शाम का मनभावन समय है। बाहर का मौसम रोमांटिक हो चला है। बादलों के गरजने की ध्वनि के साथ बारिश की बूंदे खिड़की से होते हुए कवि चिंगारी जी के बेडरूम तक आ रहीं हैं।
बेडरूम में टीवी चल रही है और कवि “चिंगारी” शवासन में लेटकर पकौड़ों का इंतज़ार कर रहें हैं। लेकिन मुए पकौड़े हैं कि किचन से निकलने का नाम नहीं ले रहे हैं। लगता है वहीं कहीं धरने पर बैठ चुके हैं। देखते ही देखते सुगंधित मसालों और तीखी चटनी की महक से कवि हॄदय व्याकुल हो रहा है,”सुनती हो,पम्मी की मम्मी ?”
कहीं से कोई सुनवाई नहीं हो रही है।भला इस देश में कवियों की सुनता कौन है जी। अगर इनको सच में सुना गया होता तो ये दुनिया कबकी स्वर्ग हो चुकी होती। कवि चिंगारी पकौड़े के नाम पर मुंह में उठते ज्वार-भाटा को किसी आंदोलन की तरह दबाकर सोच रहें हैं कि देर-सबेर उनकी आवाज़ जरूर गृह मंत्रालय तक जाएगी।
इसी खूबसूरत उम्मीद में कवि नें करवट बदला।तब तक टीवी पर सरसो तेल का विज्ञापन शुरु हो गया। एक सुंदर,सुशील नायिका पूरे नाज़ों-अदा को अपने कपार पर उठाकर नायक के लिए पकौड़े छान रही है। इधर नायक पकौड़ी खाना भूलकर नायिका के लिए प्रेमगीत गा रहा है।
ये देखकर कवि चिंगारी का गुस्सा सरसो तेल के भाव की तरह बढ़ रहा है,”ए,पम्मी की मम्मी ? यार ये कौन से आसमानी पकौड़े बना रही हो कि अब तक नहीं बना। ऊपर से ये टीवी के विज्ञापन। इनको कैसे पता कि आज हमारे यहां पकौड़े बन रहे ?लगता है,ये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब किचन-बेडरूम तक घुस जाएगा।
“तुम्हारे कपार में घुस जाएगा ! पहले तो ये टीवी बन्द करो और चुप-चाप जाकर बाज़ार से सरसों तेल लावो। तीन दिन से कह रही,चूल्हा बनवा दो,बनवा दो,जल नहीं रहा लेकिन दिन भर फेसबुक पर बैठकर देश की समस्याओं पर कविता लिखनें के लिए टाइम है,घर के लिए नहीं ?
हाय! श्रीमती शर्मिला जी के इस सिंहनी अवतार को देखकर कवि के काव्यात्मक चिंतन पर कचकचा के स्पीड ब्रेक लग गया है। कवि को गृह मंत्रालय द्वारा सुना जाएगा लेकिन इस तरह से सुना जाएगा,इसका उसे अंदाज़ा नहीं था। कवि सोच रहा है। “क्या जमाना आ गया प्रभो..! एक वो भी समय था,जब नायिका को देखकर कवि कहता था,”छाती से छुवाई दीया-बाती क्यों न बार लयों”
मतलब रीतिकाल में कवि को विश्वास था कि विरह में धधकती नायिका के हृदय की तपन से कुछ भी जलवाया जा सकता है। एक आज का ज़माना है कि कवि नायिका से कहकर गैस-चूल्हा भी नहीं जलवा सकता है।
अब सामने किराना के सामानों की एक लिस्ट है। न भीगने के लिए एक छाता है। कवि नें बड़े ही भारी मन से अपनी अलिखित प्रेम कविताओ के साथ बाज़ार की तरफ़ रुख कर दिया। साहिर लुधियानवी होते तो यहां चिल्ला पड़ते,
“मैं ने जो गीत तिरे प्यार की ख़ातिर लिक्खे
आज उन गीतों को बाज़ार में ले आया हूँ।”
लेकिन कवि जानता है कि साहिर शादी-शुदा नही थे,वरना वो गीत को बाज़ार में ले जाने से पहले स्वयं उठकर धनिया-जीरा,मिर्च और मसाला लेने बाजार जाते और लौटकर बीबी से डाँट भी सुनते।
इन अविवाहित कवियों को क्या पता कि एक शादी-शुदा कवि को क्या-क्या दुःख उठानें पड़ते हैं। कुँवारेपन में आँख, कान,गर्दन और कमर पर कविता लिखने वाला कवि कब सरसो तेल और पेट्रोल पर कविता लिखने लगता है,उसे समझ नहीं आता।
अब चिंगारी जी दुकान के सामने खड़े है। एक हाथ में झोला है,दूसरे में छाता,दिमाग में चिंतन। इधर बारिश के बाद उमस भरी गर्मी से भयंकर पसीना चू रहा है। दुकानदार बोल रहा है, “कवि जी,कैश दीजिये”
“कैश नहीं है मेरे पास ?”
“ठीक है,तब ऑनलाइन पेमेंट कर दीजिए। “
“ऑनलाइन करना तो हमें आता नहीं,खाते में लिख लो।”
“कैसे कवि हैं आप? दिन भर ऑनलाइन कविता ठेलना आता है,पेमेंट करनें नहीं आता..?”
“ज़्यादा न बोलो,चुप-चाप लिख लो। घर में कुछ मेहमान आने वाले हैं।”
कवि सरसों तेल लेकर घर आ गया,पत्नी मुस्करा रही है। सामने एक मुँहबोला साला बैठकर हंस रहा है। नमस्ते “जीजू”
“कैसे हो पिंटू?”
एकदम ठीक। आप तो कमाल लिखते हैं। मैनें आपकी फेसबुक पोस्ट में देखा था,आपने दीदी को अपना सबसे अच्छा दोस्त बताया था,पढ़कर अच्छा लगा। इधर से जा रहा था तो दीदी नें कहा,पकौड़े खाकर जावो।
शर्मिला जी मुस्करा रही हैं, “बिल्कुल पिन्टू,तुम्हारे जीजा सच में अच्छे दोस्त हैं।
कवि सरसो तेल के बोतल का मूल्य पढ़ते हुए बुदबुदा रहा है,”चुप रह पगली। आजकल अच्छे दोस्त बनने के लिए पहले तलाक लेना पड़ता है।”
(जागरण के संपादकीय पेज पर18-07-2021 को प्रकाशित )