चुनाव चुनाव चुनाव..परधानी परधानी परधानी….. पूरुब से लेकर पक्षिम टोला…उत्तर से लेकर दक्षिण टोला आ काली माई से लेकर पिपरा तर के बरम बाबा तक गाँव के माहौल में election का अजीब सा संक्रमण है…..न हवा में वो शीतलता है न, सुगन्ध, न ही उन खेतों की नीरवता में स्पंदन…न पेड़ों पर पक्षी चहचहा रहें हैं….न ही पीपल के पत्ते ताली बजा रहे…खेत,बोली,माटी में राजनीति का लमहर कीड़ा घुस गया है।..
जनेरा तो कट गया लेकिन रामसुधि को बेचने की जल्दी नहीं है…अरे पहिले मदन को परधान बनाया जाय तब जनेरा बेचकर ददरी मेला से एक बाछी खरीदेंगे.
गाँव का बच्चा बच्चा जिंदाबाद-जिंदाबाद बोलने लगा है……जहाँ टैक्टर बस जीप पर “रतिया कहाँ बितवला ना” और “परधनवा के गन्ना में” बजता था वहां से अब “फलाना कर्मठ जुझारू प्रत्याशी को भारी मतों से विजयी बनाएं”टाइप पारम्परिक जुमले सुनाई दे रहे हैं.
जिन रास्तों पर शाम 7 बजे वीरानगी छा जाती थी..कुत्ते भौंकते थे .. वहां अब टिनहीया छाप लौंडे प्रधान प्रत्याशी का महुआ पीकर बाइक से घुड़ दौल मचा रहें हैं…
अचानक से विनम्रता अच्छाई,ईमानदारी ,कर्मठ,जुझारू जैसे शब्दों का इतना आयात हो गया है कि गाँव का हर प्रत्याशी जो कभी लड़की छेड़ने के कारण चार महीना जेल में रहा अब उ सबका चरित्र प्रमाण पत्र बना रहा है..
गांज,महुआ,दारु के अड्डों पर लिटी चोखा दारु की पार्टी चल रही है..
मने रात रामबिलास दारु पीकर ई हल्ला कर दिए कि ” अरे सरवा सुरेशवा के वोट तो उसके बाबूजी नहीं देंगे परधान बनने चला है ससुर.” लो मचा बवाल..झगड़ा बाप बेटा में अईसा हुआ कि लगा की कुछ नीमन बाउर होकर रहेगा। बाकी संझा माई खुश थीं..बाल बाल बच गया।
इधर गाँव के वो सारे लोग जो दिल्ली नवेडा में नोट छापने का काम कर रहे थे वो अपना टेंट समियाना आ कमाई धमाई लेकर पलायन कर चूके हैं….कई लोगों के मेहरारु से रोज झगड़ा हो रहा…”कहे थे कि नवेडा से आएंगे तो झुमका बनवायेंगे…अरे वोट आ चुनाव हम कान पहन के नइहर जायँगे ?का हो विकास के पापा”… विकास के पापा की बोलती बंद है।
कई जिज्जूओं की प्यारी प्यारी सालीयों ने फोन करके पूछा है…ए जीजा जी तहार बहिन का*** ससुरारी नहीं आयंगे.. ?
जीजा जी मटिलगनू दिन भर वोट मांग रहे आ शाम को मेहरारु आ साली का ताना सुन रहे हैं.
लेकिन चट्टी पर चाय की दुकानों में बहस का बेहिसाब चिल्ल पों जारी है।…
हर एक घण्टे में एग्जिट पोल के नए नए नतीजे सामने आ रहें हैं।..जिनको एक बार इंडिया टुडे का सेक्स सर्वेक्षण करने वालें देख लें तो शरमाकर आध्यात्मिक हो जाएँ.
हाँ नए नए नारे और नए गालियों कुछ शेर ओ शायरी की सरंचना का टेंडर कुछ प्रेम तिवारी टाइप गाँव के असफल मजनूवों को दे दिया गया है.
