गर्मी की साँझ थी। बादल रह-रहकर उमड़ते थे लेकिन बरसते न थे। लड़के ने अपनी पतली कलाई में उलझी चालीस रुपये वाली घड़ी में देखा,चार बजने में चार मिनट कम हैं। चौक से चाल ऐसी बढ़ाई कि हाँफता हुआ सीधे जंगमबाड़ी आकर रुका ।
वो लड़की रोज़ यहीं रुकती थी। ग्यारह में पढ़ने वाला दुबला सा ये लड़का,रोज़ चार बजे यहीं आकर यहीं खड़ा होता था। लड़की रोज गोलगप्पे खाती,लड़का रोज उसे खाते हुए देखता। दोनों एक दूसरे को देखते,कभी-कभी नहीं भी देखते।
लड़की जिस दिन लड़के को देख लेती,लड़का उस दिन गाना गाता,कभी घाटों पर पतंग उड़ाता,तो कभी तैरकर गंगा पार चला जाता। जिस दिन न देखती,मुंह लटकाए, कभी मुंशी घाट,तो कभी चौसट्टी घाट पर देर तक बैठा रहता।
एक हफ्ते बाद की बात है। लड़की गोलगप्पे खा रही थी,लड़का दूर खड़ा होकर तिरछी नज़रों से लड़की को देखे जा रहा था। लड़की की सहेली ने धीरे से उसके कान में कहा, “वो लड़का तुमको इतना देखता क्यों है जी ! चक्कर चला रही हो क्या” ?
लड़की लज़ाकर बांस के कोइन की तरह झुक गई, मुँह से निकला, “बक्क ! पगला गई हो का ? हम का जानें”। फिर तो सहेली के चेहरे पर एक तीखी मुस्कान तैर गई,शरारत भरे स्वर से कह दिया,” पक्का भक्त हो गया है लड़का..रोज़ साँझ को अपनी शीतला मैया के दर्शन करने चला आता है।”
लड़की इस बात पर इतना हँसी कि बस हँसती ही रह गई.. लड़का उसे हँसते हुए देखा कि बस देखता ही रह गया !
और अगले ही पल मारे ख़ुशी के ऐसा दौड़ा,मानों आज पतंग के साथ खुद भी उड़ना हो। आज तैरना नहीं,गंगा जी के साथ रात भर बहना हो। बाँहों से ही नाप लेना हो,चौरासी घाटों की सारी चौहद्दी,..पैदल ही चल देना हो,अस्सी घाट से राजघाट।
कहते हैं एक साँझ लड़की अकेली थी। ठेले के आस-पास चाट और गोलगप्पे खानें वालों की भारी भीड़ जमा हो गई थी।
इधर रात भर ‘घातक” और “दिलवाले” देखकर पुश-अप करने वाले लड़के में न जाने कौन सी ऊर्जा का संचार हुआ था कि उसने चाट के ठेले के पास जाकर धीरे से लड़की से कहा, “सुनों न,होली से चार महीने हो गए आज। अब नाम बतावोगी अपना ? या कहो तो हम भी एक गोलगप्पे की दुकान खोल लें!
लड़की लज़ा गई.. मुँह से निकला,”धत्त”।
आधा गोलगप्पा मुँह में रहा,आधा बाहर..जल्दी-जल्दी ऐसे भगी कि मानों अब भगेगी नहीं तो बारिश में भीग जाएगी।
लड़का डर गया, मानों भारी गलती हो गई हो। वायरिंग चल रही हो और बिजली का तार गड़बड़ जुड़ गया हो। बीजगणित के लंबे सवाल हल करते-करते उत्तर के ठीक पहले प्लस का माइनस हो गया हो।
लड़का उदास हो गया।
अगले दिन लड़के ने फिर हिम्मत की।मिथुन चक्रवर्ती की तीन फिल्में देखीं,आशिक़ी के चार गाने सुनें,बाल कटवा लिया,कपड़े इश्तरी कर लिए,पिचके गालों में पॉउडर लगा लिया,बालों में तेरह बार कंघी करके लड़की के पास जाकर धीरे से कहा, “बता दो न जी,अरे! बस नाम ही तो पूछ रहे हैं.. ” ?
