जाड़ा,ऑटो,अंकल और वो अकेली लड़की

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वाकया थोड़ा पुराना है..जनवरी की  कोई ठण्डी सी शाम होगी..बीएचयू से क्लास करके लौट रहा था..जाड़ा अपने पूरे शबाब पर..जहाँ तहाँ लोग अपने दांत को तीव्र लय में किटकीटाकर अलाव ताप रहे थे.

गुरु जी क्लास में हमको अलग से  डांट दिए थे.  “तुम्हारे बस का संगीत नहीं छोड़ दो बेटा” सो ठण्डी के मौसम में गर्मी का एहसास हो रहा था..मल्लब कि मिजाज झन्ना कर  आड इवेन और दिल दिल्ली हो गया था..

सोचा की चलो अब कमरे पर चला जाय..वहीँ चलकर रोया जाएगा…तब अस्सी स्थित रीवा कोठी हॉस्टल में कमरा नम्बर 202 ही  अपना ठिकाना था…लेकिन संयोग से उस दिन मुझे कुछ काम से गोदोवलिया  जाना था….लंका से ऑटो  पकड़ा और कान में मेहँदी हसन को खोंसकर आँख बन्द कर लिया….
मेंहदी बाबा गा रहे हैं….
“गजब किया तेरे वादे पर एतबार किया
तमाम रात कयामत का इंतजार किया”
तब तक एक मेरी ही तरह क्लास करके लौट रही एक लड़की मेरे पास आकर बैठ गयी.और लड़की के ठीक 2 मिनट बाद एक अंकल जी आये..और पान घुलाते हुए बैठ गए. लड़की बीच में,अंकल जी और हम उसके अगल बगल…ऑटो वाले ने  किक मारी, दो-चार दूसरे ऑटो वालों को अच्छी अच्छी गालियां दी, रेड ऍफ़ एम आन किया और चल दिया.

चलते-चलते जब अस्सी आये तो क्या हुआ कि लड़की ने ऑटो  रुकवा दिया..और मुझसे कहा “भइया क्या आप बीच में आएंगे…”? हमने कहा “जी जरूर”….
हम बीच में आ गए..अब अंकल जी कभी मुझे घूरें कभी लड़की को… मुझे कुछ माजरा समझ में न आया….अचानक अंकल जी दूकइसा मुंह बनाकर अस्सी के आगे सोनारपुरा आते आते उतर गए…

उनके उतरने के कुछ देर बाद  लड़की भी जंगमबाड़ी उतर गयी  और  कुछ ही देर में हम गोदोवलिया आ गए….ऑटो वाले ने सौ का चेंज देते हुए मुझसे कहा..”जानते हैं भइया?.. ये चचा जी उस लड़की के ब्रेस्ट में हाथ लगा रहे थे…”

मैं अवाक!..अरे!…मैंने कई बार पूछा “क्या सच में.”…? उसने कहा “भइया मैं मिरर में देख रहा था”…मैंने पूछा..”बोले क्यों नहीं…वो कहा “लड़की बेचारी कुछ नहीं कह रही तो हम क्या करें..वो चुप चाप जगह बदल लेना उचित समझी..तो हम भी चुप चाप रहना उचित समझे..”

मैं तो शान्त हो गया एकदम से.अवाक!…ऐसा कभी सोचा भी नहीं…अरे सड़क छाप लौंडे ही  इस तरह का काम करतें हैं…लेकिन उस सम्भ्रान्त से दिखने वाले  अंकल जी की बेटी अगर होगी तो भी इस बेचारी से बड़ी ही होगी…. और वो!… यकीन नहीं हो रहा था..
तभी ऑटो वालों ने धीरे से कहा “ये रोज का किस्सा है भइया..बूढ़े भी कम नहीं…लौंडे तो बदनाम हैं हीं…यही समझिये कि बस दो चार ही लड़कियां विरोध में थप्पड़ जड़ देती हैं,वरना अधिकतर इनकी उम्र देखकर जगह  बदल लेना ही उचित समझती हैं….”

