Blog शुरू करने की रोचक कहानी

4
12045
blog,blog sites,blloger,blogging

मित्रों….

Blog बनानें से ये तात्पर्य कतई नही है की अब मै लेखक हो गया,क्योंकी आमतौर पे लेखकों के Blog होते  हैं,पर यकीन मानें ये एक पाठक का Blog है जिसे अभी पढना भी ठीक से नही आता।मु झे कभी कभी लगता है की जिस दिन पढना ठीक से आ गया उस दिन लिखना अपने आप आ जायेगा। बस दो चार बातें हैं.

पढना जारी रखते हुए लिखना,खुद से मिलनें की कोसिस भर है, एक आत्म संवाद कायम करना है,ताकी आत्मसुधार हो सके,पहले इसके लिये डायरी जैसा निजी लेखन हुआ करता था. जिसमें लेखक स्वयं पाठक होता था। पर SOCIAL MEDIA  ने उसे आउटडेटेड बना दिया है और आज समय के साथ कदम ताल मिलाना जरूरी है।

लिखना खुद से मिलने जैसा क्यों है ? होता क्या है की हम दिन भर दुसरो से तो मिलतें हैं पर ये सोच भी नहीं सकते की खुद से मिला भी जा सकता है किसी शायर ने कहा है की

हरदम तलाश ए गैर में रहता है आदमी
डरता है कभी खुद से मुलाकात न हो जाए”

खुद से मिलने के अपने खतरें हैं हमने जो नकाबें ओढ़ रखि हैं उनके गिर जाने का खतरा है । कोई भी सृजन कला हमें अपने आत्मा से मिलवाती है कुछ गाते बजाते  लिखते या रचते वक्त हम अपने सबसे करीब होते हैं ये सिर्फ महसूस किया जा सकता है।आपको बता दे शब्दकोश बड़ा छोटा है मेरा.बहुत अलंकारिक भाषा शैली नही है,दिल से निकले दो-चार सीधे सपाट शब्द है.  जो बिना लाग लपेट निकलते जाते हैं.लिखने में उतने ही धैर्य की जरूरत है,जितना की कोई धारावाहिक, कहानी पढने या ध्रुपद सुननें में.यहाँ तो सब कुछ जल्दी जल्दी निकलना चाहता है।

मित्रों मै संगीत का विद्यार्थी हूँ.अक्सर संगीत पे कुछ न कुछ पढता रहता हू ।पर अधिकांश जगह देखता हूँ..लेखक अपने लेखन प्रतिभा से वाकिफ कराने के चक्कर में, संगीत जैसी ह्रदयस्पर्शी विषय की सहजता समाप्त कर देतें हैं.जिसमें उनकी लेखन प्रतिभा तो खूब चमकती है पर संगीत हाशिये पर चला जाता है.

मित्रों जो मुझे सहज नही लगता, वो मुझे अश्लील लगता है, ये अश्लीलता थोड़े उच्च स्तर की है इसलिये छम्य है। दुःख होता है पढ़ कर.इसलिये मेरा ये प्रयास रहेगा कि संगीत सम्बन्धी कुछ ज्व्ल्लंत मुद्दों पर अपनी बात यहाँ रख सकूँ। मेरा संगीत के साथ साहित्य,दर्शन और अध्यात्म में बराबर की रूचि रही है,इनमे से संगीत को किसी एक से भी अलग नही किया जा सकता.अध्यात्म मेरे लिए किसी देवता विशेष की पूजा नही वरन अपने अंतस की खोज है जिसमें संगीत सबसे बड़ा सहयोगी है नाद को ब्रह्म कहा गया है इसके बारे में फिर कभी.फिलहाल ब्लॉग नाम रखने के पीछे ओशो की एक बड़ी प्यारी कथा है जो मुझे बहुत प्रीतिकर है आप भी पढ़ें.

एक युवक ने मुझ से पूछा,”जीवन में बचाने जैसा क्या है?” मैंने कहा, ”स्वयं की आत्मा और उसका संगीत। जो उसे बचा लेता है, वह सब बचा लेता है और जो उसे खोता है, वह सब खो देता है।”

एक वृद्ध संगीतज्ञ किसी वन से निकलता था। उसके पास बहुत सी स्वर्ण मुद्राएं थीं। मार्ग में कुछ डाकुओं ने उसे पकड़ लिया। उन्होंने उसका सारा धन तो छीन ही लिया, साथ ही उसका वाद्य वायलिन भी। वायलिन पर उस संगीतज्ञ की कुशलता अप्रतिम थी। उस वाद्य का उस-सा अधिकारी और कोई न था। उस वृद्ध ने बड़ी विनय से वायलिन लौटा देने की प्रार्थना की। वे डाकू चकित हुए। वृद्ध अपनी संपत्ति न मांगकर अति साधारण मूल्य का वाद्य ही क्यों मांग रहा था? फिर, उन्होंने भी सोचा कि यह बाजा हमारे किस काम का और उसे वापस लौटा दिया। उसे पाकर वह संगीतज्ञ आनंद से नाचने गा और उसने वहीं बैठकर उसे बजाना प्रारंभ कर दिया।

अमावस का रात्रि, निर्जन वन। उस अंधकारपूर्ण निस्तब्ध निशा में उसके वायलिन से उठे स्वर अलौकिक हो गूंजने लगे। शुरू में तो डाकू अनमने पन से सुनते रहे, फिर उनकी आंखों में भी नरमी आ गई। उनका चित्त भी संगीत की रसधार में बहने लगा। अंत में भव विभोर हो वे उस वृद्ध संगीतज्ञ के चरणों में गिर पड़े। उन्होंने उसका सारा धन लौटा दया। यही नहीं, वे उसे और भी बहुत-सा धन भेंटकर वन के बाहर तक सुरक्षित पहुंचा गये थे।

ऐसी ही स्थिति में क्या प्रत्येक मनुष्य नहीं है? और क्या प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन ही लूटा नहीं जा रहा है? पर, कितने हैं, जो कि संपत्ति नहीं, स्वयं के संगीत को और उस संगीत-वाद्य को बचा लेने का विचार करते हैं ? सब छोड़ो और स्वयं के संगीत को बचाओ और उस वाद्य को जिससे कि जीवन संगीत पैदा होता है। जिन्हें थोड़ी भी समझ है, वे यही करते हैं और जो यह नहीं कर पाते हैं,उनके विश्व भर की संपत्ति को पा लेने का भी कोई मूल्य नहीं है। स्मरण रहे कि स्वयं के संगीत से बड़ी और कोई संपत्ति नहीं है।

Comments

comments

Next articleएक ऐसी भाषा जो हर जगह समझी जाती है
संगीत का छात्र,कलाकार ! लेकिन साहित्य,दर्शन में गहरी रूचि और सोशल मीडिया के साथ ने कब लेखक बना दिया पता न चला। लिखना मेरे लिए खुद से मिलने की कोशिश भर है। पहला उपन्यास चाँदपुर की चंदा बेस्टसेलर रहा है, जिसे साहित्य अकादमी ने युवा पुरस्कार दिया है। उपन्यास Amazon और flipkart पर उपलब्ध है. फ़िलहाल मुम्बई में फ़िल्मों के लिए लेखन।