राधा कृष्ण तब ज्यादा सुंदर दिखतें हैं जब फैसलाबाद पाकिस्तान में पैदा हुआ कोई नुशरत फतेह अली खान तार सप्तक के धैवत पर जाकर गाता है…
“जबसे राधा श्याम के नैन हुये हैं चार
श्याम बनें हैं राधिका और राधा बन गई श्याम”
भगवान भोले नाथ की स्तुति तब और ज्यादा सुंदर लगती है जब गुजरात के उस्मान मीर साब
से “नमामि शमीशां….सुनकर राम कथा के मर्मज्ञ पूज्य सन्त मुरारी बापू रोने लगते हैं।
यहीं नहीं..बनारस में आरती के समय शाम को गंगा और सुंदर लगती है जब जयपुर में पैदा हुए उस्ताद
उ
अहमद हुसैन मुहम्मद हुसैन एक स्वर में गाते हैं… “जय सरस्वती वर दे महारानी….”
या 8 अप्रैल 2015 को पाकिस्तान से पधारे ग़ज़ल के पर्याय गुलाम अली साब गोस्वामी तुलसी दास जी के हाथों स्थापित बाबा संकटमोचन के दर
बार में
अकबर इलाहाबादी की कालजयी ग़ज़ल गाते हैं..
“बुत हमको कहे काफ़िर अल्लाह की मर्जी है”
तब सुनने वालों में रोमांच की लहर दौड़ने लगती है…..
अगले दिन उसी दरबार में सब खामोश हो जातें हैं जब दिल्ली घराना से अपने पिता और पुत्र के साथ पधारे तबला वादक उस्ताद अकरम
खान साहब
अपना तबला वादन रोककर बाबा के सामने हाथ जोड़ लेते है की “बाबा की आरती हो जाए तब शुरू करता हूँ…”
कहीं कार्तिक में पंचगंगा घाट पर उस्ताद अमजद अली खान सरोद से निकली “रघुपति राघव राजा राम. ” की धुन जब गंगा से टकराती है तो गंगा की लहरेंऔर मचलनें लगती हैं…
जरा पीछे चलें तो हम 15 अगस्त 1947 को लालकिले से उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई की धुन में ही आजादी की पहली सांस लेते हैं.
और जरा हम भारतीय संगीत का इतिहास उठाकर देखें तो वो नाम ही ज्यादा दिखेंगे जिनके अंत में खान और हुसैन लगा है….वो चाहें सेनिया घराने के प्रथम सितार वादक तानसेन के पुत्र रहीम सेन रहे हों या मैहर घराने के उस्ताद अलाउद्दीन खान साहब….
या इमदादखानी घराने के उस्ताद विलायत खान साहब हों..तबला के छह घरानों दिल्ली,पंजाब,बनारस, लखनऊ,अजराड़ा,फरुखाबाद में बनारस को छोड़कर सबके संस्थापक मुस्लिम कलाकार रहें हैं……बनारस घराना भी लखनऊ के उस्ताद मोदू खान साहब की देन है,
जब उन्होंने इसके संस्थापक पण्डित राम सहाय जी को पुत्र मानकर तबला सिखाया तब लखनऊ के मुल्ला जी लोग उस्ताद से बगावत कर दिए की आप एक पण्डित के पुत्र को गंडा बांधकर नहीं सीखा सकते लेकिन धन्य हैं वो उस्ताद।
ख्याल गायन के घरानों की चर्चा करेंगे तो ग्वालियर घराना के संस्थापक नत्थन पीर बख्श और मोहम्मद खान साहब थे…
आगरा घराना जिसने भारतीय संगीत जगत को अनमोल हिरे दिये हैं उसकी शुरुवात ही उस्ताद सुजान खान साहब से हुई थी….
दिल्ली घराना जो तान लेने की विचित्र पद्धतियों वे कारण प्रसिद्ध है उसके भी संस्थापक उस्ताद तानरस खान रहें हैं..
भारत रत्न पण्डित भीमसेन जोशी के किराना घराने के संस्थापक भले वाजिद अली रहे हो पर इसकी लोकप्रियता में चार चाँद लगाने का गौरव उस्ताद अब्दुल करिम खान साहब को प्राप्त है..
उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साब के पटियाला घराना जाएँ या किशोरी अमोनकर जी के जयपुर घराना सब जगह मुस्लिम कलाकारों ने अपना अतुलनीय योगदान दिया है।
अपने अस्तित्व की लड़ाई में विजयी हो रही ध्रुपद गायन शैली के डागुरबानी में डागर बन्धुओं
की सातवीं पीढ़ी
भी आज माँ शारदे की सेवा कर रही है।
यहां मजहब के ठीकेदारों का जोर नहीं चला..
वरना हिन्दू कलाकार सिर्फ मन्दिर में गाते और मुस्लिम कलाकार मजहबी जलसों में….
ये महज थोड़े उदाहरण हैं,
लेकिन सोचने पर अजीब लगता है और गर्व मिश्रित हर्ष की अनुभूति होती है कि शुक्र है कलाकारों ने अभी अपना मजहब घोषित नहीं किया..
सेक्युलरिज्म क्या है कोई किसी नेता से नहीं कलाकारों से सिख सकता है..जिन्होंने आज तक संगीत को ही अपना धर्म समझा है।आज आइएस और बोकोहराम का वस चले तो उस्ताद नुसरत फतेह अली खान को जान से मार दे और अहमद हुसैन मुहम्मद हुसैन का घर जला दे या गुलाम अली साब की हत्या कर दे।
या मुल्ला जी लोगों का वस चले तो उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब की मजार पर “हिंदुओं का प्रवेश वर्जित लिख दे…”
लेकिन वन्दनीय हैं ये संगीतकार जिन्होंने इस घोर संकट के समय में भी समाज को एक सूत्र में बाँधने का काम किया है…जिन्होंने अपने देश और संस्कृति और विरासत को पूरी दुनिया से रूबरू कराया है…और बता दिया है कि सिर्फ संगीत में ही वो ताकत है जो सबको जोड़ सकती है.
उनका देश और माटी से प्रेम देश का नमक खाकर विदेसी गुणगान करने वालों पर करारा तमाचा है.
1982 में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब से अमेरिका वालों ने पूछा था की आप यहीं रह जाते तो अच्छा होता…उस्ताद ने कहा की “मेरी काशी मेरी गंगा…वो बालाजी मन्दिर और दसास्वमेध घाट की सीढियाँ ला दो तो हम यहीं रह जाएँगे…” अमेरिकन खामोश हो गए थे।
आज उसी उस्ताद के साथ सभी कलाकारों का वन्दन है…
जिन्होंने धर्म ले ठीकेदारों की परवाह किये बिना संगीत से देश और माँ भारती की सेवा करते हुए पूरी दुनिया में अपनी सांगीतिक विरासत का डंका बजाया है…
और इन अल्लाह के नाम पर आतंक फैला रहे लोगों को उस्ताद नुशरत फतेह अली खान साब के शब्दों में बता दिया है..
“दिल में है ख्वाहिश ए हूर-ओ-जन्नत
और जाहिर में शौक-ए-इबादत
बस हमें शेख जी आप जैसे
अल्लाह वालों से अल्लाह बचाये।।