लड़की ने मुँह झुकाकर,बालों की चोटी पकड़कर धीरे से कहा, “स्वीटी”
लड़के के मुँह से निकला.. “उफ्फ!
“क्या हुआ” ? लड़की ने भौंहें खींचकर पूछा।
“अब तो पक्का सुगर हो जाएगा मुझे” लड़के ने मुँह घुमाकर कहा।
लड़की ठठाकर हँसने लगी..लड़का भी खिलखिला उठा..
गोलगप्पे वाले ने कहा, “और खट्टा करें ? लड़की ने सर हिलाकर कहा, “उहुँ,थोड़ा सा तीखा”
इस संवाद के बाद कुछ देर तक शांति रही। न लड़के की हिम्मत होती कि और कुछ बोले, न लड़की को समझ में आता की घर जाए कि रुकी रहे।
लड़के ने एक बार फिर हिम्मत बांधकर कहा, “एक बात बोलें”
“बोलो क्या कहते हो ?…” लड़की ने पूछा
खिसिया जावोगी तब ?
“नहीं खिसियाएँगे,जल्दी बोलो, वरना बाऊ देख लिए तो न तुम देखने लायक रह जावोगे,न हम खिसियाने लायक”
लड़का हँसा… मुँह से निकला, “अच्छा”
बोलो
“ए स्वीटी”
क्या बोलो..
“एक बार और हँसो न,पहले जैसा”?
ये सुनते ही लड़की की बड़ी-बड़ी आँखे मारे शर्म के सिकुड़ गईं गईं..सुर्ख लाल होठ सील से गए। मुँह से निकला, “धत्त बेवकूफ हो क्या,ऐसा होता है क्या कहीं? हम उसमें के नहीं हैं..जैसा तुम समझ रहे हो,समझे “?
लड़के ने कॉलर सीधा करके कहा, “हम कहाँ उसमें के हैं ? की हम तुमसे बियाह करने की जिद्द कर रहे ?तुमको देखे थे हम भरत मिलाप के समय.. बुआ के साथ आई थी न?
लड़की ने सर झुकाकर कहा, “हूँ”
“तो तभी से तुमको देखना अच्छा लगता है। हम चार महीने से रोज चार बजे तुम्हारा चार चक्कर लगाते हैं समझी ? गोलगप्पे ही खावो,भाव फिर कभी खा लेना “. लड़के नें आंखें चमकाकर कहा।
लड़की कुछ न बोली..दुपट्टे से जल्दी-जल्दी मुँह बाँधा। गोलगप्पे वाले को पैसे भी न दिए,सीधे साइकिल उठाया,पैडल दबाया औऱ हँसते हुए,शरमाते हुए चलती बनीं।
फ़िर तो अगले दिन से एक हफ़्ते फिर यही प्रक्रिया चली। कभी लड़की लजाकर भाग जाती,कभी लड़का। दोनों की बात कभी पूरी न हो पाती…
लड़का वही सवाल रोज़ पूछता, ” ए स्वीटी आज गोलगप्पे ही खाना है कि भाव भी खाना है ?
लड़की खिसियानी बिल्ली जैसी आंखें चमकाकर चल देती.. लड़का देर तक हँसता रह जाता..दूर जाकर लड़की भी खूब हँसती।
एक दिन फिर लड़के ने कहा, “ए स्वीटी…एक बात बोलें..
लड़की ने कहा, “बोलो”
आज लौंगलता खा लो न ?
” क्यों खा लें लौंगलता?”
