फ़ेसबुक बनाम यू ट्यूब – यूज़र से डॉलर बनते लोग

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एक दिन देख रहा कि मम्मी-पापा ने तीन साल की बेटी का टिक-टॉक वीडियो फेसबुक पर अपलोड किया है। उसके मिलियन व्यूज हैं और पापा जी लहालोट हैं।

गाँव के वो लौंडे जो ठीक से कॉलेज का मुँह नहीं देख पाए। उन्होंने लाली,पॉउडर लगाकर,घाघरा-चोली पहनकर,कूल्हे मटकाते हुए फ़ेसबुक का मिलियन व्यूज़ पा लिया है।

कहीं एक्सीडेंट हुआ है और सैकड़ों लोग तमाशा देख रहें हैं,उसे भी करोड़ों लोगों ने देखा है। कहीं लोग डूब रहें हैं,मर रहें हैं,मार रहें हैं उनके भी दर्शक लाखों में हैं।

कहीं मोटिवेशन की गंगा बह रही,कहीं भक्ति की तो कहीं नफ़रत की। कहीं बक़वास से लाइव सेशन को भी दस लाख लोग झेल लिये हैं।

यही नहीं, इधर मैंने नोटिस किया कि मेरे कई मित्र हैं,जिनकी फेसबुक की टाइम लाइन “गर्म पड़ोसन”, “हवस की प्यासी आत्मा”, टिक-टॉक की सस्ती कॉमेडी और ‘संदीप माहेश्वरी’ के महंगे मोटिवेशन से भरी है। यानी उनकी टाइम लाइन पर हर दूसरी पोस्ट वीडियो है।

वहीं दूसरी तरफ़ किसी उम्दा लेख,खूब बढ़िया ब्लॉग की पहुँच,हज़ार,दस हज़ार लाइक्स तक ही सीमित रह गई है।

ऐसा क्यों ?

किसी जमाने में तो साधारण पेज और प्रोफ़ाइल के आर्टिकल वायरल हो जाते थे। यानी एक-एक,डेढ़-डेढ़ लाख लाइक्स।

किसी-किसी फ़ोटो को ही दो लाख लोग शेयर कर देते थे।

मैं खुद अपनी दो हजार सोलह की साधारण सी पोस्ट पर आए चार-चार,पाँच-पाँच हज़ार लाइक्स देखकर आज़ भी हैरान होता हूँ।

लेकिन आज तो ‘आज़ तक’ से लेकर ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ और ‘बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़’ और :द न्यूयॉर्क टाइम्स’ से लेकर ‘अल जज़ीरा’ तक के हाल बेहाल हैं।

मैंने ध्यान से देखा इनके यहाँ भी फेसबुक पर समाचार कम पढ़े और शेयर किए गए हैं,लेकिन इनके वीडियो खूब देखे गए हैं।

दरअसल ये सब एकाएक नहीं हुआ है।

इसके कुछ गहरे कारण हैं…पहला कारण है,दो हजार सोलह मध्य में जियो का आना। और इंडिया में वीडियो स्ट्रीमिंग का सौ से पांच सौ गुना बढ़ जाना।

जब ढाई सौ रुपये में एक जीबी थ्रीजी एयरटेल देता था,तब मैं जानता भी नहीं था कि यू ट्यूब कोई चीज हुआ करती है। और मुझे कोई वीडियो देख लेना चाहिए..

मेरी कैटेगरी में आप में से न जाने कितने लोग होंगे।

लेकिन आज भारत दुनिया का सबसे सस्ता डाटा यूज कर रहा है। आने वाले समय में और सस्ता हो सकता है।

आने वाले समय में भारत में इंटरनेट यूज़र पच्चासी करोड़ से ज्यादा होंगे.. ज़ाहिर सी बात है कि वीडियोज़ और देखे जाएंगे..

लेकिन क्या सिर्फ वीडियो के कारण ही ये परिवर्तन हुआ है।

नहीं।

कारण इसका सिर्फ़ ये नहीं.. इसका सबसे बड़ा कारण है ऑनलाइन एडवरटाइजिंग इंडस्ट्री की बादशाहत को लेकर गूगल और फ़ेसबुक में भयानक सी टक्कर।

आज समय के साथ विज्ञापन की दुनिया और उसका स्वरूप बड़ी ही तेजी से बदल रहा है..

मान लें आप जूता बेचते हैं। तो आप अपना एड टीवी,रेडियो,अख़बार में देंगे।

जाहिर सी बात है एक तो वो महंगा होगा,और आपको पता भी नहीं चलेगा कि आपके विज्ञापन से कितने लोग प्रभावित हुए हैं।

क्योंकि कितने प्रतिशत लोग अख़बार में एड पढ़ते हैं ? रेडियो,टीवी का एड कितने लोग ध्यान से सुनते और देखते हैं।

आज सोशल मीडिया नें इस दिक्कत को सस्ते में दूर कर दिया है। गूगल और फेसबुक ने मिलकर इसको सस्ता और सुगम बना दिया है।

अब आपके जूते का विज्ञापन उन्हीं को दिखाया जाता है, जिनको सच में जूते की जरुरत है।

उन्हीं के टाइम लाइन पर, वो एड बार-बार आता है।

फायदा एड देने वाले और जूता खरीदने वाले दोनों को होता है।

अब लड़ाई क्यों है ?

लड़ाई है इस विज्ञापन की दुनिया में एकाधिकार को लेकर..लड़ाई है आपको और हमको लेकर..लड़ाई है कि “ये मेरे यूजर हैं तो इनसे फायदा मैं कमाऊंगा..”

