एक दीया Indian Army के नाम हो..

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यूपी में पौने पांच साल तक तीन ठो सीएम  थे कि चार ठो हमारे मोहल्ले वाले पिंकूआ को इसकी कोई परवाह नहीं है…उसको तो इस बात कि चिंता  खाये जा रही कि उसकी एकमात्र ‘पटाखा’ इस बार दिवाली में घर आयेगी  या नोएडा में  बीटेक्स की पढ़ाई ही करेगी.. देखिये न  जले हुए फूलझड़ी जैसा उसका मुंह मुझसे देखा नही जाता..लग रहा है कि किसी ने Indian Army की तरह उसके दिल पर  सर्जिकल स्ट्राइक कर दिया है…
लेकिन वो भी क्या दिन थे जब पिंकूआ ने काली माई,डीह बाबा को प्रसाद चढ़ाकर हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद डरते-डरते   “आई लभ यू स्वीटी जी ” कहा था…

जबाब तो उधर से कुछ  नहीं आया… उल्टे मोहतरमा ने उसे फेसबुक पर भी ब्लाक कर दिया.!.
मोहल्ले के कुछ वरिष्ठ प्रेमी बताते  हैं कि तब दिल टूट के समाजवादी  पार्टी हो गया था उसका. केतना एन्जेल प्रिया टाइप फेक आईडी बनाकर रिक्वेस्ट भेजा.. बाकी सब ब्लॉक।

उसे समझे में नहीं आ रहा था कि वो इंजिनीयरिंग पढ़ने गयी है या दिल तोड़ने का कोई डिप्लोमा करने। मन से मोलायम जी की कसम बहुते रोया था…

 

देखिये न आज सुबह से उसी के ख्यालों में खोया है…आ जाती  एक बार तो कम से कम  देख तो लेता…अल्ताफ राजा और अगम कुमार निगम के सात पुश्तों की कसम.. बेवफा हुई तो क्या हुआ.?..पेयार तो आज तक उसके लिए दिल के इनबॉक्स में सेव है….. पता न छह महीना में केतना मोटाई और दुबराई है…बीटेक में एडमिसन से पहले केतना नीक लगती थी न..  देखते ही लगता था जैसे लंका वाले पहलवान ने अभी-अभी लौंगलता छानकर निकाल दिया है….
हाय.!..जबसे मोहल्ले से गई तबसे लौंडे विधवा हो गए।…उधर वो बीटेक्स करने लगी इधर मोहल्ले के कुछ लौंडे विद्यापीठ में नेता हो गये..कुछ रहनदार और शरीफ प्रेमी  भी थे.जो बेचारे आजकल Indian Army Join कर लिए हैं…

बचे-खुचे अभी समाजवाद में ठीकेदार बनकर सड़क बिगाड़ने का काम करने लगे हैं..।..
अब यही होली-दीवाली में आती है..सो सभी दिल जलों को  उसके छत पर दिया जलाने का इंतजार रहता है….स्वीटी का दिया जलने के बाद  लगता है कि आज दीवाली है। वरना स्वीटी के बिना मोहल्ले की दीवाली और मुहर्रम में कोई अंतर नहीं।
खैर छोड़िये महराज इ सब..देखिये न आज  हमारी खेदन बो भौजी मारे ख़ुशी के उछल-कूद रहीं हैं.. गोड़ उनका जमीने पर नहीं पड़ रहा है…कल ही से स्वच्छ घर अभियान जारी है…. घर-आँगन ,चौके- चूल्हे से  माटी की सोंधी-सोंधी खुश्बू आ रही है…गाय के गोबर से आँगन लीपा रहा है…सरसों तेल पेराकर आ गया..गोधन बाबा के लिए नये धान का चूड़ा कूटा रहा है ..एक अजीब सी सुगन्ध चारो ओर फैली  है..

आज भौजी का  परेम इतना न फफा रहा है कि ख़ुशी के मारे दो बार आँगन बुहार दिया है..कमबख्त इस whats app,फेसबुक के जमाने में भी छत पर कौआ काँव से बोल जाता है..और भौजी जब पल्लू सीधा करते हुये धीरे से मुस्करा देतीं हैं ,तब मुझे अपना वो  भोजपुरिया लोकगीत याद आता है,जिसमें बिरहन छत पर बैठे कौवे से कहती है.

“बेरी-बेरी तोसे पुछू कागाs काहें बोले अंगनवाs

साँच बतला द मोर सजनवा कब अइहें मोर भवनवा

“सोने से तोर ठोर मढ़वइबो आपन बेच कंगनवा..

अंगनवा कागा बोले रे………..

