हमने देश के लिए क्या किया साहेब

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PADMA AWARD 2017

​कल से मोहल्ले के एक ड्यूड क्रांतिकारी फेसबुक पर बवाल काट दिए हैं.कल जहाँ सब लोग सुबह उठकर तिरंगे झंडे के साथ गणतंत्र दिवस मना रहे थे.?वहीं वो शरद पवार का फ़ोटो डालकर पूछ रहे थे.”क्या यही पदम् पुरस्कार है” ? इतना कहने के बाद उन्होंने अपने डीपी में क्रान्ति कर रहे चे ग्वेरा को देर तक निहारा और फट से एक क्रांतिकारी का सनसनाता हुआ कमेंट लाइक किया.

“इस देश का कुछ नहीं हो सकता.ख़ाक अच्छे दिन..”बर्बाद हो गया देश हमारा.मोदी हाय-हाय ! कमेंट लाइक करने के पश्चात अपनी तीसरी प्रेमिका के पांचवें  प्रेमी वो क्रांतिकारी जी उठे.तो देखा की उनका मोबाइल बज रहा है.नज़र गयी तो पता चला उनकी महबूबा ने whats app किया है.”डार्लिंग आज तो छुट्टी है.आज तो एक movi चलतें हैं..बड़ी दिन हुआ macdonald और kfc गये.”

फिर क्या था.क्रांतिकारी जी ने देश बदलना छोड़ कपड़ा बदला और चले गए महबूबा के साथ  फ़िल्म देखने..शाम को फ़िल्म देखकर आए तो फेसबुक खोला.खोलते ही देखा कि उनके ही जैसे अनगिनत क्रांतिकारीओं ने पदम् पुरस्कारों पर जमकर बवाल काटा है.अब इसमें दोष किस का दें ?.किसी का दोष नहीं.

दरअसल सोशल मीडिया ने सबसे ज्यादा इसी टाइप के क्रांतिकारीओं पैदा किया है..जो भले रोज अपना अंडरवियर न बदलें लेकिन Facebook,Twitter पर आते ही  देश को बदल देते  हैं.और मजे की बात ये है कि पता नही कहाँ से किसी ने एक घटिया चलन निकाल दिया है कि.social media पर जो जितनी नकारात्मक बातें करेगा.जितनी निंदा,शिकायत और दिन भर समस्याएं गिनायेगा.लोग उसको उतना ही बड़ा बुद्धिजीवी समझेंगे.

अगर ऐसी बात नहीं तो फिर मैंने पूरे फेसबुक पर कहीं नहीं देखा की किसी ने जिक्र किया हो.उन्हीं पदम पुरस्कारों की लिस्ट में उस डाक्टर दादी का नाम..अरे ! वही डाक्टर दादी इंदौर वाली.जो आज 91 साल की अवस्था में आज भी रोज महिलाओं का मुफ़्त में इलाज करती हैं.केरल की 76 वर्षीय तलवार बाज उस मीनाक्षी अम्मा का नाम,जिन्हें भारत की  सबसे उम्रदराज मार्शल आर्ट एक्सपर्ट कहा जाता है.उन्हीं नामों में  बिहार की बौआ देवी..जिन्होंने अपने दृढ संकल्प से  मधुबनी  पेंटिंग की दुनिया भर में प्रसिद्ध कर दिया.एम्बुलेंस वाले बाबा करीमुल हक. जो आज भी गाँव-जवार के  मरीजों को बाइक से अस्पताल पहुंचातें हैं.जिन्होंनें अपने गाँव घालाबाड़ी से 24  घण्टे में ही एम्बुलेंस सेवा शुरु कर दिया.

                                             
और जरा नज़र दौड़ाइए उसी में  तेलांगना के 68 वर्षीय  वृक्षपुरुष सिद्धारमैया का नाम भी तो है.अरे !वही जो सुबह झोले में बीज लेकर साईकिल से निकलते हैं.और जहाँ खाली जमीन देखते हैं.वहाँ पेड़ लगा देते हैं.और आपको जान कर आश्चर्य होगा की उन पेड़ों की संख्या आज करोड़ों में पहुँच गयी है.उसी क्रम में गुजरात के डाक्टर सुब्रतो हैं.जो हाइवे मसीहा के नाम से जाने जातें हैं.बंगाल के फायर फाइटर विपिन जी.जो कलकता में आग लगने वाली हर जगह सबसे पहले मौजूद रहतें हैं.और भी नाम हैं.जिन्होंनें अपने कर्मयोग की साधना और पुरुषार्थ को साधकर इस  देश और समाज को सच्चे मायनों में बदला है.जिनसे आज हमें सिखने की जरूरत है.

हमें ये जानने की जरूरत है कि दिन भर आलोचना और निंदा करने वाले बुद्धिजीवि नहीं,मानसिक रुग्ण होते हैं.और देश सोशल मीडिया पर नहीं बदला जाता.जमीन पर बदला जाता है.यहाँ आप ज्यादा से ज्यादा क्षणिक जागरूकता फैला सकतें हैं..जो माउस से  स्क्राल करते ही खत्म हो जाता है.असली बदलाव तो असली जमीन पर होता है.आप या हम सड़क पर थूकते नहीं हैं.अपने साइड से चलतें हैं.रेल,बस,मेट्रो में महिलाओं की आरक्षित सीट पर नहीं बैठते  हैं.खुली  सड़क पर पेशाब नहीं करते हैं.बेवजह हार्न नहीं बजाते हैं.कहीं भी कूड़ा नहीं फेंकतें हैं.तो हम अपने देश की बहुत बड़ी सेवा करते हैं.हमें जाननें की जरूरत है इन सच्चे देशभक्तों के बारें में.इनसे कुछ सिखने की जरूरत है.

किसी शरद पवार या फलाना ने क्या किया..इस तुच्छ तुलना  से ज्यादा जरूरी ये जानना है की हमने इस के लिए क्या किया..?

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