बढ़ती बेरोजगारी के जमीनी कारण

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एक अर्धविकसित गाँव का पूरुब टोला,टोले में तीस घर..उसी घर में आधा ईंट और आधा करकट के सहारे बने एक घर में मोहन प्रसाद जी रहते हैं.कहतें हैं बेरोजगारी जब जवार भर के कपार पर सवार होकर नाँच रही थी,लोग लालटेन,चटाई लेकर कलकत्ता,सूरत,नोएडा,लुधियाना और फरीदाबाद वाली रेल पकड़ रहे थे.तब मोहन जी ने धैर्य नहीं खोया.उन्हें अपने पिता से विरासत में मिली आटे की चक्की पर इतना अटूट विश्वास था कि उन्होंने आटा सप्लाई का एक बिजनेस शुरू किया.

मोहन जी का पुरुषार्थ,राम जी का नेह छोह,आज तीन-चार सालों की भयंकर मेहनत से मोहन जी मजे में हैं..एक लड़का है जो बीएड कर रहा..लड़की बीटीसी कर रही..घर परिवार सब कुशल-मंगल है।

वहीं दूसरी तरफ गाँव में एक नगीना पांडे थे.नगीना जी के बीए पास एक ही लड़के प्रमोद बाबू..नगीना जी जीवन भर कलकत्ता जुट मिल में नौकरी किये.. और जब रिटायर्ड होने को हुए तो उन्होंने अपने इकलौते सुपुत्र का वो चेहरा देखा.जिस चेहरे से गुटखा की कम आवारागर्दी की दुर्गंध ज्यादा उठ रही थी।

नगीना जी इस दुर्गंध से बड़े चिंतित हुए.और डांट कर बोले-“उस मोहना को देख रहे हो तुम्हारी ही उम्र का है.दिन भर बाबूजी के साथ काम करता है..और तुमको ससुर दिन भर नक्सा मारने से फुर्सत नहीं”।

कहते हैं नगीना जी प्रमोद बाबू को बड़ी डांट लगाए- और एक दिन कि बात है जब प्रमोद बाबू की आवारागर्दी लिमिट क्रॉस करने लगी-चरित्र प्रमाण पत्र में दाग लगने की नौबत आने लगी..तो उन्होंने अपने बिजली विभाग में काम कर रहे एक बड़े अधिकारी गुप्ता जी से संपर्क साधा..और लेन-देन की जो गुप्त बातें हुई इसका नतीजा ये निकला कि अगले महीने प्रमोद बाबू बिजली विभाग में बड़े बाबू हो गए।

सालों बीत गए..

आज हाल ये है कि मोहन जी दस हजार की जगह पचास हजार महीना कमाने लगे हैं..

वहीं प्रमोद बाबू भी सुगर ब्लडप्रेशर संग भ्रष्टतम क्लर्क की मानद उपाधि लिये,फर्जी बिल बना-बना कर दो-दो जगह मकान बनवा चूके हैं..ये अलग बात है कि उन पर कई बार निलंबन की तलवार भी लटकी..लेकिन..वो अपने काम से टस से मस नहीं हुए हैं।

बड़े संयोग की बात थी. साँझ हो रही थी.खेसारी लाल जी के मुख से निकले एक सुमधुर अश्लील गीत के भाव से वातावरण में फागुन का असर होने ही वाला था.तब तक एक चाय की दुकान पर दोनों टकरा गए.उनके सामने बैठे एक आदमी ने एक तीसरे आदमी से दोनों का परिचय कुछ इस तरह करवाया..

“ई मोहन जी.. आटे वाले…परसु चक्की वाले के पुत्र..और इनसे मिलिए.. ई हमार दूर के जीजा जी हैं बिजली विभाग में बड़े बाबू हैं..अभी बलिया में जमीन लिए हैं..इनके लड़के को चार लाख दहेज मिल रहा है।

मित्रों- आपको पता है क्या हुआ इसके बाद..