अब आप पूछेंगे कैसे ? तो देखिए.

पहले यू ट्यूब के लिंक्स फेसबुक,व्हाट्सएप पर शेयर किए जाते थे,ताकि लोग देखें,व्यूज़ बढ़े और पैसा मिले..

लोग फेसबुक के थे,वीडियो यू ट्यूब का देखते थे,फायदा गूगल,यू ट्यूब को होता था।

पहले समाचार के लिंक्स शेयर किए जाते थे,लोग उस पर गूगल एडसेंस का एड देखते थे। जनता थी फेसबुक की, फायदा होता था गूगल को..

अब मार्क जुकरबर्ग नामक आदमी सोच रहा है कि “यार व्हाट्सएप हमारा,फ़ेसबुक हमारा, इंस्टाग्राम हमारा,यानी आधी दुनिया हमारी,तो फ़ायदा गूगल और यू ट्यूब को क्यों हो ?”

क्यों न वीडियोज का अपना प्लेटफॉर्म शुरू कर दिया जाए ? जनता को यू ट्यूब पर जाने की फुर्सत ही न मिले।।

विडियो बनाने वाले को भी आर्थिक फ़ायदा,देखने वाले को भी आराम,और फेसबुक पर अपने विज्ञापन देने वालों को भी सुविधा..

यही कारण है कि बीते दो साल में फेसबुक ने अपने ‘ऍल्गोरिथम’ में भयानक परिवर्तन किया है।

पहले उसने ब्लॉगरों की सुविधा और गूगल एडसेंस को टक्कर देने के लिए लाया “फेसबुक ऑडिएंश नेटवर्क”

फिर इंस्टाग्राम पर IGTV लेकर आया और कुछ महीने बाद ही फेसबुक पर यू ट्यूब को टक्कर देने के लिए लेकर आ गया. “फेसबुक वॉच”

उधर यू ट्यूब भी कम क्यों रहे..उसने सोचा कि मेरे यू ट्यूबर अपनी-अपनी छोटी सी बात और अपडेट शेयर करने के लिए फेसबुक का सहारा लेते हैं..

क्यों न हम भी पोस्ट लिखने,फ़ोटो शेयर करने की सुविधा दे दें.

कुछ महीने बाद उसने सारे बड़े “यू ट्यूबरों” को यू ट्यूब में ही पोस्ट लिखने,फ़ोटो शेयर करने और स्टोरी लगाने की सुविधा दे दी।

आज़ हाल ये है कि आप जरा सा भी होशियार नहीं है तो इस खेल में फँस जाएंगे.. और आपकी टाइम लाइन इस गूगल-फ़ेसबुक की लड़ाई में बकवास से वीडियोज़ से भर जाएगी..

क्योंकि फेसबुक और यू ट्यूब का सीधा मानना है कि कोई हमारे यहाँ एक वीडियो देखने आता है,तो उसे पकड़कर दस वीडियो दिखाओ..

आपने ख़ुद महसूस किया होगा,यही होता है। आप एक वीडियो देखने जातें हैं और दस देखकर आते हैं।

अब फेसबुक कत्तई नहीं चाहता कि व्हाट्सएप,
फ़ेसबुक,इंस्टाग्राम की सारी ऑडिएंश का फ़ायदा गूगल के यू ट्यूब को मिले..और वो मालामाल हो जाएं..

आज मैं कहूँ की आप एक फ़ेसबुक यूजर नहीं हैं, आप सिलिकॉन वैली के लिए डॉलर में तब्दील हो चूकें हैं तो आश्चर्य न होगा..

आपसे हर पल कमाया जा रहा है..आपकी एक कमजोरी पकड़कर बेचने वाला कहीं और बैठा आपको बेच रहा है.. और आपको पता भी नहीं चल रहा है कि आप बिक रहें हैं..

इसलिए मैं कहूंगा कि फालतू के लुभावने वीडियो देखने से बचें…सार्थक और सकारात्मक ही चीजें देखें और पढ़ें..ताकि यहाँ आकर बाहर की दुनिया से अच्छा महसूस हो।

नहीं तो आने वाला समय और बुरा होने वाला है।

आज फ़ेसबुक ने यू ट्यूब से टक्कर लेने के लिए इतना परिवर्तन किया है। कल उसके सामने सबसे बड़ा प्रतियोगी कोई है, तो वो है “टिक-टॉक” की बढ़ती लोकप्रियता।

बहुत सम्भव है कि आने वाले कुछ महिने या साल में फ़ेसबुक अपना वीडियो एडिटिंग टूल जारी करे.. और हममें से तमाम लोग अब “टिक-टॉक” की सस्ती कॉमेडी करते नज़र आएँ..

सो सावधान रहें..फिर कहूँगा वही देखें और पढ़ें जिससे आपकी सकारात्मकता में वृद्धि हो..

बात ये है कि आज स्मार्ट फोन लेकर स्मार्ट नहीं हुआ जा सकता। थोड़े से सावधान आप न हुए तो अपना बाज़ार बढ़ाने के लिए आपके दिमाग में यहाँ कब गोबर भर दिया जाएगा पता न चलेगा..

इसलिए “जानकारी ही बचाव है।”

बकौल फ़रहत एहसास.

“जादू भरी जगह है बाज़ार तुम न जाना
एक बार हम गए थे,बाज़ार होकर निकले..”

(इस नीरस लेख को पढ़ने के लिए धन्यवाद 😊)

©- atulkumarrai.com

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