कहत भिखारी भयावन लागे…
परसो रात के सन्नाटे में अस्तित्व का साज बज रहा था कि बारिश नें कोरस करना शुरू कर दिया। देखते ही देखते...
बसंत किलकंत है… ( ग्राम्य डायरी )
सरसो पियरा चुका है…हवा जब-जब बहती है,तब-तब मटर के फूल,गुलाब के महंगे फूल को मात देते हैं। चना पर ओस की बूंदों...
शहर माथे पर रखा तनाव है,गाँव थाती में मिला सूकून
गाँव में सुबह उठते ही बुद्धत्व की प्राप्ति हो जाती है.और पता चलता है कि रात का बिछौना सुबह ओढ़ना हो जाए उसे चैत...
गाँव-जवार का फगुआ गान (अहा ! ज़िंदगी के मार्च अंक में प्रकाशित )
गांव के ताल-पोखरा हो या अमराई,महुवा के चिकनाते पत्ते हों या बंसवार में फूटते कोंपल.काली माई का दुआर हो या लाई-दाना भूजने वाली घोसार.गांव...
लोक में अश्लीलता बनाम भोजपुरी की अश्लीलता
जैसे ही गाँव में इकलौते साले जी का आगमन होता है.गाँव के रोम-रोम में जीजत्व की भावना संचरण करने लगती है.वो साला उर्फ सार...
“विरह के नांच” ( कहानी )
भौजी खाना बना रहीं थीं.तब तक पड़ोस की गीता आ गयी.."ए भौजी.आज बड़ा उदास हो,का बात है.आज भइया के ढेर याद आवत है का.आँय'...
रोजगार,पलायन,प्रेम बनाम पूरब देश की विरह कथा
खेदन सिंग बियाह कराने गए...परछावन में इतना खुश थे कि देखते बन रहा था.बाबी बैंड पार्टी सिकन्दरपुर बलिया ने "जीमी जीमी आजा आजा" बजाने...
मेरे गाँव में बस इतना बचा है गाँव
गर्मी की छुट्टी आते ही गांव नामक निरीह शब्द पर एक साथ कई हमले होतें हैं..पहला हमला होता है दिल्ली,नवेडा, लोधियाना से पधारे मोहन...
एक “खत”…पिंटूआ के पापा के नाम
सेवा में
पिंटूआ के पापा
सांझा माई के दीया बारत इहे मनावsतानीं की रउरा लोधियाना में कंचन चरत होखsब...हमार इयाद त रउरा शुके-सोमार के आवत होइ..बाकी...
मंटूआ-पिंकीया की असली प्रेम कहानी
मौसम में हल्की नमी थी और हवा में बंसत की सुवास.आसमान में देखते ही मन उड़ने लगता था.मानों वो चिल्ला-चिल्ला के कह रहा हो."अब...