बिरहन कहती है  “बता दो कागा आज बलम जी आएंगे या नहीं.”?.कागा को लालच देती है  कि सच- सच बता दो.बता दोगे तो मैं अपना सोने का ये कंगन बेचकर तुम्हारे इस चोंच को सोने से मढ़वा दूंगी.

बुझाया ?! मने लोक में उच्चस्तर का साहित्य सिर्फ राजस्थानी लोकगीतों में ही नहीं होता साहेब… इस एक गीत पर तो सारा रीतिकाल न्यौछावर कर  देने का मन करता है मुझे।
खैर.. तभी तो खेदन बो भौजी भी कौवे से इसी अंदाज में बतीया रहीं हैं…पता है क्यों?….उ का है कि कल डेढ़ साल बाद उनके खेदन सिंग ‘बलमुआ’  पवन एक्सप्रेस से घर जो आ रहें हैं….उनके लिए नवेडा से  कंगन- हार-नथिया सब बनवाके ला रहे हैं।..
लिजिये इधर हमारे अकलू काका कुम्हार भी बड़ी ब्यस्त हैं.. जबसे चाईनीज सामान के खिलाफ देश में अभियान चल रहा है..तबसे इतना न डिमांड हो गया है कि आज पनरह दिन से  लगातार दीया ही बना रहें हैं..केतना खुश हैं इस बार हैं कि बताया नहीं जा सकता.

हर साल बेचारे बाजार से चाइनीज बत्ती बेचने वालों को गरियाकर चले आते थे….लेकिन इस बार तो भाव टाइट है चचा का…दीया बेचकर ददरी मेला नहाने जाएंगे और  गुरही जिलेबी के साथ गइया के लिए एक घँटी वाला पगहा खरीदेंगे..
मैं क्या करूँ…दो दिन से बुखार हो गया है..इस फेसबुक को  बार-बार देखता हूँ….देख रहा हर आदमी बुद्धिजीवी और चुनाव विश्लेषक हो गया है…अपने बेटे-बेटी का खबर न रखने वाले कामरेड फलाना यूपी का भविष्य बाँच रहें हैं….उनके साथ असली आम आदमी भी बहुत खुश हैं..मोदीया हारेगा अब..। उधर एक फलाने पत्रकार  सर्जिकल स्ट्राइक और indian Army  को झूठा साबित करने के लिए  अब तक छाती पर मूंग दल   रहे  हैं..

सोच रहा किस-किस पर तरस खाऊँ…उस पिंकूआ खेदन बो भौजी,अकलू काका या फेसबुक के इन घनघोर बुद्धिजीवीयों पर….
तरस आता है कभी-कभी..फेसबुक और राजनीतिक समर्थन और विरोध को ही दुनिया मान चूके लोग. शायद ये नहीं जानते कि पिंकूआ का इंतजार कितना प्यारा है….

खेदन बो भौजी की ख़ुशी किसी के जीत-हार पर  हजार गुना भारी है….अकलू काका के दिये में जल रही उम्मीद की लौ कितनी सुंदर है….

दिल से हूक उठती है….“अरे ! ये बहस बन्द करिये महराज…आप कुछ दिन में मानसिक बीमार हो जाएंगे..अब तो बाहर आ जाइये….दीपावली आ गया..हंसी-ख़ुशी से मनाइये….किसी गरीब कुम्हार से से दो चार दस दीया-बाती खरीद लिजिये….किसी बुजुर्ग रिक्शे वाले को दो-चार-दस रुपया अधिक दे दीजिये.. अपनी कामवाली,अपने धोबी,  अखबार वाले ,दूध वाले   से पूछिये कि उनकी दिवाली कैसे मनेगी…?                                  सोचिये कि उरी हमले में मारे गये indian Army के शहीदो के घर इस बार दीवाली कैसे  मनेगी..क्या हम-आप एक दिया उनकी याद में नही जला सकते ?..इतना तो कर ही सकतें हैं न?

उ कयक है भाई साब कि ये खूबसूरत  जिंदगी सिर्फ पॉलिटिकल विमर्श नहीं है.जिनकी जिंदगी ही पालिटिक्स है वो संसार के सबसे दुर्भाग्यशाली लोग हैं..उनको करीब से देखियेगा कभी..                                             ये जीवन तो  संगीत है….जहाँ प्रेम एक राग है…होली दीपावली इसके शुद्ध स्वर हैं…जिससे ये जीवन संगीतमय प्रेममय और आनंदमय बनता है।  आँखे खोलिए जरा…
सबको धनतेरस, दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं !                                                                                                                                                                                                              ये भी पढ़ें…

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