मोहन जी ने सोचा कि “अरे! यार अठारह-अठारह घण्टे की हाड़-तोड़ मेहनत और ईमानदारी से हम पैसा कमाते हैं,मेरा लड़का फर्स्ट क्लास बीटीसी उसे कोई पूछ नहीं रहा.वहीं प्रमोद जी हफ्ते में दो दिन आफिस से गायब रहते हैं..घूसखोरी और दलाली में इनका नाम गिनीज बुक के नाना की किताब में लिखा जाएगा…लड़का एक नम्बर का आवारा..लेकिन हाय रे ई समाज… हम दोनों देखते समय अलग-अलग चश्मा ? मने इसका मतलब तो ये हुआ कि इज्जत एक नम्बर के धंधे में नहीं है..या तो दो नम्बर के धंधे में है.या सरकारी नौकर बन जाने में।

कहतें हैं..मोहन जी के दिमाग में बातें बैठ गयीं कि सफल आदमी यानी सरकारी नौकर।

प्यारे मित्रों-

आज रोजगार-बेरोजगार,मोदी जिंदाबाद,मुर्दाबाद की इस भयंकर चिल्ल-पों में आपको ये कहानी सुनाने का मतलब ये बताना है कि आज भी हमारी मानसिकता में बारह हजार रुपये महीना वाली एक चपरासी की सरकारी नौकरी,लाखों रुपये के स्वरोजगार पर भारी है.औरअपने जीवन में सफल माने जाने का एक मात्र सार्टिफिकेट कोई है तो वो सरकारी नौकरी है।

यहाँ आदमी की अहमियत का आंकलन उसका व्यवहार,चरित्र नहीं बल्कि उसका एक मात्र मानक सरकारी नौकरी है,वो सरकारी नौकरी कैसी भी रहे, किसी की रहे..बेटा आवारा है लेकिन बाप उसका किसी कालेज में टीचर है..उसके दहेज का रेट उस आदमी से ज्यादा है जो कोचिंग पढ़ाकर बीस हजार महीने कमा लेता है.

बस इस संकीर्ण सोच ने ये अवचेतन में भर दिया है कि सब कुछ छोड़ो नौकरी पाओ।

अब हुआ क्या…इसी आरामदायक सरकारी नौकरी के लिए..गाँव में दौड़ शुरू..मोहन जी हों या सोहन जी,नगीना जी हों या..राधेश्याम जी..फलाना का लड़का बीएड करके मास्टर हो गया..अच्छा तो मेरा बेटा भी बीएड करेगा..अच्छा उनका लड़का बीटेक कर रहा..मेरा भी करेगा..भले बेटे का मन कुछ और हो..

मोहन जी उस क्लर्क जी की सामाजिक प्रतिष्ठा से घबराकर अपना बिजनेस छोड़ नोएडा भागे..ताकि बेटा बड़ा इंजीनियर बन सके।आज उनके आटे के बिजनेस को शक्तिभोग ने हथिया लिया..

गाँव के बुधई चमार ने चमड़े का काम और मजदूरी छोड़कर कहीं बाहर का रुख कर लिया की लड़के पढ़-लिखकर कुछ बन सकें..जिस जूते को बुधई चमार को बेचना चाहिए था वो बाटा बेचने लगा.

शर्मा जी लोहार जिनगी भर गांव में गेंहू-चावल पर लोहा क्यों पीटें…उनको भी नौकरी चहिए..वो भी खुरपी,हंसुआ बनाना बन्द कर दिए.. क्योंकि महंगाई इतनी ज्यादा हो गयी कि लागत भी निकलनी मुश्किल है.अब उनसे सस्ते दाम पर बाजार में चाइना छाप वाले हंसुआ उपलब्ध हैं।

सुगन हजाम काहें पीछे रहें- उनके भी बेटे दिन रात नौकरी के लिए दौड़ रहे हैं..और उनके देशी मसाज और हेयर स्टाईल की जगह शहर में जावेद हबीब छाप डिग्री धारी हेयर ड्रेसर करोड़ों कमा रहे हैं.इधर सिकंदरपुर में जहां गुलाब की जबरदस्त खेती होती थी.वो वीरान पड़ गयी..उसकी जगह डीयो ने ले लिया..हनुमानगंज में सिंहोरा बनता था..आज वो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा..कारण लागत ज्यादा मुनाफा कम..

