बचपन का पन्द्रह अगस्त ( अहा ! ज़िन्दगी के अगस्त अंक में प्रकाशित )

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ग्राम रघुनाथपुर का उत्तरी बाजार। इस जगह को बाज़ार होने की योग्यता बस इसलिए मिल गई क्योंकि पिछले साल बाढ़ के समय सरकार ने एक अस्पताल बनवा दिया था। और एक महीने के भीतर ही इसी अस्पताल की बिल्डिंग की छत्रछाया में कई छोटी-छोटी दुकानें खुल गईं थीं।

आजकल हर शुक्रवार को यहाँ बाज़ार लगता है,बाजार में साग-सब्जी के साथ रोजमर्रा के वो सभी छोटे-मोटे साधन मौजूद होते हैं जिन्हें बाकी दिनों में खरीदने के लिए दूर जाना पड़ता है।

इसी बीच मौके का फायदा देखकर गांव के सबसे पढ़े-लिखे बेरोजगार सज्जन श्री लल्लन शर्मा जी ने एक मांटेसरी स्कूल खोलने का फैसला किया। फैसले का चारो ओर स्वागत किया गया। गाँव के प्राइमरी स्कूल में पढ़कर और पढ़ाकर उकता चूके कुछ गार्जियन और कुछ छात्रों में आशा की एक नई ज्योति जगमगाई। और स्कूल का नामकरण हुआ “आशा मांटेसरी स्कूल रघुनाथपुर”

अगले दिन स्कूल के प्रचार में गांव-गांव बैनर लगे,साथ ही अंग्रेजी को आज की सबसे बड़ी जरूरत बताकर लाउडस्पीकर से “टिंकल-टिंकल लिटील स्टार” गाया गया। और बताया गया कि इंग्लिश मीडियम में पढ़ने से बहुत फायदे हैं..सरकारी स्कूल के बच्चे आगे चलकर गधे ही रह जाएंगे।

इस उद्घोषणा के बाद तो आस-पास के गाँवों में शोर मच गया..रमेश,मोहन,लल्लन,विमला और कुसुम ने गधे से घोड़े बनाने वाले इस मांटेसरी स्कूल के बारे में तहकीकात करना शूरु कर दिया।

और देखते ही देखते धकाधक एडमिशन होंने लगे। लोग सरकारी स्कूलों से अपने बच्चों का नाम कटवाकर इस मांटेसरी स्कूल में पढ़ाने लगे।

जादोपुर के गुल्लू,लुट्टन,बबलू जो प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे वो भी मांटेसरी स्कूल में आ गए। ये अलग बात है कि कक्षा दो में पढ़ने वाले गुल्लू को मतेश्री से मांटेसरी कहने में बीस दिन लग गए।

लुट्टन और बबलू को टाई बाँधने और जूते का फीता बांधने के लिए अथक सँघर्ष करना पड़ा। इधर लुट्टन और बबलू में पेंसिल को लेकर झगड़ा हो गया..लुट्टन ने बबलू के ग़ले कि टाई पकड़कर उसे जमीन पर गिरा दिया..

मचा हड़कंप..प्रिंसिपल आए.क्लास टीचर भी.जैसे-तैसे बबलू की गर्दन कि टाई को चाकू से काटकर टाई को आजाद किया गया।।

लुट्टन को चार छड़ी खाने को मुफ्त में मिली..

मोहल्ले के गार्जियन परेशान..ये भी क्या नई बला है है टाई और बेल्ट.. ?

किसी ने बताया कि ये सब की इंग्लिश मीडियम स्कूलों के चोंचले हैं। इसके अपने नियम कायदे और कानून होते हैं.. घबराओ नहीं डीह बाबा काली माईं की किरपा रही तो कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा।

इसी आशा और विश्वास के साथ आशा मांटेसरी स्कूल का एक महीना बीत गया। तब तक अगस्त का महीना दस्तक दे चुका था। बादल उमड़-घुमड़ रहे थे। धान की रोपाई हो चूकि थी.. बारिश जा-जा के आ रही थी और आ-आ के जा रही थी।

वो बारह अगस्त का दिन था.. क्लास थ्री.. सातवीं घँटी लगने वाली थी। पता चला बगल वाली क्लास में मोनू मुर्गा बन गया है। बबलू का माथा ठनका। लगता है मरखहवा मास्टर आज फिर छड़ी भूल गए हैं।

कहतें हैं मरखहवा मास्टर इस स्कूल के गणित अध्यापक श्यामसुंदर पांड़े जी की मानद उपाधि है। स्कूल में मान्यता है कि बड़े-बड़े बदमाश लड़के माटसाहब की एक छड़ी से सुधरकर साधु हो गए।

