पहले मैगी बैन की चर्चा अब पोर्न पर संकट.अरे लौंडे क्या बादाम खाकर पढ़ाई करेंगे.?..ये चर्चा उस दिन बनारस के आईआईएन छाप लवण्डई अखाड़ों में चली तो सबके चेहरे पर एक मायूसी थी…सिगरेट जलाकर बब्बल बाबू बोले.”कोई बात नहीं गुरु.300 जीबी रखें हैं.साला पक्का महाल में एक दोकान खोल देंगे” इसके बाद उठे टेबल तोड़ ठहाको में भी हम खामोश रहे। उस दिन बलिया जिला के बेयासी ढाला पर समाजवादी लैपटाप पाकर डाउनलोडिंग करने वाला मन्टुआ खूब खुश था.अब हउ वाला फिलिम डाउनलोड करे खातिर सबसे दस की जगह तीस रुपिया लेगा…कमाई चौचक..तब भी हम खामोश थे।
गाँव भर के लौंडे परेशान थे कि “अकलेस भाई द्वारा दिहल गया लैपटाप का अँचार डाल दिया जाए या बेचकर मकई का बिया खरीद लिया जाये”.ई अब किसी काम का नहीं रहा.तबो हम चुप रहे।
फेसबुक पर सरकार को बधाई देने वाले वो बुद्धिजीवी जो बीबी के “ना आज मूड नहीं” कहने पर भी आर्गेज्म फील करने से नहीं चूकते वो भी नैतिकता के दिव्य परवचन का रायता फैला दिए थे…तब भी लगा चुप रहना चाहिए , बड़े लोग हैं।
रात को सनी लियोनी जी के ‘आह’ को पापकार्न के साथ महसूस करने वाले महेश दिनेश,सुरेश,रमेश का पोर्न बैन के समर्थन में खड़े होने पर भी हम चुप्पी साधे रहे क्योकि चुप रहना उचित जान पड़ा।कई अश्लीलता के समझदारों ने सेक्स और पोर्न पर ऐसी बहस की, मानों इनके माई-बाबूजी इन्हें जनम नहीं देकर डाइरेक्ट फ्लिपकार्ट से मंगाए हैं…तो भी लगा चुप रहना ही ठीक है।
फिर एक दिन बैन हटा और आईआईएन सर्टिफाइड लौंडों ने बधाई सन्देश प्रेषित करना शुरू किया कि जश्नस्वरूप रात को एक-एक देखकर ही बाथरूम जाया जाये.तब भी लगा चुप रहो अतुल। क्योकि हम न बैन के समर्थन में हैं,न खुलेआम दिखाए जाने के.इतना तो पता है की दोनों के अपने खतरें हैं.
आज बार बार लगा कि अतुल बाबू बोलिये चुप न रहा करिये.माना कि सेक्स जैसे निन्दित-घृणित विषय पर अपनी बात रखने की योग्यता नहीं है आपके पास.लोग आपसे जन्मकुंडली मांग सकतें हैं.आपकी प्रोफाइल पिक्चर जूम करके इनबॉक्स में भी आ सकतें हैं..वही पारम्परिक सवाल लेकर “आप अभी इतना कैसे जानते हैं? इसके बावजूद लगा कि बाबा मुक्तिबोध की कसम..अभिव्यक्ति के खतरे उठाने ही होंगे.
हम जानतें हैं कि भारत में सेक्स शब्द रेलवे स्टेशन की वो दीवाल है जहाँ लिखा होता है ‘यहाँ पेशाब करना मना है’.और लोग पेशाब कर-कर के उसके नीव की आखिरी ईंट को बता देते हैं कि हम मूतेंगे बेटा.
