बात बहुत साल पहले की है… तब कलाबाज़ी नहीं कलाकारी का दौर था..कहतें हैं तब भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर की लोकप्रियता आसमान छू रही थी…बलिया से बंगाल तक और गुवाहाटी से गोपालगंज तक वो जिधर जाते उधर के लोग ऊँगली पर दिन गिनना शुरू कर देते थे…उस दिन बिहार के हथुआ स्टेट का भी वही हाल था…क्योंकि उस सांझ भिखारी अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले थे…सो दूर-दूर से लोग लाठी लिए चले आ रहे थे.. बच्चे-बूढ़े,औरत-मर्द सभी के चेहरे की उमंग देखने लायक थी।
सांझ को मंच सजा..नाटक शुरू हुआ..राजा-रानी,दरबारी-सेवक ,और दूर-दूर की जनता नाटक देखने में तल्लीन हो गयी…कहतें हैं तभी एक दृश्य में एक लबार यानी जोकर आया…और मंच पर उपस्थित अपने सहयोगी कलाकार को चिढ़ाते हुये कहा…
“ढेर कूदबे तs हथुआ महराज के दरबार में दू दिन रखs देबs.. सही हो जइबेs”
कहतें हैं इस सम्वाद के बाद तो जनता ताली पीटने लगी…लोग खड़े होकर भिखारी का अभिवादन करने लगे…कुछ को भिखारी के कुशलता की चिंता सताने लगी….क्योंकि इस सम्वाद के बाद देखते-ही-देखते वहां उपस्थित राजा-रानी और उनके चारणों का चेहरा गुस्से से भर गया…
आपको पता है क्यों…?
क्योंकि भिखारी ने इस व्यंग के माध्यम से राजा पर बड़ी गहरी चोट कर दी थी..
बहुत समय तक हथुआ के राजा अपने नौकरों से सख्त व्यवहार करने और शोषण करने के लिए कुख्यात थे..
कहतें हैं भिखारी की इस चोट के बाद बाद तो राजा का हृदय परिवर्तन ही हो गया..
आज ये बात यूँ ही नहीं याद आ रही..भिखारी सिर्फ एक महान लेखक नाटककार,अभिनेता,कवि और संत नहीं थे.बल्कि वो एक समाज सुधारक भी थे…
मैं इस घटना के आलोक में भिखारी की महानता की ऊंचाई नापना नहीं चाहता…न ही भिखारी के व्यक्तित्व से अन्याय करने के लिए हिंदी के मार्क्सवादी आलोचकों को कोसना चाहता हूँ…मैं बस पाकिस्तानी कलाकारों को बताना चाहता चाहता हूँ कि एक कलाकार की जिम्मेदारी सिर्फ गाने-बजाने और मनोरंजन करने की नहीं होती..बल्कि गाने-बजाने के सिवा मनुष्यता के प्रति उसकी जबाबदेही भी होती है…
आज सवाल ये नहीं कि हिन्दुस्तान में आपको गाना-बजाना चाहिए या नहीं..सवाल ये है कि अपनी ज़मीर को ज़िंदा करके आपको अपने हुक्मरानों से ये पूछना चाहिए की नहीं कि “भाई उसी भारत के कारण आज हमारी रोजी-रोटी चल रही है….वरना पाकिस्तान में तो खाने के लाले पड़ जाते…”नवाज और राहील शरीफ को समझाना चाहिए कि नहीं कि “आज इसलिये हम आराम से हिन्दुस्तान में कमा-खा के चैन की बंशी बजा रहे हैं,क्योंकि हिन्दुस्तान का कोई हन्मन्थप्पा तीस फिट बर्फ में हफ्तों तक हमारी रक्षा के लिए दबा रहता है..हमारी रक्षा के लिए बलिया यूपी का कोई गरीब राजेश यादव आतंकवादी हमके में मरने के पहले माँ से बात करते वक्त रो देता है कि…”माई रे लागत बाs अब हमरा से बात ना हो पाई”
क्यों रो देता है..इसलिये की हम हिन्दुस्तान में आराम से निर्भय होकर गा-बजा सकें….
हमारा देश में तो ठिकाना नहीं की कब कहाँ कोई जिहादी खुद को बम से उड़ा दे….
आज सिर्फ हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानी ही हैं जिसके कारण हमारे संगीत का अस्तित्व ज़िंदा है..”
कि एक समय जब पाकिस्तान में मेंहदी हसन समुचित इलाज के अभाव में आखिरी साँस गिनते हैं..तो यहाँ किसी लता मंगेशकर को कष्ट होता है..और वो अपने ओर से मुफ़्त इलाज करने की घोषणा करतीं हैं..
आज पाकिस्तानी संगीतकारों को जो शोहरत और सम्मान हिन्दुस्तान की जनता ने दिया है..वो दुनिया के किसी कोने में मिलना मुश्किल है..”
क्या सारे पाकिस्तानी कलाकार मिलकर पाकिस्तान पोषित आतंकवाद के खिलाफ एक संयुक्त मूवमेंट चलाएंगे ? कोई मिल-जुलकर कन्सर्ट,कोई एल्बम या शहीदों की विधवाओं के लिए कोई चैरिटी शो करेंगे.?.क्या जिस देश के सैनिकों के कारण वो आराम से यहाँ रह रहें हैं..उनका जरा सा ये ऋण चुकाएंगे..?क्या मनुष्यता के पक्ष में पूछेंगे अपनी सेना और सरकार से, कि अपना देश आतंक की सप्लाई बन्द क्यों नहीं करता….आज आतंकवाद के कारण हमें दुनिया के हर एयरपोर्ट पे नंगा करके जलील किया जाता है..और-तो-और हमारी समूची कौम आज दुनिया भर में संदेह की दृष्टी से देखी जा रही है..”
अगर आप नही पूछेंगे तो मैं मान लूंगा कि आप सिर्फ दो कौड़ी के एक कलाबाज हैं..
क्योंकि ARTIST समाज और मनुष्यता की आवाज होता है..वरना वो भँड़ैत होता है..
स्रोत- Atul Kumar Rai
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