तबसे इस तरह की कई घटनाएं सुन,देख,पढ़ चूका हूँ….ट्रेन,बस,ऑटो  से लेकर फेसबुक whtas app हर जगह हो रहा….कुछ लौंडे तो यही करने के लिए पैदा हुए हैं…..सड़कों पर क्रान्ति करेंगे..दामिनी की याद में मोमबत्ती जलाएंगे..और अगले दिन ग्रैंड मस्ती को हीट कर देंगे….उसके अगले दिन किसी कालेज से घर आ रही लड़की के अन्तः वस्त्रों की साइज बताकर ताली बजायेंगे….

फेसबुक पर आप हर लड़की के इनबॉक्स में देख लें इनके  प्रणय और दैहिक प्रेम निवेदन से  भरे मैसेज पड़े हुए हैं.. सोशल साइट पर हर लड़की और महिला इनके आतंक से आतंकित है.

बस क्या कहें…क्योंकि हम भी उसी उमर हैं….कोई साधू सन्त नहीं.न ही स्त्री और काम का ख्याल मन नहीं आता..ये तो स्वभाविक सी चीज है…विवेक का अंकुश नहीं तो फिर आदमी कब जानवर हो जाय पता न चले…सो मुझे इन विवेक हीन लौंडो की परेशानी समझ में आती है की इनको टेस्टोस्ट्रान का कीड़ा परेशान कर रहा….और उसका क्या करें समझ नहीं पा रहे।

लेकिन.  सम्भ्रान्त से दिखने वाले कई अंकल जी और बुद्धिजीवी जैसे बोलने वाले  कई दादा जी लोग जिनके बीबी,बच्चे,बेटा,बेटी सब कुछ हैं.. वो इस तरह कि छेड़खानी करें..किसी लड़की को इनबॉक्स में परेशान करें…बस  ट्रेन आफिस में छेड़ दें तो कई बार सोचना  पड़ता है…..
ये जानते हुए कि यही बेचारे अपनी बेटी-पोती को ठीक से दुपट्टा न लगाने पर एक  घण्टा प्रवचन की घुट्टी पिलातें हैं.

यही स्त्री विमर्श  बलात्कार पर  लम्बे लेख और कविता लिखेंगे…लेकिन दूसरे के बेटी,बहन,पोती को देखकर उन पर कामदेव सवार हो जातें हैं….. सारा विमर्श और कविता तेल लेने चला जाता है.
इनकी  कथनी और करनी में घोर अंतर है.

बलात्कार रोकने का वो कानून तो पास हो गया जिसमे अब सोलह साल वाले भी सजा पा जायेंगे…
लेकिन ये सोलह नहीं लूकिंग सम्भ्रान्त वाले साठ साला अंकल और दादा जी लोग जो देश के हर कोने में,  सोशल मिडिया में हर घण्टे   बलात्कार कर रहे इनकी सजा कैसे होगी?

पता नहीं….
बस यूँ समझिये की केजरी सर की कसम  आज किसी ने कहा की उनके  आड-इवेन के चक्कर में ऑटो मेट्रो बस में लड़कियों को बहुत दिक्कत हो रहा.
प्रदूषण तो कम नहीं हुआ लेकिन कुछ लोगों में  मानसिक प्रदूषण  बहुत बढ़ गया है।
बस ये वाकया याद आ गया।
अल्लाह  लौंडों ,खूसट बुड्ढों को बुद्धि दे।

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संगीत का छात्र,कलाकार ! लेकिन साहित्य,दर्शन में गहरी रूचि और सोशल मीडिया के साथ ने कब लेखक बना दिया पता न चला। लिखना मेरे लिए खुद से मिलने की कोशिश भर है। पहला उपन्यास चाँदपुर की चंदा बेस्टसेलर रहा है, जिसे साहित्य अकादमी ने युवा पुरस्कार दिया है। उपन्यास Amazon और flipkart पर उपलब्ध है. फ़िलहाल मुम्बई में फ़िल्मों के लिए लेखन।