आज आरा जिला का गुड्डूआ खूब खुश है. सांवला सा दुबला चेहरा..धसे हुए गाल..एक अर्धविक्षिप्त बैग में बेतरतीब ठूसे कपड़े..पढ़ाई लिखाई की बात करेंगे तो गुड्डआ बिहार के दर्जनों मंत्री जी लोगों से ज्यादा पढ़ने के बाबजूद जोधपुर में लेबर है..क्योंकि उसके बाबूजी का नाम लालू तुरहा है..लालू यादव नहीं..वो खेती करतें हैं राजनीति नहीं…दीवाली आ छठ में गुडुआ को छुट्टी नहीं मिला तो आज गाँव जा रहा है.काहें कि उसके चाचा के बेटे बबलुआ का बियाह है.
गुडुआ बाल सरुख खनवा इस्टाइल में कटवा कर मिथुना स्टाइल में रंगवा लिया है..मुंह में पान बहार और हाथ में एक हजार वाला चाइना का मोबाइल…..मोबाइल में सीरी खेसारी लाल जादब जी विरह भाव में अश्लील भाव को मिलाकर रस सिद्धान्त के सूत्रों से सार्वजनिक मजाक कर रहें हैं.. … “ए रजउ घरे आइबा की ना आइबा…ए रजउ बाजा बाजी की ना बाजी’.
गुडुआ गाना सुनने में मगन है…आस पास दो-चार स्थानीय राजस्थानी बन्धु भी उस गाने का मजा ले रहे हैं….मैं सोचता हूँ “चलो अच्छा है। शुक्र है इसका मतलब नहीं समझते वरना गुड्डआ अबे खेसारी लाल को छोड़कर मदन राय का निरगुन सुनने लगता”.
तब तक पता न क्या होता है…खेसारी लाल का फटा मुंह बंदकर गुड्डआ हमसे मुखातिब होता है…हाथ में खैनी मलना छोड़ पर्स से एक फ़ोटो निकालकर हमसे धीरे से कहता है…”जानते हैं भइया..सरवा हई गनवा सुनते है न तो रोवाँ-रोवाँ मेरा हरियर होने लगता है….एतना मेहरारु का इयाद आता है न कि का आपसे कहें…केवनो काम में मनवे नहीं लगता है.
ए भइया..हमार मेहरारु को देखेंगे न तो देखते रह जाएंगे…एकदम सीरीदेबिया जैसी है….आ स्वभाव से एकदम रधिका जी..आज तक कुछु नहीं मांगी हमसे…बाकी ए भइया एह बेरी के कम्पनी में ओभर टाइम करके मेहरारू के लिए कान में के बाली बनवाएं हैं…..”गुड्डआ के प्रेम और पत्नी के लिए सम्मान का भाव देखकर मन प्रसन्न हो जाता है मेरा.
सोचता हूँ क्या ट्रेजडी है अभी भी इस 4G के जमाने में भी किसी गुड्डआ को अपनी मेहरारू का फ़ोटो पर्स में रखना पड़ता है.
खैर सामने वाली सीट पर दो चार चालीस पचास के अंकल जी…एक दो आंटी जी लोग घर परिवार की समस्यायों को ट्रेन में सुलझाने का काम कर रहें हैं.इनकी बातों को सुनने के बाद यकीन हो जाता है कि देश में कोई समस्या नही है..सारी समस्या इनके परिवार में है।.
मेरे ठीक ऊपर वाली बर्थ पर विवाहित सुंदर युगल विराजमान है.हैसबेंड जी बेचारे इसी में परसान हैं कि उनकी छूई मुई सी वाइफ जी को कोई कष्ट न हो.कभी हाथ से बिस्कुट खिलाते हैं.कभी एक घूंट चाय पिलाकर दूसरी घूंट के लिए चाय के गिलास के रुख में मुख परिवर्तन करतें है.तेरह बार पूछते है…”बाबू और खाएंगे.बाबू थोड़ा सा.बाबू प्लीज मेरे लिए.उनकी बाबू मूड़ी हिलाकर खाने से इनकार कर देती हैं।ओह.इस दिव्य प्रेमालाप को देखकर मुझे इस दुर्लभ पति को राष्ट्रीय दुर्लभ पति सम्मान से नवाजने का मन करता है.
तब तक हमारे बगल में बैठी आगरा जा रही दादी ये
बताकर मेरे सम्मान समारोह पर पानी फेर देतीं हैं कि.”अभी नई नई शादी है”।दादी द्वारा इस दिव्य रहस्य को उद्घाटित करने पर मुझे उनके चरण स्पर्श करने का मन करता है।
चाय पानी भूजा बिस्कुट नमकीन कोल्ड्रिंक वाले आ जा रहें हैं.लेकिन घर में बने चार पूड़ी और एक आलू की भूजिया आम के अँचार के आगे आईआरसीटीसी के पैक्ड ब्रांडेड खाने को न्यौछावर कर देने का मन करता है.
आज फिर यात्रा में हूँ.मन भी उदास है.आठ खूबसूरत दिन बिताकर राजस्थान छूट रहा.कितने अनजाने मित्र बन गए.सब आते वक्त कितने उदास थे..कल अमित भइया हमारे फेसबुक मित्र ने अपनी कार में बैठाकर राजस्थान का रात्रि दर्शन कराया.
एक अद्भुत अनुभव से गुजरना हुआ.उनकी आत्मीयता से अब तक मन भीगा हुआ है.अब यकिन ही गया है कि फेसबुक को आभासी कहने वाले नकली किस्म के लोग हैं.
बस रह रह के उदासी घेर लेती है..इधर सोचता हूँ कि ये समग्र जीवन जीवन यात्रा ही तो है.हम रेल हैं.एक-एक दिन एक एक पड़ाव है.न जाने कितने गुड्डआ और दादी और राजस्थान के साथ अमित भइया से मिलना है अभी.ओशो एक जगह बड़ी खूबसूरत बात कहतें हैं.की “जीवन में कहीं चढ़ना होता है तो कहीं उतरना होता है..तब कहीं जाकर पहुंचना होता है..”
इसी पहुंचने की उम्मीद से राजस्थान से विदा.आगे कुछ दिन गाँव फिर उड़ीसा और बंगाल की तैयारी.आज रह रह के नासिर काज़मी साब याद आ रहें हैं..और बनारस से ज्यादा बलिया भी।
तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमईन न था
गुज़री है मुझ पे भी ये क़यामत कभी-कभी
कुछ अपना होश था न तुम्हारा ख़याल था
यूँ भी गुज़र गई शब-ए-फ़ुर्क़त कभी-कभी
ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मुहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी-कभी