अस्सी की सांझ..बारिश के कारण सड़कों पर बने गड्ढों में भरा पानी स्मार्ट सिटी और क्योटो जैसे शब्दों को मुँह चिढ़ाता है तो एक बार मोदी जी से मन की बात करने का मन करने लगता है..
इधर जर्मनी- स्विट्जरलैंड के विलासिता पूर्ण जीवन को तिलांजलि देकर बनारसी गलियों की ख़ाक छान रही कोई क्रिस्टिना,धोती कुरता और माथे पर चन्दन का लेप लगाये शुक्ल यजुर्वेद कण्ठस्थ कर रहे किसी नौ वर्षीय बटुक को प्यार से कैमरे में कैद करती है तो न जाने क्यों अपनी वैदिक परम्परा पर गर्व होने लगता है…
इधर दिन भर गुर्जरी तोड़ी की तान तैयार करके थक गये कोई सासाराम के बबलू बाबू जब हॉस्टल में “छूइये के छोड़ दीं नहइले बानीं राजा जी” पर बनियान निकाल के डांस करते हैं तो न जाने क्यों हंसने का मन करने लगता है…..
इतना कुछ मन करने के अगले दिन डाक्टर साब नाना प्रकार की जांच रिपोर्ट को नाना प्रकार के एंगल से घूमाने के बाद एक गहरी साँस लेकर धीरे से कहते हैं…
“अतुल बाबू अब आप एकदम सही हो चूके हैं..
तनिक खाने-पीने पर ध्यान दिजिये…..”
फिर क्या…हम एक बंडल जांच रिपोर्ट को हाथ में किसी मानद डिग्री की तरह लटकाये मारवाड़ी सेवा संघ के चबूतरे पर पतंजलि का घी खरीद रहे होते हैं , तब तक एक अपरिचित मूर्ति से सामना होता है.
“अतुल कुमार राय न “?
हम सर झुका कर कहते हैं….”जी.. आप सर “
अरे! मैं दस मिनट से सोच रहा था कि आप ही हैं या नहीं…”
फिर आदरणीय चार नम्बर गेयर में स्टार्ट हो जाते हैं…
“आप कई दिन से कुछ लिख नहीं रहे..सब ठीक है न?…मैं यहाँ फलाना सिंह मलदहिया बैंक में हूँ..आपको पता नहीं मैं बैंक से आते ही आपकी साइट पर जाता हूँ..और सोते समय पत्नी को और सण्डे को बाबूजी को पढ़कर सुनाता हूँ…हमारे घर वाले आपके बड़े प्रशंसक हैं..
आपने पति-पत्नी के सम्बंधों पर एक पोस्ट लिखी थी…मैनें अपने साढ़ू और साढ़ूवाइन को wahts app किया था…आपने कलकत्ता जाने वाले खेदन की एक पोस्ट लिखी थी..बाबूजी पढ़कर न जाने कहाँ खो गये थे….
अरे ! आपकी वो पिंकिया..आपको पता नहीं मेरी पहली गर्लफ्रेंड का नाम भी पिंकी था..मैनें आपको रिक्वेस्ट भेजी..एक्सेप्टे नहीं किया आपने…लगा की आपकी लिस्ट फूल है..”
ओह! आदरणीय फलाना जी फिर पिंकिया का नाम स्मरण आते ही न जाने किस लोक में खो जातें हैं .और जवानी में हुई दुर्घटनाओं के एक दर्जन ऐसे खतरनाक क़िस्से सुनातें हैं कि एक झटके में मुझे मातादीन राय का ट्यूबेल याद आने लगता है..
फिर आदरणीय द्वारा आकाशवाणी के समाचार वाचक की तरह तारीफ़ के इतने लम्बे चौड़े पुल बांध जाते हैं कि मुझे जांच रिपोर्ट लेकर समझ में नहीं आता कि यहाँ से गिरूँगा तो पीजीआई में इलाज होगा या एम्स में….तब तक उनका फोन आता है..हम साथ में चाय पीते हैं..
और ये क्या.. देखते ही देखते अचानक से लगता है टाइफायड सही हो गया…सारा दुःख दूर हो गया.. खांसी बुखार की नानी मर गयी..सर्दी का इंतेक़ाल हो गया….
एक पल में लगता है अब तक का यहाँ सारा पढ़ना-लिखना सार्थक हो गया..