कारण की मास्टर साहब जब गुस्से में होते हैं तो उनकी जीभ बाहर जाती है और फिर जब उनकी छड़ी दनादन पीठ पर चलती है तो अंतिम तक पता नहीं चलता कि स्कूल के किसी स्टूडेंट को पीट रहें हैं या जानवर को।

इन्हीं कुछ प्रमुख विशेषताओं के कारण श्याम सुन्दर पांडे जी को स्कूल के बच्चों ने बिना किसी दीक्षांत समारोह के उन्हें मरखहवा मास्टर की उपाधि से नवाज दिया है।

आज इन्हीं मरखहवा मास्टर साहब की छड़ी मोनू के पीठ के नन्हीं पीठ का हाल-चाल ले रही है…सभी बच्चों की आंखें भय से चौड़ी हो गई हैं।

यहाँ तक कि सामने वाली कक्षा दो के बच्चे जो   पहाड़ याद कर रहे थे हैरत में पड़ गए हैं कि आखिर बात क्या है..मोनू तो इस क्लास का सबसे शरीफ लड़का था। ये कबसे पीटने लगा ?

लीजिये इस पिटाई के कारणों की छान-बिन करने के लिए इसी स्कूल की अपनी रॉ,सीबीआई की जांच बिठाई गई तो पांच मिनट बाद पता चला कि मोनू को सत्तरह का पहाड़ा हिंदी में याद है अंग्रेजी में नहीं ।

और स्कूल के गणित टीचर श्याम सुंदर पांडे उर्फ मरखहवा मास्टर साहब ने उसके सामने दो ही विकल्प रखा है। या तो वो एक बार में सत्रह का पहाड़ा अंग्रेजी में सुनाए या फिर चार छड़ी खाकर सत्तरह मिनट मुर्गा बने।

मोनू ने दूसरे विकल्प का चयन किया है।

लेकिन सबका का दिल बैठ गया..क्या आफत है भगवान ये..कितना अत्याचार है हम बच्चों पर….पहले मर-मर के सत्तरह का पहाड़ा हिंदी में याद करो फिर स्कूल बदल जाए तो फिर से अंग्रेजी में याद करो..। हे पिपरा पर के बरम बाबा इस पांडे जी को उठा क्यों नहीं लेते। कमबख्त कभी बीमार भी तो नहीं पड़ता है…मन ही मन गुल्लु ने कहा था।

तब तक चपरासी क्लास में रजिस्टर लेकर आ गया..शायद सूचना है कोई..गुल्लू सोचता है काश कोई छुट्टी हो जाए तो मजा आ जाए। “कमबख्त इधर कोई नेता भी नहीं मरा क्यों रे पिंकू” ?

पिंकू ने सहमति में सर हिलाया..तब तक क्लास टीचर मोहन प्रसाद जी अपना टूटा चश्मा ठीक करके इस हिदायत के साथ सूचना पढ़ने लगे कि सभी बच्चे शांत रहेंगे। अगर कोई हल्ला किया तो उसे भी मोनू की तरह मुर्गा बनना पड़ेगा।

मुर्गा जी का नाम लेते ही क्लास में सभी बच्चे कबूतर की भाँति शांति दूत हो गए।

मास्टर जी ने अपनी भौहों को सिकोड़ा रजिस्टर में नज़र गड़ाई.. सूचना थी कि पन्द्रह अगस्त की तैयारी के लिए मात्र तीन दिन बचे हैं,वक्त एकदम नहीं है।स्कूल का पहला स्वतंत्रता दिवस है इसलिए झाँकी निकलेगी,और झाँकी के लिए पात्रों का कल चुनाव किया जाएगा। हां जिसे-जिसे गीत गाना हो,भाषण देना हो अपना नाम क्लास टिचर के यहाँ लिखवा सकता है।

और गीत के नाम पर “दीदी तेरा देवर दीवाना” किसी को नहीं गाना है। गीत देशभक्ति का होना चाहिए।

लड्डू का नाम लेते ही गुल्लू का का मुंह पेड़ा जैसा होने लगा..बगल में बैठे बबलू ने कहा..

भगत सिंह बनेगा..?

इतना सुनने की देर थी की छुट्टन के हंसने की आवाजें आने लगी..” ई और भगत सिंह..” ? इससे पूछो तो जो दीपावली में प्लास्टिक की बंदूक से डरता है वो भगत सिंह बनेगा ?