चीनी मिल जैसी ही बन्द हुई..और दो साल आलू में जैसे ही घाटा हुआ.राय साहब खेती अधिया और लगान पर देकर बड़े लड़के को लुधियाना भेज दिए ताकि छोटका को इंजीनियर बनाया जाए।

अब गाँव में जिसके पास पैसा है.वो और पैसा वाला हो गया.जिसके पास नहीं है..वो और कंगाल होता चला गया।

इधर दस सालों में समाजवाद की किरपा से नकल इतना जमकर हुआ कि जो पांच पास नही हो सकते थे वो इंटर में अस्सी प्रतिशत से पास हो गए.देखते ही देखते अकेले गाजीपुर में बीटीसी के तीन सौ प्राइवेट कालेज खुल गए..दो लाख दीजिये घर बैठे बीटीसी करिये..हर साल लाखों बीटीसी..अलग बात की टेट में 14% ही पास होते हों।

वही हाल हुआ नोएडा, गाजियाबाद में.गली-गली इंजीनियरिंग कालेज..एक एडमिशन पर लैपटॉप फ़्री..आइये-आइये बीटेक करिये..लाखों बीटेक..

अब भइया- पढ़ाई हो गई पूरी.एक भी सरकारी भर्ती ऐसी न हुई जिसकी कॉपी को सुप्रीम कोर्ट-हाई कोर्ट ने चेक न किया हो..देश में 2g जीजा जी तो खूब हुए लेकिन करोड़ों रिक्त पदों पर भर्तियां न हुई..

कुछ ही साल में इतने लोग बीए,बीएड, नेट,पीएचडी,बीटेक,एमबीए हो गए कि सबका हाल कौड़ी के तीन हो गया…हर साल प्रशिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ती गई..अब जो प्रतिभाशाली और मेहनती हैं..उन्होंने तो अपनी जगह बना ली..लेकिन बाकी का क्या होगा?

इस तरह से सरकारी नौकरी के चक्कर में जो खानदानी स्वरोजगार थे वो भी चौपट हो गए..और बेरोजगारी की फौज विकराल समुद्र का रूप लेती गई..

आज जनता कह रही..हम बीएड किये हैं..मास्टर बनाओ..हम बीटेक किए इंजीनियर बनाओ..हम पीएचडी किये प्रोफेसर बनेंगे।

मोदी कह रहे- स्वरोजगार करो वत्स..कुछ नहीं करना एक पकौड़े की दुकान खोल लो..

जनता कह रही- ए मोदी जी.. बीएड करके पकौड़े बेचो.. बीटेक करके खेती करो,एमबीए करके संगीतकार बन जाओ.यही चाहते हैं आप ? तो आपने डिप्लोमा इन पकौड़ा मैनेजमेंट करवाया होता.. बीटीसी काहें..करवाया हमको मास्टर ही बनना है..उहो सरकारी.

मित्रों- यहां जनता भी सही है..और नरेंद्र मोदी का उद्देश्य भी..बस चूक यहां हो रही है कि डिमांड और सप्लाई के सूत्र एक दूसरे से मैच ही नहीं कर रहे हैं।

मोदी जी गणित के नाम पर बीजगणित के सूत्र से रेखा गणित हल करना चाहते हैं..वो सोच रहे हैं कि खेत तो एक ही किस्म का होता है,जब गुजरात के खेतों में पैसे पैदा हो सकता है तो यूपी-बिहार में क्यों नहीं ?

वो बिना लोगों की मानसिकता समझे पूर्वांचल में गुजरात मॉडल लागू करना चाहते हैं..वो सबको बिजनेस मैन बना देना चाहते हैं..आपने बीटेक किया है और आप बेरोजगार हो तो निराश होने की जरुरत नही है..