वो फोन नम्बर एक पर्ची पर लिखकर देते हैं..मुझे कई सलाह भी देते हैं..कई शिकायतें भी।
फिर दो दिन बाद वही होता है जो होता आया है…हमेशा की तरह एक दिन वो पर्ची, पैंट और साबुन के महामुकाबले में प्राण त्याग देती है…
तो हम माथा पकड़ के सोचतें हैं..”काश उस दिन मोबाइल हॉस्टल में न छोड़ा होता..”
उसके ठीक बिहान अपने बीएचयू के एक अति अनमोल क्रांतिकारी दिख जाते हैं…वही बेतरतीब दाढ़ी, लिवाइस की जीन्स पर फटा कुरता..हवाई चप्पल और सिगरेट..जैसे पारम्परिक आभूषण…
हम प्यार से पूछते हैं..”कॉमरेड कैंडील मार्च नहीं निकाले.?.आर्मी वालों को रेपिस्ट बताते हुये तो बड़ी भाषणबाजी करते हैं आप लोग…. कम से कम डफली बजाकर दो चार जन गीत ही गा दिए होते तो क्रान्ति की भेंट चढ़ गयी कॉमरेड पुष्पा की बलत्कृत रूह को जरा ठंडक मिलती….”
कॉमरेड दाढ़ी खुजाकार केजरीवाल की तरह हंसकर बात बदलते हुये कहतें हैं..
“पतंजलि का घी नकली है”
हम भी हंसकर पूछ बैठतें हैं…कॉमरेड ई बताओ मेरी कॉमरेड कथा असली थी की नहीं “?
तब तक चाय की दूकान में हंसी की सुनामी आ जाती है..
कॉमरेड शरमाते हैं…और बेशर्मी की अंगड़ाई लेकर बोल देते हैं…
“छोड़ मरदे…ई बताओ ये जियो का सिम कैसे मिलेगा..”?
हम चौंकते हैं..”अरे ! अम्बानी का सिम आप का करेंगे कॉमरेड..”?
कहने लगे “यार क्रान्ति को स्पीड देने की जरूरत है..
जेएनयू वाले नहीं समझते कि अब 4G के जमाने में कैम्पस से निकलने की जरूरत है..2G स्पीड से क्रान्ति नहीं हो सकती..”
हाय ! कॉमरेड उदास हैं..हम उनको सांत्वना देकर लाल सलाम करते हैं…
तब तक भादो की उमस में तपे हमारे संकाय के पुरातन छात्र और जवानी में बड़े-बड़े गायकों के छक्के छुड़ाने वाले सुर दास यानी मिठाई चचा दिख जाते हैं..जिनको आज किसी लौंडे ने शायद फिर मामा कह दिया है..वो उसे बेहिसाब गालियां देकर लौंडे के सात पुस्त की माँ और बहन से अपना सम्बन्ध स्थापित कर रहे हैं.
कहतें हैं अस्सी के ताज में दो ही तो नगीने हैं जिनके लिए मेरे दिल में भी अगाध श्रद्धा है..एक भोजपुरी के सुप्रसिद्ध कवि कुबेर नाथ मिश्र उर्फ़ विचित्र जी…दूसरे हमारे मिठाई चचा..
दोनों लोगों से दस मिनट बात करना कई दशकों से मिलने के बराबर है..
इधर रह-रह के अस्सी के कई साहित्यकारों से पूछता हूँ..”विचित्र जी अभी हैं न “?
कोई कुछ बताता नहीं तो न जाने क्यों बीमार दिल धक से बैठ जाता है..खुदा खैर करे…
इधर कमरे पर आते ही एक-एक किताबे चिढ़ातीं हैं.मन उड़ने को करता है..न जाने कितने अधूरे काम मेरी लापारवाही पर हंसते हैं..तो बार-बार दवाई खाते समय ख़ुद से ही झूठ बोलना पड़ता है “कि मैं बीमार था..”
न जाने क्यों बिस्तर पर लेटकर ये बोध होता है कि जीवन में बीमार होते रहना इसलिए जरूरी है ताकि इसी वजह से पता चलता रहे कि स्वस्थ होना भी क्या चीज है….
आप सभी मित्रों और शुभचिंतकों का अभिनंदन और प्रणाम करता हूँ..जिन्होंने फोन किया..मैसेज किया. हाल-चाल लिया।
राशन कार्ड की कसम…अब सक्रियता बनी रहेगी..उम्मीद है आप सब लोग ठीक होंगे.
फैज़ चचा याद आ रहे….
“रात यूँ दिल में तेरी खोई हुई याद आई
जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए
जैसे सहराओं में हौले से चले बाद-ए-नसीम
जैसे बीमार को बे-वज्ह करार आ जाए..”
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