गुल्लू ने अपनी बेइज्जती का रत्ती भर न परवाह किया… उसे क्या पता भगत सिंह कौन है…? उसने बड़ी मासूमियत से पूछा..”इससे क्या फायदा होगा” ?

बबलू ने कहा “धुत्त.. फायदा क्या होगा पागल. बस दो की जगह तुमको चार लड्डू मिलेंगे और उसके साथ एक पेन और कॉपी भी मिलेगा।

गुल्लू ने बड़ी मासूमियत से पूछा “लेकिन मैं तो गुल्लू हूँ भगत सिंह कैसे बनूंगा”  ?

बबलू ने क्लास में लगी एक तस्वीर की तरफ इशारा किया..वो सामने देख रहे हो..बस वैसे ही सज-धजकर बन जाना है।

गुल्लू की नज़र तस्वीर की तरफ गई और हाथ दाढ़ी की तरफ..मन निराश हो गया।

तीन दिन में इतनी घनी दाढ़ी और मूंछ कैसे आएगी यार ?

हाय! गुल्लू के सपने माटी में मिल गए। चार-चार लड्डू आंखों से जाते हुए दिखने लगे। सारी खुशी पल भर में दुःख में बदल गई।

तब तक वो अंतिम घँटी लग गई जिसकी आवाज कान में जाते ही सभी बच्चे रोज स्वतंत्रता दिवस को महसूस करने लगतें हैं।

सांझ हो रही थी,स्कूल के खाली मैदान मैदान में सारे विद्यार्थी और सारे अध्यापक एक साथ इकट्ठा हो चूके थे,प्रिंसिपल साहब सभी विद्यार्थियों के साथ कुछ जरूरी बात करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने बिना देर किए भाषण जैसा कुछ कहना चाहा.

“प्रिय छात्रों जैसा कि आप सब जानतें हैं कि हमारा देश पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस को आज़ाद हुआ था। जिसकी याद में हम हर साल स्वतंत्रता दिवस मनातें हैं।

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी हम स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे.. अतः आप स्टूडेंट्स को सूचित किया जाता है कि सुबह सात बजे स्कूल ड्रेस में उपस्थित रहें। सभी स्टूडेंट स्कूल ड्रेस में ही रहेंगे। किसी का बाल,नाखून बढ़ा हुआ दिख गया तो उसे असेम्बली के समय पनिशमेंट दिया जाएगा। और जो अच्छा स्टूडेंट होगा उसे प्राइज भी मिलेगा।

इतना सुनते ही गुल्लू का दिल बल्लियों उछलने लगा…गाँव के जिस स्कुल में उसने ukg से लेकर दूसरे तक की पढाई की थी वहां तो पन्द्रह अगस्त के नाम पर सिवाय बिस्कुट के कुछ नहीं मिलता था।लेकिन यहाँ तो चार-चार लड्डू और लड्डू के साथ कॉपी और पेन भी।

गुल्लू जैसे-तैसे घर आया..बस्ता पटका और मां के पास गया..मां छत से कपड़े उतार रही थी। गुल्लू ने आते ही सारी बातें बता दी।

“ममी सब काम छोड़ो और मुझे भगत सिंह बनाओ..मुझे भगत सिंह बनना है और अभी बनना है”।

ममी को आश्चर्य..अरे! नालायक तुझको हुआ क्या..गुल्लू ने कहा हम कुछ नहीं जानते..हमको भगत सिंह बनना है तो बनना है।

ममी का माथा ठनका..ये क्या नई आफत आ गई भगवान..। खिड़की खोला तो देखा कि बगल वाले घर में बबलू भी रो रहा है की उसे पुलिस की वर्दी चाहिए…और अभी चाइये.. सारे घर के लोग परेशान हैं।

उसके चाचा बड़े प्यार से समझा रहे हैं..

अरे! पगला गए हो का बबुआ.. तीन दिन में भला कौन दर्जी वर्दी सीकर तैयार कर देगा की तुम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस बन जावोगे..?

ऐसा करो तुम महात्मा गांधी बन जावो…सिंपल है। एक धोती एक लाठी और एक चश्मा..

चाचा की इस बात का सबने समर्थन किया…बबलू ने आँशु पोछकर अपनी माँ से पूछा…

तो महात्मा गाँधी बनने पर भी चार लड्डू मिलेंगे न ?

