो पचास कविताएं और भेज सकते थे लेकिन फूल,पत्ती, गमला आलू,प्याज और मूली जैसी मामूली कविताएँ लिखकर उनका मन उकता चुका था।
अफ़सोस एक कवि का कविता से उकता जाना हमारे यहाँ अभी विमर्श का हिस्सा नहीं बन पाया है। इसलिए चिंगारी जी सामने लॉन में लगे गमलों में ऊग आए कुछ फूलों को निहार रहे थे। तभी उनकी नजर एक पोस्टर पर चली गई। एक बिजली के खम्भे पर लगा पोस्टर शहर में होने वाले आगामी राष्ट्रीय साहित्यिक समारोह की सूचना दे रहा था।
चिंगारी जी की देह में साहित्यिक करेंट दौड़ गया। उन्होंने देखा उनके ही शहर में तमाम साहित्यिक दिग्गज आ रहे हैं। कुछ कवि तो ऐसे हैं, जो उनके अनुसार कभी उनके शिष्य हुआ करते थे…
लेकिन कुछ का नाम तो उन्होंने हिंदी साहित्य के इतिहास में आज तक कभी नहीं पढ़ा है। चिंगारी जी ने चश्मा थोड़ा उपर किया। अचानक पोस्टर पर एक छायावादी कवियत्री के दर्शन हुए.. जिसने इन दिनों कविता में कपड़ो के साथ लगातार प्रयोग करके साहित्यिक जगत में हलचल मचाई हुई है।
चिंगारी जी एकटक उस पोस्टर को निहारते रहे। उनका चेहरा रुआसां हो गया…एक झटके में उठे, दीवाल पर लगे अपने तमाम साहित्यिक पुरस्कारों और मानद अलंकरणों को देखा…ऐसा लगा मानों वो सब रो रहें हों…वो गुलजारी देवी न्यास द्वारा मिला कविता भूषण सम्मान हो या बनवारी लाल न्यास द्वारा मिला कवि कुलभूषण सम्मान सब लानतें भेज रहे हो…तुम कैसे कवि हो कि अपने ही शहर में बिसरा दिये गए…क्या आयोजक नहीं जानते कि एक राष्ट्रीय कवि उनके ही शहर में रहता है।
दुःखी चिंगारी जी ने अपने सम्मान पत्रों से नजरें हटा ली। और अपने वार्डरोब की तरफ़ निहारने लगे।
सामने कुर्ता-पायजामा और वो खादी की सिलवाई नई सदरी नया झोला, सब मिलकर चीख उठे हे कवि महोदय ये मौसम खिड़की पर बैठकर फूलों को देखते हुए छायावादी चिंतन करने का नही है..ये तो साहित्यिक आयोजनों का समय है… सारे साहित्यकार निमंत्रित हैं। हर शहर का अपना एक लिट् फेस्ट हो रहा है। प्रभु आप कब तक चलेंगे ? कब यहाँ से निकलेंगे…
उन्होंने देखा आलमारी में टँगा वो सफेद गमछा जो उन्हें बिससेर प्रसाद साहित्यिक सम्मान के साथ मिला था, वो भी पूछने लगा, हे कवि तुम्हरी कविताओं की धार में कौन सी कमी है जो किसी साहित्यिक सम्मलेन की धारा में फीट नही बैठ रही है।
चिंगारी जी को चिंता सताने लगी, सांस तेज होने लगी। अगले कुछ मिनटों में वो अपनी कलम से अपने माथे को खुरेचा और सोचने लगे कि बात तो सही है..राष्ट्रीय स्तर के चार पुरस्कार लेने के बाद भी उनकी कविताऍं किसी साहित्य उत्सव का हिस्सा क्यों नहीं बन पाई हैं ? क्या ये हिंदी के छात्रों के लिए शोध का विषय नही है ?
पति की हालत देख श्रीमती चिंगारी जी से रहा न गया। उन्होंने किचन में आलू छिलते हुए कहा, सिर्फ हमसे मुंह चलाएंगे, हमसे कहेंगे कि तुम का जानती हो कि हम कितने के बड़े कवि हैं, अब जाइये आयोजकों से बताइये कि हम कितने बड़े कवि हैं। इतने बड़े कवि हैं कि अपने ही शहर में बुलाए नहीं गए।
पत्नी को वीरगाथा काल की कविता प्रस्तुत करता देख चिंगारी जी रहा न गया..वो घर से बाहर निकल आए..
घर की सामने वाली गली पर एक चाय वाला चाय बेच रहा था और कुछ पढ़ रहा था…दो-चार लड़के उसे रिकॉर्ड कर रहे थे। कवि चिंगारी ने एक चाय और एक सिगरेट मांगा और उस चायवादी कवि को देखने लगे, उनकी समझ में नहीं आया ये कवि अजीबोगरीब तरीके से मुंह बनाकर चाय पर कविता क्यों पढ़ रहा है ?
एक कैमरामैन ने चिंगारी जी को पहचान लिया और बोला, कवि महोदय, यही ट्रेंड में है आजकल। मुझे पता है आप क्यों नहीं बुलाए गए। इसमें आपका दोष नहीं है। दोष आपकी कविताओं का है। आजकल कवि वही है, जिस पर रील बने..या जिसकी कविता पर रील बने। आजकल कवि को कविता करने से पहले इंफ्लुएंसर बनना पड़ता है, तब जाकर उसे किसी साहित्यिक समारोह का हिस्सा बनने का मौका मिलता है।
आपसे तो मैं आज तक इंफ्लुएंस नहीं हो पाया, साहित्यिक दुनिया क्या खाक होगी ? अरे कवि नहीं इम्फ्लुएंसर बनिये।
एक ओपन माइक में पढ़ी जाए ऐसी कविता शूट करवाइए मात्रा पांच हज़ार में। ऑफर कल तक का है। इतने जागरूक कैमरामैन को देखते ही चिंगारी जी से रहा न गया। झट से कहा, “ठीक है, मेरी भी चार-पांच रील बना दो,लेकिन थोड़ा फील के साथ..!”