आप मुद्रा योजना से लोन ले और कोई अपना इंजीनियरिंग का वर्कशाप शुरू करे..कोई अपना प्रोडक्ट बेचे..और उसके बाद अपने ही जैसे और दो-चार इंजीनियरिंग वालों को नौकरी दें।

आपने एमबीए किया नौकरी नही मिल रहा..कोई बात नहीं आप मुद्रा योजना से लोन ले,स्टार्ट अप इंडिया में रजिस्टर हो जाए और अपनी कम्पनी बनाए,स्वयं एमडी और सीईओ बन जाए।और जोड़ ले तमाम लोगों को। इस तरह तो रोजगार की एक चेन बन जाएगी।

अच्छा आप मास्टर साहब हैं..आपने बीएड टेट पीएचडी किया.. नौकरी नहीं मिल रही..लोन ले और शहर में एक फर्स्ट क्लास कोचिंग खोल दें..

मुखर्जीनगर में दृष्टि कोचिंग के डॉ विकास दिव्यकिर्ती से आपका छायावाद तनिक भी पतला नहीं होगा..और आप देखते ही देखते करोड़पति नहीं तो लाख पति तो हो ही जांएगे..और अपने जैसे पचास मास्टरों को बना देंगे। बस मामला यही फंस रहा है..

मामला सरकारी नौकरी बनाम रोजगार,बनाम स्वरोजगार में है..

अब देखिये दोष न योजना में है न लोगों की अपेक्षा में न मोदी के विजन में।

दोष सिस्टम को बिना सुधारे,लोगों की मानसिकता को बिना समझे.अपनी उम्मीदों को थोपने में है.न ही बेरोजगारी का सम्पूर्ण इलाज रिक्त पदों की भर्ती है..न ही इसे खत्म करने या खाली छोड़ देने में है..जिस देश के अकेले यूपी बोर्ड से हर साल 30 लाख से ज्यादा लोग बारह पास करते हैं..वहाँ बस रिक्त पदों की भर्ती से बेरोजगारी समाप्त हो जाएगी..बिल्कुल नहीं..एक साल फिर एक विकराल भीड़ खड़ी हो जाएगी।

फिर समाधान कैसे होगा..?

आज सबसे पहले जरूरत है..लोगों के अवचतेन में घुसे उस कीड़े को निकालने की जहां सफलता का मतलब बस सरकारी नौकरी होता है।

इसके लिए सबसे पहले ग्राउंड लेवल से काम करना होगा..पूरे देश में शिक्षण-प्रशिक्षण की एक स्टैंडर्ड व्यवस्था बनानी पड़ेगी..हर साल सरकारी रिक्त पद भरे जाएं..और ऐसी पारदर्शी व्यवस्था बने जहां योग्य के साथ ईमानदार लोगों का चयन किया जाए।

अलग से स्किल डेवलपमेंट और कौशल विकास केंद्र क्यों हों..हर कालेज में क्यो न खोल दिया जाए.कालेज में ही मुद्रा लोन लेकर बिजनेस करने की व्यवस्था क्यों न शुरू की जाए.ताकि जिसे रुचि हो वो बारहवीं के बाद ही अपना स्टार्टअप शुरू कर सके।

बीएड बीटीसी के सामने स्टीव जॉब्स,बिल गेट्स,वारेन बफेट और अम्बानी का उदाहरण नहीं,बल्कि इनकी कहानी आठवी,नौवीं में ही बता दिया जाए..ताकि जिनको आन्तरप्रन्योरसिप करना है.वो उसी समय अपना रास्ता चुन सकें।

एक ऐसा स्वस्थ माहौल बने..जहां बीएड करके पकौड़े बेचने की जरूरत नही पड़े..ऐसा हो कि दसवीं में ही बच्चे का स्कूल और उसका गार्जियन ही तय करे कि तुम बेटा पकौड़े बेचना चाहते हो..तो जाओ उस स्टार्टअप और मुद्रा लोन वाले क्लास में..वहाँ स्क्रीन पर हल्दी राम और मैकडोनाल्ड के सीईओ नमकिन बेचना सीखा रहें हैं।

