हँसी-खुशी हो ली…
बाहर का मौसम बदलते ही मन का मौसम भी बदलने लगता है। इन दिनों खिड़की खोलते ही ताजी हवा जादू जैसा काम...
एक माइल्ड सा दर्द !
सब्जी की दुकान पर खड़ा होते ही एक मीडिल क्लास आदमी सबसे पहले इकोनॉमिस्ट बन जाता है। ग़लती से दो-चार सौ की...
कहीं न जाने वाले रास्तों पर !
मौसम अब हथेली की तरह गर्म होने लगा है। सुबह का सूरज खिड़की पर आकर जगा जाता है। दोपहर भी कहती है,रुकना...
भोजपुरी संगीत अश्लील क्यों है ? ( इतिहास और वर्तमान पर एक नज़र )
वो साठ का दशक था,तब मनोरंजन के इतने साधन नहीं थे। ले-देकर दशहरा के समय दरभंगा और अयोध्या...
व्यर्थ आवाज़ों की सार्थकता
साँझ सवेरे खिड़की पर गौरैया,कबूतर आकर बोल जाते हैं। न जाने क्या, बहुत जल्दी-जल्दी ! कभी ख़ूब तेज आवाज़ में,कभी मद्धिम। कभी...
इमोशन का जन-धन एकाउंट !
पिछले दो-तीन पोस्ट पढ़कर एक मित्र नें कहा कि इतना ह्यूमर कहाँ से लाते हो भाई ? मैनें कहा,"जनधन एकाउंट में जमा...
एक पटाखा विमर्श…
ये मौसम बदलने का मौसम है। एक झटके में सुबह की नर्म हवा दोपहर की गर्म हवा में इस तरह बदल जाती है,मानों समूचे...
मैं नए जमाने का पुराना आदमी हूँ…
घर के किसी कोने में फेंके हुए हल,जुआठ,खुरपी,हंसुआ देखकर आज भी कदम ठिठक से जाते हैं। हल की मूठ से अपने पुरखों की स्मृतियों...
बचपन का पन्द्रह अगस्त ( अहा ! ज़िन्दगी के अगस्त अंक में प्रकाशित )
ग्राम रघुनाथपुर का उत्तरी बाजार। इस जगह को बाज़ार होने की योग्यता बस इसलिए मिल गई क्योंकि पिछले साल बाढ़ के समय सरकार ने...
अश्लीलता के टेम्पो पर सवार भोजपुरी
शादी-ब्याह के दिन में शगुन उठ रहा हो या घर में कोई शुभ कार्य हो रहा है..जैसे ही घर की बुढ़िया माई अपना आँचल...