यही तो आज तक हुआ है जितनी बार लोगों ने लिखा कि देखना मना है उतनी बार लोगों ने देख-देख कर नैतिकता की दीवाल हिला दी और प्रवचन कर्ता प्रवचन करते रहे…जो आज तक बेअसर है। ये प्रवचन कर्ता कब स्वीकार करेंगे कि सेक्स मनुष्य का स्वभाव है.प्रेम,वात्सल्य,भूख,प्यास, ईर्ष्या,द्वेष की तरह…इस पर जब जब पाबन्दी होगी ये कालिया नाग के फण की तरह विकराल रूप धारण कर लेगा। क्योकि सहज मनोविज्ञान है कि डाक्टर चावल खाने को मना कर दे तो बार बार मन करता है चावल खाने का.आज तक जितना मना किया गया आदमी उतना आकृष्ट हुआ और उतना आदमी का चित्त विकृत होता गया.
महान मनोवैज्ञानिक फ्रायड ने कहा की “मनुष्य सबसे ज्यादा काम का चिंतन करता है”.फ्रायड कहके मर गए , उन्होने पता लगाने की कोशिश ही न क़ी कि आदमी आखिर क्यों ऐसा सोचता है.अरे! दमन विकृति लाता है…स्वाभाविक है जो चीज दबाई जायेगी वो फैलेगी.बस इसी दमन को बाजारवाद ने आज भुनाकर पोर्न का साम्राज्य खड़ा किया…तमाम फिल्मकारों, लेखकों मस्तरामों ने इसी फंडे को अपनाकर धंधा मन्दा नहीं होने दिया.
आज भी कला साहित्य के नाम पर हिट होने का सबसे आसान फंडा सेक्स के नाम पर लोगों की दमित कामुकता को भुनाना है.तभी तो आज टीवी पर चॉकलेट और मजनू छाप स्प्रे भी ऐसे बेचते हैं मानों कंडोम बेच रहें हों.कुछ दिन में चावल-दाल-आटा भी इसी बॉडी स्प्रे के अंदाज में बेचेंगे तो आश्चर्य न करियेगा। बाथरूम साफ़ करने वाला पाउडर भी जब तक कोई माडल अपना अंग विशेष चमकाकर ये न कहे – “ये सबसे अच्छा है” तब तक लोगों को विश्वास नहीं होता.
बैन और समर्थन किसी समस्या का कभी हल नही हो सकता.इंटरनेट मुश्किल से कुछ सालों से है उसके सैकड़ों साल पहले भी पोर्न का विकल्प और उसके अनुपात में अपराध मौजूद था।आज तमाम इस्लामी देशों में जहाँ परदे में स्त्रियां पत्थर हो जाती हैं.जहाँ तमाम इंटरनेट पर सेंसर है वहां की स्त्री आज योनि और स्तन से ज्यादा कुछ नहीं,हालात इतने भयावह हैं जिसकी कल्पना करके रूह कांप जाती है,उसके लिए कौन सा पोर्न जिम्मेदार है ?
हमें तीसरे विकल्प पर विचार करना होगा..आखिर आदमी सेक्स न करे तो क्या करे ? इस पर विचार इसका हल और काम की ऊर्जा का सकारात्मक रूपांतरण भी हमारी आध्यात्मिक विरासत में मौजूद है.पर जोर आज तक बहुत कम लोगों ने दिया.बस कुछ ओशो जैसे महान दुस्साहसी विचारकों ने ही किया है..अफ़सोस कि उन्हें भी गलत समझा गया.उनको बिना पढ़े लोगों ने ‘सेक्स गुरु’ कह डाला.उनका व्यक्तिगत जीवन कैसा रहा ये विषयांतर होगा.लेकिन सेक्स को लेकर जो उन्होंने अद्भुत दृष्टि दी है वो अनमोल और दुर्लभ है.
मैं तो कहता हूँ हर व्यक्ति को एक बार “सम्भोग से समाधि की ओर” अवश्य पढ़ना चाहिए. क्योकि काम के सम्बन्ध में हमारा मस्तरामीय ज्ञान हमें पागल बना रहा है.अब इसकी आध्यात्मिकता और पवित्रता और इसकी शक्ति को स्वीकार करने का समय है.ओशो कहते हैं “आदमी ने चाँद पर जाने की तरकीब तो निकाल ली.लेकिन उसे आजतक पता नहीं चला की बुद्ध ,महावीर,विवेकानंद कैसे पैदा हुए.और कैसे हिटलर,तैमूरलंग पैदा हो गये”?
