हमरो सैयां हो गइले परधान ( चुनाव कथा )

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चुनाव

साल डेढ़ साल पहले से चुनाव की  तैयारी..वोट का जोड़,घटाव गुणा,भाग.जुगाड़ आ तिगड़म का रिजल्ट आ गया….गांव-गाँव जश्न..मिठाई आ फूल माला का स्टॉक खतम….
अबीर गुलाल से कहीं होली तो कहीं  मुहर्रम  से भी ज्यादा मातम..तो कहीं विजयी परधान जी के चार फुटिया लौंडे महुआ पीकर नाच रहें हैं..
तो कहीं पाबंदी के बाद भी डीजे वाले ‘बाबू परधनवा के गन्ना में बजा’ रहें हैं..
कहीं हार जाने वाले प्रत्याशी ने  जीतने वाले प्रत्याशी के छोटे भाई को पीटकर ही हार का बदला निकाल दिया है….. तो बलिया के बरवां गाँव में तो एक जन का हत्या तक हो गया। कई के दिल के दौरे पड़ गए….

मन्टू बो भौजी परधान हो गयीं तो उधर सुनेंसर के माई भी सतरह वोट से विजयी हैं…..घर दुआर पर यही चरचा चल रही..फलाना ने वोट नहीं दिया…अब दुश्मनी शुरू….”देखें किस तरह खेत में पानी लेके जातें हैं ससुर….देखे समिति से कइसे खाद निकाल लेंगे….विकास भवन से समाजवादी  पेंशन नहीं रोकवा दिए तो फलाना के बेटा नहीं…अरे ऊपर तक पहुंच है.. डाइरेक्ट मोलायम चचा आ अकलेस भाई से कह देंगे..साँस भी न ले पाएंगे ससुर के नाती…”

उधर हार जाने वाले नुकशान और खर्च के बारे में सोचकर तबाह हैं..”साला दू-दू हजार एक-एक घर में पइसा दिए थे..चार काठा रहर वाला खेत बेचना पड़ा.मेहरारू का झुमका आ कंगन सुनार के यहाँ गिरवी रखा  है….आज छह महीना से हर दू दिन पर दारु मुर्गा के साथ शाकाहारी वोटरों को लिटी चोखा आ  खीर..गाँजा,पान,चाय का हिसाब तो  चित्रगुप्त भी नहिं लगा सकते….बाप रे..!

गाँव से बाहर नोट छापने गए लोगों को एसी का टिकट  भेजे थे….”
लेकिन हाय रे परधानी..पता न कवना फाउंटेन पेन से भगवान किस्मत लिखे थे..मात्र बारह वोट से हार गए….
इ सब सोचकर इस अगहन के जाड़ा में करेजा से धुंआ निकल  रहा है…”अरे बस चार घर कोइरी टोल वोट दे दिया होता..तो इ दिन नहीं देखना पड़ता हे  डीह बाबा..काली माई के आँख बन्द हो गया था का रे  पिंकिया के माई कि कवनो भूल चूक हो गया हे देवता पीतर…अब कवन मुंह लेकर गाँव में निकसें…”

इसी अफ़सोस के समुन्दर में हारने वाले डूब उतरा रहें हैं….
भूतपूर्व परधान जो पाँच साल जमकर आंगनबाड़ी मनरेगा,मीड डे मील और खड़ंजा नाली सड़क में लूटपाट मचाने का काम किये थे वो कुछ ज्यादा ही सदमें में हैं…..पांच साल में खुद को भगवान समझकर की गयी  एक एक गलती रुला रही… कल से खाना पानी अंदर नहीं जा रहा….सबसे ज्यादा दुःखी तो उनकर मेहरारू हैं…अब का मुंह लेके  नइहर जाएंगी..का सहेली से अपने परधान संइयां का बखान करेंगी…कभी जमाना था कि गांव कि औरतें  भौजी को देखते ही “परधाइन परधाइन कहके स्वागत में खटिया बिछा देतीं थी..”. पहले साल के  मनरेगा का पइसा से ही परधान जी ने  मेहरारू के लिए नवलक्खा हार बनवा दिया था.. ……भले गाँव में एक भी नाली बने या न बने भले खड़ंजा का एक ईंट बदला जाय या न बदला जाए लेकिन  भौजी का  हर महीने मोबाइल सेट का मॉडल और झुमके का डिजाइन बदल जाता था …भौकाल टाइट था.

लेकिन पांच साल में जमाना बदल गया..
वक्त भी का का दिन दीखाता है….अपने सखी सलेहर से का कहेंगी…सब लूटकर रखा गया पइसा तो चुनाव में खरचा हो गया…

वहीं विजयी परधान जी ने शिक्षा मित्र आँगनबाड़ी सफाई कर्मी आशा एनएम की आपातकालीन बैठक बुला दी है…. भविष्य के लुटपाट की योजना जितनी जल्दी तैयार हो जाय उतना अच्छा रहेगा..

हाँ गाँव वही का वहीं खड़ा है अपनी हालात और बेबसी पर हंसता हुआ जहाँ पहले भी था….एक एक रस्ते,खेत,पगडंडियां,कुँवा तालाब और प्राइमरी स्कूल इस चुनाव को देखकर अपनी किस्मत को कोस रहे हैं.
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वो जानते हैं कि कुछ होने वाला नहीं।
निजाम बदल गया पर अपने  भाग्य में बदलना नहीं लिखा…तरक्की का सपना ही बेमानी है….पांच साल में गाँव वही का वही रहेगा हाँ लेकिन हमारे विजयी परधान जी तरक्की करते हुए शहर में शिफ्ट हो जायेंगे। खड़ंजा नाली सही भले न हो परधान जी अब बोलेरो लेकर मांनेगे।
गाँव भी जनता है कि
“भ्रष्टाचार भारत का राष्ट्रीय चरित्र है जिसको कोई बदल नहीं सकता।”

 

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