इस सवाल पर सब खूब हँसे।

इधर मोहल्ले के सभी घरों का हाल बुरा था,सब अपने-अपने बेटे-बेटीयों से त्रस्त आ गए मानों स्वतंत्रता दिवस न हुआ कुम्भ का मेला हो गया और भाषण नहीं देना सबको कल्पवास करना है।

लीजिये अगले दिन स्कूल में तैयारी शुरू हो गई…सारे क्लास में होड़ लग गई..एक से बढ़कर एक गायक,वादक और नर्तक अपनी-अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए तैयार हो गए।

कहीं भाषण दिए जा रहे..कहीं फ़िल्मी तर्ज पर गीत गाया जा रहा है। कहीं नाटक हो रहा है तो कहीं झाँकी के लिए ड्रेस डिजायन तैयार किया जा रहा..

पता चला आज भारत माता तो बीमार पड़ गई है। और स्वामी विवेकानंद अमरूद तोड़ते हुए पेड़ से गिर गए वो नहीं आएंगे। जवाहर लाल नेहरू की गाय ने बछिया दिया है इसलिए वो भी आने में समर्थ नहीं हैं।।.कल आएंगे।

प्रिंसिपल साहब का पारा गर्म हो गया..लापरवाही की हद हो गई जी ये तो एकदम हद हो गई…कार्यक्रम में मात्र तीन दिन बचे हैं और हमारे स्कूल का हाल देखिये…अरे शर्म करिये आप लोग शर्म…मंत्री जी चीफ गेस्ट बनकर आ रहें हैं.और हमारे स्टूडेंट ही गायब है..बताइये कैसे होगा कैसे होगा ये सब…” ?

इतना सुनने की देर थी कि सभी टीचर्स और स्टूडेंट की सिट्टी-पिट्टी गुम..वातावरण में शांति छा गई।

धीरे से गुल्लू ने बबलू के कान में कहा..”लड्डू कहाँ बन रहा है जी झूठे..तुम तो कह रहे थे कि स्कूल में ही बनेगा। ?

बबलू ने होठों पर उंगली रखकर धीरे से कहा.. “चुप  बे पेटू…यहां प्रिंसिपल साहब खड़े हैं और तुमको लड्डु की पड़ी है।”

तब तक कहीं से ढोलक और हारमोनियम की  आवाज आने लगी..हरमुनिया मास्टर ने धुन छेड़ दिया है..दिल दिया है जान भी देंगे ए वतन तेरे लिए..

बीच-बीच में राजा-राजा करेजा में समाजा वाली धुन भी बज जाती है। क्योंकि मैथ वाले सर आज म्यूजिक और डांस डिपार्टमेंट दोनों को सम्भाल रहें हैं।

जो चन्दा मैम क्लास में आकर सोने लगती हैं वो खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी का काव्य पाठ सीखा रहीं हैं। चपरासियों का दौड़-दौड़कर बुरा हाल है।

इस तरह पन्द्रह अगस्त के तैयारी की विधिवत शुरुवात हो गई। और जिसका इंतजार था वो दिन आ गया है।

पन्द्रह अगस्त के दिन सभी लोग सुबह जल्दी उठ गए..गुल्लू आज स्वामी विवेकानंद बना है…क्योंकी भगत सिंह बनने के लिए दाढी और पगड़ी का जुगाड़ न हो सका। बबलू भी महात्मा गाँधी बनकर खुश है।

इधर घर-घर से बच्चे तिरंगा झंडा लेकर स्कूल जा रहे हैं। हर सड़क हर दुकान पर देशभक्ति के गीत बज रहे हैं। प्रधानमंत्री जी लाल किले से देश को सम्बोधित कर रहें हैं। जैसे ही जन-गण मन बजता है सभी लोग जहां हैं वहीं खड़े हो जातें हैं।

इधर स्कूल का माहौल देशभक्ति के रंग से रंगा चुका है..सभी टीचर आज खूब अच्छे लग रहे हैं।और स्टूडेंट्स का तो कहना ही क्या..उनकी खुशी का ठिकाना नहीं है। आधे लोग तो बस इसलिए खुश हैं कि बस्ता लेकर आज कोई स्कूल नहीं आया है..न ही आज पहाड़ा सुनाना है और न ही मरखहवा मास्टर की छड़ी से कांपते हुए छुट्टी वाली घँटी का टकटकी लगाए इंतजार करना है।

आज तो मौज है जी मौज।

इधर छुट्टन और गुल्लू तो इसी उधेड़बुन में हैं कि अरे! कल जो लड़का क्लास में मुर्गा बना था वो आज भगत सिंह कैसे बन गया है रे ?