जिस दिन आदमी अनुसन्धान करेगा उस दिन पायेगा कि उस रात जब बुद्ध के माँ बाप मिले थे तब वो प्रेम और स्नेह की असीम शक्ति से मिले थे..उन्होंने सेक्स को सेक्स नहीं श्रद्धा से पूजा समझा था…तभी करुणा की मूर्ति बुद्ध पैदा हुए।कहीं उसी रात को हिटलर तैमूर के माँ बाप भी मिले होंगे..तब वो सम्भोग नफरत,घृणा और मनोरंजन के उद्देश्य से ही हुआ होगा।आज हिटलर ,तैमूर मौत के पर्याय हैं। जब पहला अणु ही प्रेम से वंचित रहा ,उनके माँ बाप ही नफरत घृणा और द्वेष से भरे रहे तो कैसे हम उम्मीद करें कि जो सन्तान होगी वो बुद्ध होगी वो जवान होने के बाद नैतिकता के प्रवचन सुनेगी.वो आगजनी,लूट,बलात्कार करने वाली और आतंकवादी नही होगी ?
मुझे भी लगता है कहीं गहरे में हम चूक रहें हैं.मैं फिर से कह रहा हूँ कि हम जड़ों की ओर नहीं लौटे तो न बैन करने से समस्या का हल होगा न समर्थन करने से..आप सन्तान को ऐसे संस्कार दीजिये जिससे उसमें विवेक पैदा हो.बेशक मना करिये की तुम पोर्न मत देखो…पर ये भी तो बताइये की वो क्या करे.?
उसे इतनी समझ हो कि आनंदित केवल सेक्स से ही नही हुआ जा सकता.ये तो क्षणिक सुख है…तुम शाश्वत की तरफ बढ़ो.उससे इंटरनेट का माउस मत छीनिये बल्कि उसके हाथ में एक बांसुरी दीजिये..कहिये इसे बजाये…इसमें बड़ा रस है।.मस्तराम , की किताब मत छीनिये बल्कि उसे कहिये प्रेमचन्द को भी पढ़ो.
वो पढ़कर एक कविता लिखे..कभी एक पेड़ लगाये और रोज पानी दे..एंग्री बर्ड दिन भर खेले लेकिन किसी चिड़िया को दाना भी खिलाये कभी.जैकी चैन की फिल्में देखे पर किसी अंधे को भी सड़क पार कराये.हनी सिंह को सुने पर ये भी तो जाने कि पण्डित शिव कुमार शर्मा क्या बजाते हैं.बेशक फेसबुक चलाये पर सुबह उठकर ध्यान,योग और प्रणायाम करना न भूले.
उसे सृजनशील बनाइये ताकि संवेदनशील हो सके.उसे पता चले कि स्त्री केवल स्तन-योनि नही है.वो प्रेम की मूर्ति है.तभी कुछ हो पायेगा बंधु।गर थोड़ा सा भी चेतना का स्तर ऊपर हुआ तो आदमी इस क्षणिक और छद्म सुख से ऊपर वो बुद्ध हो जाता है जिसके प्रेम में पागल होकर वैशाली की नगर वधू आम्रपाली चरणों में लोटने लगती है.जिस आम्रपाली के सौंदर्य में पूरा वैशाली गणराज्य सम्मोहित है..वो आम्रपाली उस चेतना के शिखर के
सामने हार मानती है और समस्त वैभव को त्याग कर सर मुड़ाकर अंतस की खोज में निकलती है। कहीं सुदूर विवेकानंद के तेज से प्रभावित होकर वो अंग्रेजी बाला भी ब्याह के मोह पाश में बन्ध जाती है वो चाहती है विवेकानंद को पाना.लेकिन उस विवेकानंद में ऐसा क्या होता है कि उस दिव्यता आगे दण्डवत होकर उसे सिस्टर निवेदिता हो जाना पड़ता है.सोचना होगा.