तुम मोहन सेठ के लड़के राहुल हो…तुमको बीटेक करके सरकारी नौकरी का इंतजार करने की जरूरत नहीं- तुम अपने बाप के आटे वाला बिजनेस सम्भालो

बारहवीं के बाद ही मोदी जी गाँव-गाँव आटे के सफल उद्योगपतियों को भेज रहे हैं,लोन देने वाले बैंक को भेज रहें हैं..वो सबको समझाएंगे की नई से नई टेक्नोलॉजी से उनका आटा जनपद की एक पहचान कैसे बन सकता है..और कैसे हजारों लोगों को रोजगार दे सकता है.

स्टार्टअप की आवश्यकता किसी बीटीसी वाले से ज्यादा कालेज में पढ़ने गए उस बुधई चमार के लड़के को है..ताकि उनका बेटा बीए पास करते-करते चमड़े के जूते का ऐसा शो रूम खोल ले..जिससका जूता बाटा से जरा भी कम न हो,ताकि एक दिन बुधई जैसे लाखों चमार एसी गाड़ी में घूम सकें।

जो हरखू बसफोर बांस की डाली बनाता है.उसके बच्चे को ऐसी नई टेक्नोलॉजी के साथ कैसे प्रशिक्षित किया जाए..की उसके बांस की डाली विदेशी बाजारों में बिक सके..और हरखू जिनका समूचा जीवन किसी राय साहब पण्डि जी के खेतों में गेंहू की बाल बीनते गुजर गया वो.बिजनेस क्लास में ऐसे सफर करें कि राय साहब और पण्डि जी सोचने लग जाएं कि क्या से क्या हो गया।

इस मुद्रा योजना की जरूरत सिकन्दरपुर के गुलाब की खेती वाले बिजनेस को है..ताकि उनका इत्र पूरी दुनिया मे छा जाए..खेती को नए तरिके से राय साहब के लड़के कैसे करें..इस पर तभी बात हो जब वो बारहवीं पास कर ले…पीएचडी करके खेती मत करवाईये सर..

दसवीं बाद ही ट्रेनिंग नन्हकू हजाम के लड़के को देनी है कि वो एक दिन जावेद हबीब का नाना बन सके..

इस तरह- हमारा एजकेशन सिस्टम एक प्रतिस्पर्धा पैदा करे ताकि हम एक दिन दुनिया के श्रेष्ठ सीईओ से लेकर दुनिया के श्रेष्ठ अध्यापक,इंजीनियर,श्रेष्ठ डॉक्टर,बढ़ई,मोची,और चपरासी तक पैदा कर सकें.
हम दुनिया को श्रेष्ठ ह्यूमन रिसोर्स सप्लाई कर सकें।

लेकिन यहां लोगों की सोच और सरकार के क्रियान्वयन दोनों में गड़बड़ी है.

अफसोस -थोड़ा-थोड़ा दोनों को बदलने की जरूरत थी..लोगों को भी समझना चाहिए था कि सफलता का मतलब सरकारी नौकरी नहीं होता..

और इस सरकार को भी सबसे पहले स्मार्ट सिटी पर नहीं स्मार्ट सिटीजन पर काम करना चाहिए था..सिटी तो अपने आप स्मार्ट हो जाएगी…आदर्श ग्राम नहीं सर- पहले आदर्श ग्रामीण बनाना चाहिए था.. गाँव तो अपने आप आदर्श हो जाएगा..

जरूरत पहले नींव को मजबूत करने की थी..लोगों की सोच कैसे बदले इस पर रिसर्च करने की थी..जब तक लोगों की मानसिकता और सिस्टम की पारदर्शिता सही नहीं होती तब तक न्यू इंडिया और स्टार्टअप की कल्पना वैसे ही है..जैसे माटी की नींव पर कोई बहुमंजिला इमारत ।

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