जिस सिंटूआ को आचार्य जी सुपर्णखा के सगे मौसा की तरह नाखून बढाने के लिए कल दस सोंटा लगाए थे..वो आज सुखदेव बनकर कैसे सर हिला रहा है..?……

अउर उसको देखो जरा तो कैलाश यादो का मझला लड़का रिंटूआ को, ये  रोज बाबूजी के पैकेट से दो रुपया चुराकर लंच की छुट्टी में चना जोर गरम खाता है,और गणित की क्लास में दीर्घशँकालय जाकर सतरह का पहाड़ा याद करता है.वो सूट-बूट में आज जवाहर लाल नेहरु बना है।

तभी प्रभात फेरी की घोषणा हो गई.सारे बच्चे एक साथ,एक वेश,एक गीत,सबके हाथ में तिरंगा,बीच-बीच में झाँकी..अहा! क्या मनोरम दृश्य है।

गाँव के लोग देखते रह गए..वाह इतने छोटे भगत सिंह.जरा इनकी दाढ़ी तो देखो.कितने प्यारे लग रहें हैं।

और इनको देखो तो जरा..ई हैं स्वामी विवेकानंद..गुल्लू बाबू.. भगवा ड्रेस में कितने दिव्य लग रहे हैं।

और ये हैं झांसी की रानी कुमारी प्रियंका इनको देखकर आज कोई कह सकता है की ये छिपकली को देखकर डर जाती हैं।

इस तरह झाँकी और प्रभात फेरी का सब जगह स्वागत हुआ।

स्कूल लौटने के झंडा फहराया गया। मुख्य अतिथि जी ने भाषण दिया..और देश के सभी क्रांतिकारीयों के पदचिन्हों पर चलने की सलाह देकर अपनी मोटर गाड़ी पर सवार होकर चले गए। फिर सबने गीत गाया,नाटक  और डान्स हुए..आखिर वो घड़ी आ गई.जिसका इंतजार सबको था..यानी लड्डू बांटने का वक्त आ गया..

गुल्लू के मुंह मे पानी..अहा! कितने प्यारे और गोल-गोल..बेसन के हैं बेसन के.जिससे पकौड़ी बनती है न..वही बेसन..

सबको लड्डू मिले. सब खाने लगे.लेकिन गुल्लू को अचानक एक हॄदय विदारक चिंता ने घेर लिया उसने देखा कि क्लास के सबसे ईमानदार नेक और सज्जन लड़के सत्यप्रकाश और परमात्मा जो आज तक किसी का रबर और पेंसिल तक नहीं चुराए,उनके हाथ मे आज दो की जगह तीन लड्डू कैसे है..अरे बबलू- तनिक पता लगाओ तो ?

बबलू को क्या पड़ी है..वो मजे से लड्डू खा रहा था।उसे तो चार मिले थे।

इसी में गुल्लू की एक मासूम सी तमन्ना ये भी थी कि कि जल्दी से जाकर बहन को बोल दिया जाए कि तुम अपना लड्डू मत खाना..मेरा वाला आधा ले लो और तुम्हारा वाला मम्मी को दे दिया जाएगा..इस नेक नियत के बाद जब दौड़ते हुए गुल्लू अपनी बहन को खोज ही रहा था तब तक पता चला कि वो अपना लड्डू खाकर पानी पी रही है.

हाय! एक मिनट में वही स्वतंत्रता दिवस,असहयोग आंदोलन में बदल गया।

स्वतंत्रता दिवस बन जाने के बाद सांझ तक अगस्त क्रांति का आगाज हो गया..लड्डू के लिए कहा सुनी और हाथापाई की छिटपुट घटनाएँ भी दर्ज की गईं।

गुल्लु और बबलू के हाथों में चार-चार लड्डू और पेन कापी देखकर बाकी बच्चे भी कसम खा लिए की कुछ भी हो जाए वो अगले साल कुछ न कुछ जरूर बनेंगे।

आज वर्षों बीत गए.वो आशा मान्टेसरी स्कूल न जाने कब का  टूट गया…मरखहवा मास्टर अब बूढ़े हो चुके।

गुल्लु बीटेक करके गुड़गांव में नौकरी कर रहा है.उसे सांस लेने की भी फुर्सत नहीं है। बबलू जो कि एक मंटीनेशनल कम्पनी में मैनेजर है उसके लिए आज आजादी का मतलब एक दिन की छुट्टी है। जिसमें सांझ को फिल्म और एक बढ़िया डिनर भी शामिल है।

लेकिन जीवन की इन तमाम आपाधापी के बीच आज भी हम जब बचपन याद करतें हैं तो आस-पास के दिख रहे बच्चों पर सहसा प्यार आने लगता है..और फिर वो बशीर बद्र का शेर याद आता है।

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते

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