“उल्लू हो क्या ? हमको मीठा एकदम पसंद नहीं,हमको बस तीखा और खट्टा अच्छा लगता है”
लड़के ने कहा, “ए स्वीटी नाम तो तुम्हारा इतना मीठा है,जैसे खोवा गली में पेड़ा बन रहा हो..बात करती हो तो लगता है कचौड़ी गली में जलेबी छन रही हो। मुस्कराती हो तो लगता है केशव पान का आखिरी बीड़ा लगा रहें हों,ख़ामोश होती हो तो लगता है विश्वनाथ गली में मखनिया उत्तपम बन रहा हो। चलती हो तो लगता है भांग वाली ठंडई छन रही हो।
और ये तुम्हारी आँखें…ये आंखे तुम्हारी लौंगलता में धँसे लौंग जैसी ही तो हैं..खा लो न ? बस एक लौंगलता खाने से क्या बिगड़ जाएगा ?
लड़की इतना सुनकर शरमाई…आँखे तरेरकर कहा,”बहुत बेशर्म हो तुम,शर्म नहीं आती.. इतने सुंदर नहीं हैं हम।
लड़के ने फिर कहा, “अच्छा ठीक है लेकिन खा तो लो “
“क्यों खा लें बोलो..कह तो दिया मीठा पसन्द नहीं है।” लड़की ने मुँह बनाकर पूछा।
लड़के ने धीमी आवाज़ में कहा,”क्या कहूँ,मुझे तुमको खाते हुए देखना अच्छा लगता है,और क्या ? मैं चाहता हूँ कभी तुमको अपने हाथ से खिलाऊं.. तुम खाते हुए कितनी अच्छी लगती हो पता है ?
लड़की हँसने लगी, “बड़े वाले बेवकूफ हो तुम.. फ़िल्म कम देखा करो समझे,ये सब फिल्मों में होता है।”
इस जवाब के बाद फिर कुछ देर खामोशी रही..दोनों देर तक इधर-उधर झांकते रहे.. गाड़ियां आ रहीं थीं,जा रहीं थीं। दोनों देर तक गुम रहे। तन्द्रा टूटी तो लड़की ने कहा,”वैसे मुझे मीठा एकदम पसंद नहीं,वरना हिम्मत जरूर करती”
लड़के ने फिर कहा,”अच्छा तब टमाटर चाट खावोगी ? वो तो खा सकती हो”!
लड़की की आँखें चमक गईं, कौतुक वश पूछा, “कहाँ” ?
“काशी चाट भण्डार पर” लड़का उत्साह से बोला।
“बक्क वहाँ बहुत महंगा है…इतनी भीड़ होती है। कोई देख ले तो बड़का आफ़त। घर से पाँच रुपये ही मिलते हैं। एक प्लेट का हम जितना ऊहाँ देंगे,उतने में हम इहाँ पाँच दिन गोलगप्पे खाएंगे..
लड़के ने कहा, “चलो न हम हैं न,हम पैसा देंगे..”
“अच्छा जी,शक्ल देखे हो अपनी,विश्वनाथ गली में खड़े होकर भीख मांगों तो एक रुपये न मिलें..” लड़की ने दुपट्टा ठीक करते हुए कहा।
लड़का ताली बजाकर हँसा, “ए स्वीटी भिखारी तो हम हो ही गए हैं,एक हफ़्ते से पैदल चलकर रोज पाँच रुपया बचा रहे कि एक दिन तुमको अपने हाथ से खिलाएंगे..और तुम हो कि समझती नहीं।
लड़की ने मुँह बनाकर कहा,”हमें नहीं खाना,तुम समझो और जावो यहाँ से,देर हो रही।”
फिर तो लड़का उस दिन उदास हो गया..मानों उसकी मासूम भावनाओं की हत्या हो गई हो.. शीशे के सामने देर तक खुद को देखता रहा.. सारे ग़म के गाने सुन डाले.. सरस सलिल और मनोहर कहानियां पढ़-पढ़कर खत्म कर दिया…खुद से पूछा, “क्या भिखारी लगता हूँ मैं”? नहीं न.