कई जगह हाल ये है कि फलाना से फलाना ने बात कर दिया या साथ खड़े दिख गए तो आफत….हल्ला मच गया…”विसनाथ बाबा तो जोगेन्द्र सिंगवा के संगे हो गए..अब्बे एक्के संगे चाह पी रहे थे.”…कहीं भाई ही भाई को वोट नहीं दे रहा..तो कहीं बाप बेटे को…तो कहीं पच्चीस साल की रंजिश को भुलाकर फलाना तिवारी ने फलाना पांडे को अपना समर्थन दे दिया है…रमेसर जीत कर बीडीसी परधान न हो जाएँ इसलिए कमेसर भी ताल ठोक कर मैदान में हैं…..”साले तुमने मेरी चार लाठा जमीन हड़पी जियत जिनिगी में परधान नहीं बनने देंगे….”
आ खेदन तो इसलिए शादी किये जल्दी जल्दी कि कहीं महिला सीट हो गया तो मेहरारु को खड़ा करा देंगे… गाँव के आधे देवर लौंडे तो खेदन बो भौजी पर ही मोहर मारेंगे।
मने की चुनावी मैच में गाँव के मैदान तैयार हैं….2017 विधानसभा के सेमीफाइनल माने जा रहे इस पंचायत चुनाव में सभी खिलाड़ी अपने अपने कोच फिजियोथेरेपिस्ट से राय मसवरा कर दुरुस्त हैं . दिन भर ताश खेलने वाले लौंडे आजकल..भूमिहार 1200 त अहीर 500 आ बाभन मात्र चार घर…कोइरी 200 आ बनिया तीन सौ का हिसाब फेंट रहें हैं…. ताड़ी,भांग,सूर्ती के लिए दूसरों का मुंह देखने वाले निकम्मे आजकल मतदाता सूची बांच रहें हैं..
गाँव लगता है गाँव न रहा अब….जहाँ आजतक शुद्ध सड़क न बनी वहां स्कार्पियो,पजेरो,टवेरा इनोवा और सफारी दौड़ रही हैं…कभी धरती पुत्र मन से मोलायम जी का समाजवाद सफारी से आता है तो कभी कमल पर सवार होकर राष्ट्रवाद..कभी आम आदमी का हाथ कांग्रेस के साथ..कभी बहन जी आ रही हैं हाथी के साथ…कभी जय सुहेलदेव….. मने आने जाने का क्रम लगा है।
लेकिन ये तो हर पांच साल पर होता है…election आने जाने का क्रम लगा रहता है.सब आता जाता है बस नहीं आता तो वो है विकास… जिसके नाम पर पैसा खाकर कई परधान जी लोग गाँव की झोपडी से बलिया के रामदहीनपुरम में शिफ्ट हो गये…बेचारे लोग भी जानतें हैं की चुनाव कुम्भ का मेला हो गया है…नहाइये बुड़की मारिये काम खतम।…पंचायती राज व्यवस्था की खामियों पर आज तक किसी का ध्यान ही न गया।
आज भी गाँव के कोने कोने के विकास न होने का रोना रो रहें हैं…नाली खड़ंजे स्कूल बिजली पानी रास्ता जैसी मूलभूत चीजें आजतक दुरुस्त न हुईं….
मीड डे मील,स्कूल ड्रेस में भयानक लूट मची है…आशा एनएम आंगनबाड़ी सफाई कर्मचारी संगे पूर्व परधान जी ने इतना बड़ा विकास किया है की शहर में बेटे के नाम कई बीघा जमीन खरीद लिया…लेकिन गाँव में चकबन्दी के झगड़े आजतक न निपटाये गए।
और देखते देखते इधर पूरा गाँव आर्सेनिक से ग्रस्त हो गया…पीने को शुद्ध पानी नहीं लेकिन गाँव की राजनीति में वोट लेने देने वालों को फुर्सत कहाँ कि ये जानें की विकास के नाम पर कितनी लूट मची है। और आने वाले पांच सालों में फिर कितनी मचेगी। गाँव के लोग अभ्यस्त और अभिशप्त हैं।
इस रसहीन उदास से माहौल में पता नहीं क्यों कभी कभी अदम गोंडवी याद आतें हैं….
“जितने हराम खोर थे कुरबो जवार में
प्रधान बनकर आ गए अगली कतार में”