लड़के ने सोच लिया कि अब न जाऊँगा कभी, पापा की दुकान पर काम करूंगा तो चार पैसे मांगने लायक तो रहूँगा।चार महीने में तो पत्थर पिघल जाते और इन महारानी के नखड़े हैं कि कम होने का नाम नहीं लेते।
कहते हैं लड़के ने चार बजे जाना बंद कर दिया..अब वो दिन भर काम करता,रात भर पढ़ाई..बाप से लेकर चाचा तक सब हैरान की इसे हुआ क्या है।
दस दिन बाद की बात है..छुट्टी का दिन था। दिन के तीन बज रहे थे…लड़का मुँह बनाए साइकिल पर अपनी दुकान का सामान लिए चौक से गोदौलिया आ रहा था कि तभी किसी ने पीछे से आवाज़ दी..
“सुनों..”
वही जानी-पहचानी सी आवाज़,लड़के के कान में मिसरी सी घुल गई..मन की कड़वाहट मिट गई,
पीछे देखा तो कोई सर झुकाए आवाज़ आ रही है।
“ठीक है खा लेंगे लौंगलता.. चलो..”पर तुमने आना क्यों छोड़ दिया..इतना भाव खाना जरूरी था ? लड़की हूँ मैं समझ नहीं आता कुछ ? मेरी भी मजबूरियाँ हैं।
लड़के ने अनमने मन से कहा, “ठीक है जावो हम कहाँ जबरदस्ती कर रहे।”
लड़की मुस्कराई..शरारती स्वर में कहा, “अब मुझे भाव ख़िलावोगे या टमाटर चाट..?”
लड़का हंसा
कुछ देर में दोनों गोदौलिया चौराहे और गिरजाघर के बीच बनी एक पचास साल पुरानी चाट की दुकान पर बने ऊपरी कमरे में आमने सामने डरते-सकुचाते बैठ गए।
सामने तवे पर टमाटर चाट की सोंधी खुश्बू तैरने लगी धनिया,जीरा,मसाला,अदरक,देशी,घी,चाशनी,नींबू,धनिया पत्ता,नमकीन,टमाटर का रस,पोस्ता दाना और काजू की महक से समूचा गोदौलिया महक उठा।
लड़के ने गिलास में पानी भरा..और लड़की ने मुँह में।
तभी चाट का कुल्हड़ हाज़िर..
लड़की ने कहा, “तुम खावो पहले..”
लड़के ने कहा, “नहीं तुम”
पाँच मिनट तक,”पहले तुम,तो पहले तुम” होता रहा।
तंग आकर लड़के ने चम्मच उठाई और धीरे से उठाकर लड़की के मुँह से सटा दिया।
लड़की शरम के मारे झुक गई।
लड़के ने पूछा, “ये तीखा और खट्टा लग रहा न” ?
लड़की ने कहा नहीं,…”बहुत मीठा”
लड़का हँसा.. “सही में मीठा ? झूठ न बोलो..ये तो तीखा और बहुत खट्टा है।
लड़की ने नज़रे नीची करके कहा,”नहीं आज बहुत मीठा है कसम से।”
लड़का हँसा.. और टोपी सीधी करके लड़की के हाथ पर हाथ रखकर बोला..
” पगली, एक बात जानती हो..
लड़की ने पूछा, “क्या” “
“अरे! कुछ भी खट्टा और तीखा क्यों न हो,प्यार में सब कुछ मीठा हो जाता है।”
लड़की हँसी कि हँसती रह गई..लेकिन सहसा उसकी आंखें भीग उठीं..प्रेम के अतिरेक का सावन उमड़ आया। लड़के ने घड़ी देखी.. तब ठीक चार बज रहे थे।
कहते है सीजन की पहली बारिश उसी दिन चार बजे हुई। प्रेम में भीगे दो मन ऐसे सकुचाए कि आज भी चार बजे टमाटर चाट का स्वाद खट्टा और मीठा दोनों लगता है।